साज़िशों के
इतने भँवर से
हम गुज़रे है कि
तेरी हर साज़िश
अब एक खेल सी
लगती है ।
नींद
आने से पहले
आज फिर
गुजरी थी
शोर मचाते हुये
तेरी खामोशियाँ
अब किस किस से छिपाऊँ
कि सुबह होने को आयी
नींद का इन्तेजार करते करते।
1.
आज पुरे दिन
मन में रही
एक सुखद सी शान्ती
सुबह सुबह जो
उनकी यादो को
इरेजर से मिटा दिया था
हमेशा के लिए।।