
मत प्यार करो इतना मुझसे
कि संगीनों के सायों मे
हो मेरा जीवन
मुझे निकालने दो
अब अपनी गलियों मे
देखूं कैसे लोग है मेरे
कितना बदला उनका जीवन
कुछ ऐसे पल
अब रहने दो
जो जी सकूं
मैं अपनों के बीच
ले सकें सुकून कि साँस
जिसमे अपने लोग यहाँ
मत रोको अब सूरज की
इन आती किरणों को
फ़ैल जाने दो इन्हें
मेरे अंग- अंग मे
मेरे कोने -कोने मे
ताकी , उन्मुक्त होकर
एहसास कर सकूं मै आज
अपने अस्तित्व को
अपनों के बीच ॥
मत प्यार करो इतना मुझसे
ReplyDeleteआपकी रचना चोरी हो गयी ..... यहाँ देखे
http://chorikablog.blogspot.com/2010/10/blog-post_7977.html
आमीन .....
ReplyDelete@ बंटी चोर
ReplyDeleteवाह भैया, चोरी भी सीनाजोरी भी. देख लिया अंदाज अच्छा लगा. मगर हमारी ई शायरी लगता है आप इसी ब्लाग पर नहीं पढे क्या....
पहली बार हम अपनी बर्बादी पर जीभर कर हंसे थे
इसलिये कि अब मेरे पास कुछ भी नहीं जो कोई लूट सके ।।
बंटी चोर अच्छा काम कर रहा है. हमारी रचनाएं अब दो जगह दिख रही हैं.
ReplyDeleteChaliye kisi to suno wo aawaz jo sabne ansuni kar di...sudar rachna...
ReplyDeleteखूब लिखा साहिब उन्मुक्त होकर...........
ReplyDeleteबढिया.
bahut hi sunder rachna.
ReplyDeleteकित्ता अच्छा लिखते हैं आप अंकल जी ...बधाई....और हाँ, आप तो हमारे जिले के भी हैं.
ReplyDelete________________
'पाखी की दुनिया' में अंडमान के टेस्टी-टेस्टी केले .
bas aisa hi ho.... bahut sunder likha aapne...
ReplyDelete.
ReplyDeleteसार्थक रचना...ऐसा ही हो काश !
.
गहरे भाव लिए कविता और झकझोरते चित्र...साधुवाद.
ReplyDelete__________________________
"शब्द-शिखर' पर जयंती पर दुर्गा भाभी का पुनीत स्मरण...
ताकी , उन्मुक्त होकर
ReplyDeleteएहसास कर सकूं मै आज
अपने अस्तित्व को
अपनों के बीच ॥
खूब बढिया.
kya khoob kahi hai apne upendra ji....
ReplyDeletewaah bahut khoob Upendra ji.........kafi acchhe bhaaon k sathi likhi hui panktiyan......bahut khoob.....
ReplyDelete