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Friday, November 30, 2012

अतिथि तुम कब जाओगे

सर्दी खांसी और जुखाम 
आजकल है ये मेरे मेहमान 
तीन दिनों से पैर टिकाये 
नहीं ले रहे जाने का नाम ।। 

तीनों आये है पूरी तयारी संग
कोई दिखता नहीं किसी से कम  
दिन रात  है इनका पहरा ऐसा 
बंद हुई खुशिओं की दुकान।।

शैतानी इनकी हरदम रहती जारी 
नहीं मानते ये किसी की बात 
जब डाक्टर आकर इनको धमकाता 
ये बन जाते बिलकुल अन्जान।। 

जब ये फरमाते है थोडा आराम 
हमें भी मिलती है थोड़ी राहत 
वरना इनकी जी-हुजूरी में 
फंसी हुई है अपनी जान।। 

बार- बार पूछता हूँ इनसे 
अतिथि तुम कब जाओगे 
ये मुस्कराकर देते है जबाब 
बहुत दिन बाद मिले हो जजमान

सर्दी खांसी और जुखाम 
आजकल है ये मेरे मेहमान ।।

Sunday, November 25, 2012

हरकीरत हीर जी के काव्य संग्रह " दर्द की महक " और "सरस्वती सुमन" पत्रिका के क्षणिका विशेषांक के लोकार्पण की कुछ झलकियाँ


कल 24 नवम्बर को गुवाहाटी प्रेस क्लब में हरकीरत हीर जी के काव्य संग्रह " दर्द की महक " और उनके ही संपादन में निकली देहरादून से प्रकाशित होने वाली  "सरस्वती सुमन" पत्रिका के क्षणिका विशेषांक  का लोकार्पण हुआ। 


 इस अवसर की कुछ झलकियाँ :-

बाये से- श्री आनंद सुमन सिंह , श्री जी एम श्रीवास्तव जी, श्री किशोर जैन जी, श्रीमती सुधा श्रीवास्तव जी और श्रीमती हरकीरत हीर जी 

सरस्वती सुमन के क्षणिका विशेषांक का विमोचन 

हीर जी द्वारा रचित काव्य संग्रह " दर्द की महक" का विमोचन 



"दर्द की महक" का आवरण पृष्ट 

 "दैनिक पूर्वोदय" में ये खबर