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Tuesday, December 27, 2011

अपना माल

             वह अपने बचपन के दोस्त से काफी दिन बाद मिल रहा था . दोस्त लडकियाँ पटाने में माहिर था. उसने सोंचा क्यों न इस मुलाकात में अपने दोस्त से लडकियाँ पटाने का कुछ टिप्स लिया जाय. उसने अपने दोस्त से अपनी परेशानी बताई , " यार जिस कालेज में मैंने एडमिशन लिया है उसमें एक नई पटाखा  माल आयी  है. क्या लगती है यार , उसे पटाने का कुछ गुरुमंत्र हो तो बता ."

                उसका दोस्त चटकारे ले - लेकर उसे एक एक टिप्स उसे बताता रहा. आखिर में उसका दोस्त जब बिदा हो रहा था तो उसने कहा, " लेकिन यार अगर लड़की पट गयी तो अकेले ही मत चटकर जाना. "

              " अमां यार कैसी बात करते हो. तुम तो अपने यार हो और भला मुझे कौन सी उस लड़की से शादी करनी है. बस थोडा सा प्यार का झांसा देकर उसे पटना है और अपना काम निकलते ही फुर्र ..."

              उसके दोस्त ने कहा , " यार उसका नाम पता तो कुछ बता . अगर उसका कोई फोटो तेरे पास हो तो दिखा, उसके चर्चे तेरे मुंह से सुनकर रहा नहीं जा रहा. "

              उसने उसने जैसे ही अपने मोबाईल में लड़की की चुपके से खींची गयी लड़की की फोटो अपने दोस्त को दिखाई , उसका दोस्त लड़की का फोटो देखते ही आग बबूला हो गया और जोर से चीखा, " साले मै तेरा खून पी जाऊंगा . ये तो मेरी बहन का फोटो है. ख़बरदार जो इसकी तरफ देखा तो . "

             उसके चेहरे की सारी रंगत गायब  हो चुकी  थी और पलभर में सन्नाटा पसरने  लगा . दोनों दोस्त अपने अपने रास्ते चल दिए थे.


Sunday, December 25, 2011

रविवार : बस आनंद ही आनंद

रविवार पर दो कवितायें:  एक ये जो 17 साल पहले की बाल कविता .......


(६ नवम्बर १९९४  को इलाहाबाद के " प्रयागराज टाईम्स " में प्रकाशित बाल कविता )

                  और एक ये जो आज की  (रविवार का एक मीठा एहसास )........
 रविवार : बस आनंद ही आनंद

रविवार !
यानि सुबह के मोबाईल के 
अलार्म की टिन- टिन से छुट्टी
और देर तक सुबह की 
मीठी नींद का आनंद 
बस आनंद ही आनंद

न सड़क पर
ट्रैफिक की चिंता
न आफिस पहुँचने की जल्दबाजी
न बास की खिंच - खिंच 
न सहयोगियों की चिख -चिख 
और  न फाईलों की टेंशन
वाह रे सुकून भरा आनंद      
बस आनंद ही आनंद

न फोन सिर  पर 
घनघना पा रहा 
न काम का बोझ दबा पा रहा 
सप्ताह के इस दिन 
बस चलती है हमारी मर्जी 
अजी आज के राजा है हम 
कहाँ मिलेगा ऐसा आनंद
बस आनंद ही आनंद

नहाने के बाद
छत पर गुनगुनी धुप का 
मीठा एहसास
गरमा गरम आलू पराठा
दे रहा नाश्ते का आनंद
बस आनंद ही आनंद

बच्चों का  स्कूल का विंटर कैम्प
उनकी अम्मा की किट्टी   
वाह रे सुकून भरा दिन 
बस इस रजाई में दुबककर 
ये बीत रहा दिन 
एक असीम शांति का आनंद
बस आनंद ही आनंद



ब्लॉग परिवार के सभी सदस्यों को क्रिसमस की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें

Wednesday, December 14, 2011

साहब का कुत्ता

 हरिया का छोटा भाई काफी देर से जिद कर रहा था की  वह भी उसके साथ बाजार घूमने जायेगा उसकी मॉं ने भी कहा कि उसे भी ले जाकर उसे घूमा लाये मगर हरिया  है कि  नाम ही नहीं ले रहा था। उसने अपने छोटे भाई  की तरफ इशारा कर के कहा ‘‘ बड़ा घूमने चला हैं, नाक तो देख जरा कैसे बह रही है छि:  कितनी घिन रही है ,कोई  देखेगा तो क्या कहेगा । ऊपर से मुँह से कितनी बदबू आ रही है ’’
     हरिया अकेले ही बाजार जाने के लिए तैयार होने लगा वह जैसे ही बाहर निकला  कि  साहब जी बाहर कुत्ते को लेकर पार्क में टहलाते दिखाई दिये उसे देखते ही साहब जी ने कहा ‘‘ हरिया  इसे भी साथ लेकर बाजार जा और थोड़ी देर बाहर टहलाकर लाना।’’ 
     हरिया खुश था वह कुत्ते को लेकर बाहर निकल पडा़ कुछ दूर चलने के बाद उसने कुत्ते को पुचकारते हुए गोंद में में उठाया तथा फिर चूम लिया  उसकी चाल में निरंतर बादशाहत बढ़ती जा रही थी

____________________________________
 

Saturday, September 17, 2011

प्रिय मित्रों और आदरणीय जनों

कुछ व्यक्तिगत कारणों  और समयाभाव के कारण अभी आर्कुट, फेसबुक  और ब्लॉग पर उपलब्ध नहीं रह पाउँगा और वापसी के बारे में अभी  कुछ कह नहीं सकता.  आप सभी लोंगों का ये प्यार  मुझे परेशां बहुत करेगा  क्योंकि आप लोंगों ने जो डेढ़ साल की ब्लोग्गिं  में इतना अथाह प्यार जो दे दिया वो इतनी आसानी से मुझसे नहीं सम्हल पा रहा. इतने ढेर सारे प्यार के लिए तहे दिल से शुक्रिया.........
कुछ शब्द और .......
फूलों और काँटों का
साथ साथ रहना
कैसा ये अजीब संयोग 
बनाया है खुदा तुमने
जिसकी खुशबू  हमें लगती है
जितना  ज्यादा अच्छी
काँटों को उतना ही 
         गले लगाना पड़ता है......... 

Wednesday, September 14, 2011

हिंदी- दिवस



हिंदी- दिवस के
शुभ अवसर पर
हिंदी को प्रोत्साहित करने के लिए
हुआ था एक सभा का आयोजन
अतिथि महोदय पधारे थे
मंच पर धीरे धीरे
मुस्कराते हुए
फूल मालाओं के बीच
भाषण की शुरुआत की थी
उन्होंने अपने की छोटे से
परिचय के साथ -
" डिअर ब्रदर्स एंड सिस्टर्स
प्यारे से मेरे फ्रैन्डस मुझे
जे. के. साहब के नामे से पुकारते है
मैं तो कोई ज्यादा
पढ़ - लिख नहीं पाया था
पर, मेरा बेटा कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी से
पी. एच. डी. कर रहा है.....।"

Sunday, August 7, 2011

हिना रब्बानी की मुस्कराहट और उनके चेलों का कारनामा

कुछ समय पहले कश्मीर के पुंछ सेक्टर में आतंकवादियों से मुठभेड़ के दौरान शहीद हुए मेजर आकाश सिंह (courtesy:- Himalini Hindi Mgzn)
                                                                                                                                                    

पाकिस्तानी  आतंकवादियों  ने दो  भारतीय जवानों के सिर उनके धड़ से अलग कर दिए और अपने साथ में  सिर ले गए।इस नृशंस घटना से भारतीय सेना के अधिकारी भी हैरान हैं।'मेल टुडे' के मुताबिक घटना जुलाई के आखिरी हफ्ते की है जब कुपवाड़ा जिले में नियंत्रण रेखा के पास आतंकवादियों और भारतीय सेना के बीच मुठभेड़ हुई थी। इस बात की आशंका जाहिर की जा रही है कि आतंकवादियों ने 20 कुमाऊं रेजिमेंट के दो जवानों की हत्या करके उनके सिर बतौर वॉर ट्रॉफी अपने साथ ले गए। लेकिन सेना के अधिकारी इस घटना की पुष्टि नहीं कर रहे हैं क्योंकि उन्हें डर है कि इसका कश्मीर में आतंकवादियों से लोहा ले रहे दूसरे जवानों के मनोबल पर बुरा असर पड़ सकता है।पेट्रोलिंग पार्टी का हिस्सा रहा 19 राजपूत रेजिमेंट का एक अन्य जवान भी मुठभेड़ के दौरान शहीद हो गया था। 
                    सेना के अधिकारी दबी जुबान में कह रहे हैं कि कुमाऊं रेजिमेंट के दो जवानों के सिर धड़ से अलग कर दिए गए थे। उनके धड़ को भी विकृत कर दिया गया था।  शहीद जवानों की पहचान हवलदार जयपाल सिंह अधिकारी और लांस नायक देवेंद्र सिंह के रूप में की गई है। हालांकि, गोली से शहीद हुए तीसरे जवान के बारे में कोई जानकारी सामने नहीं आई है।जवानों का उनके पैतृक जिलों-पिथौरागढ़ और हल्द्वानी में अंतिम संस्कार कर दिया गया। 
                  अंतिम संस्कार के दौरान मौजूद उत्तराखंड पुलिस के अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की कि शव ऐसी हालत में थे कि उनके परिवार या रिश्तेदारों को देखने की इजाजत नहीं दी गई। इस पुलिस अधिकारी का कहना है कि सेना की तरफ से मिली सूचना में कहा गया है कि गोलीबारी के दौरान इनके सिर धड़ से अलग हो गए। वहीं, लांस नायक देवेंद्र सिंह के चाचा ने भी इस बात को माना कि परिवारवालों को शहीद का शव देखने नहीं दिया गया। पुलिस अधिकारी ने कहा कि आतंकवादियों ने रॉकेट से चलने वाले ग्रेनेड से जवानों पर हमला किया और उनके सिर उड़ा दिए गए। 
                  उधमपुर में मौजूद उत्तरी कमांड के आधिकारिक प्रवक्ता राजेश कालिया ने कहा कि नियंत्रण रेखा के पास मौजूद फरकियां गली में आतंकवादियों ने घुसपैठ करने की कोशिश की थी, जहां तीन आतंकवादी मारे गए थे। जवानों के सिर काटने के सवाल पर उन्होंने कहा कि इस मामले में ब्योरा उपलब्ध नहीं है।खबरों के मुताबिक  इस बात की पुष्टि की गई है कि यह घटना कुपवाडा़ सेक्टर में 30 जुलाई को शाम 4.40 बजे तब घटी जब सेना की एंबुश पार्टी तीन ओर से घिर गई
                 यह घटना तकरीबन उसी दौरान हुई जब पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार भारत के दौरे पर थीं और अपनी मुस्कराहटों व खुबसुरती से भारतीय मीडिया और नेताओ के दिलों में राज कर रहीं थी आपकी इस मुंह में राम बगल में छुड़ी  वाली अदा यह  देश  कब  समझेगा  मालूम नहीं मगर अपने वीर सपूतों को सलाम एक अपील मिडिया और मानव अधिकारों के हितों के लिए चिल पो..पो..करने वालों से की, कुछ दिन कहीं आप लोग पिकनिक मना आईये, यह देश ऐसी घटनाओं को बहुत जल्द  भूल जाने में माहिर  है

Thursday, July 21, 2011

जो लौट के घर ना आयें......(कारगिल युद्द - मई से जुलाई 1999 )

जो लौट के घर ना आयें......

दुश्मनों को  इस सरजमीं से खदेड़ हमने अपना वादा निभाया
लो सम्हालो ये देश प्यारों अब अलविदा कहने  का वक्त आया .।।
आजाद है अब ये सरहद हमारी हौसले दुश्मनों के पस्त हुए 
मुश्किल परिस्थितियों में भी हमने उन्हें यहाँ से मार भगाया ।।
नापाक इरादे लेकर आये थे वे पलभर में हमने खाक कर दिया   
 हर चोटी पर फिर से हमने अपना झंडा ये तिरंगा फहराया ।।
इसे सम्हाल कर रखना हरदम क़ुर्बानी  फिर बेकार न जाये 
दुश्मन के नापाक परछाईयों  की फिर न पड़े कभी छायां।।
बस  भूल  न  जाना  उन्हें  जो  लौट  के  घर ना  आये 
जिसने लगा दी जान की बाजी और सब कुछ अपना गवाया ।।


Thursday, June 23, 2011

लघुकथा : फाँसी की सजा

एक बहुत ही सम्पन्न तथा धन-धान्य से परिपूर्ण राज्य था। बाहरी लोगोँ ने राज्य को लूट-खसोट कर खोखला कर दिया। वर्तमान राजा सीधा साधा तथा भोला आदमी था। इसका फायदा उठाते हुये बेईमान दरबारियोँ तथा उच्च पदोँ पर बैठे लोगोँ ने राज्य को लूटकर अपना खजाना भरना प्रारम्भ कर दिया। जनता ने इसके खिलाफ आन्दोलन किया मगर राजा के सैनिकोँ द्वारा इसे कुचल दिया गया।
मगर कुछ ही दिनोँ बाद राज्य मेँ फैली दुर्व्यवस्था से तंग आकर जनता ने फिर एक बार राजा के खिलाफ आन्दोलन किया। इस बार जनता ने पिछली गलतियोँ से सबक लेते हुये संगठित होकर बड़े पैमाने पर आन्दोलन किया था।
फलस्वरुप राजा और उसके भ्रष्ट तंत्र को उखाड़ फेका गया। नये राजा ने सारे भ्रष्ट दरबारियोँ और लूटखोरोँ को जेल मेँ डाल दिया। उन पर मुकदमा चलाया गया तथा सबको फाँसी की सजा दी गयी।
इन लोगोँ ने नये राजा के समक्ष फाँसी की सजा को माफ करने की दया याचिका लेकर फरियाद की। नये राजा ने अपना निर्णय सुनाया, " इन सभी को राज्य की सीमाओँ की रक्षा कर रहे हमारे जवानोँ के साथ सिर्फ एक रात बिताते हुये यह देखना होगा कि जिस राज्य को ये लूट रहे थे उसकी रक्षा कितनी कठिनाईयोँ से की जाती है । अगली सुबह जो भी जिन्दा बच गया उसकी सजा माफ। "
राजाज्ञानुसार सभी लोगोँ तपते रेगिस्तानोँ, दुर्गम पहाड़ियोँ व ग्लेशियरोँ के बीच रह रहे जवानोँ के साथ छोड़ दिया गया। अगली सुबह एक भी आदमी ऐसा नहीँ मिला जिसकी सजा माफ हो सके। कोई लू से, कोई ठण्ड से , कोई भूख प्यास से तो कोई हार्टअटैक से मर चुका था।

Tuesday, May 31, 2011

क्या आप ने मिस्ड काल दिया ?

32 लाख लोगोँ ने अबतक मिस्ड काल इस नम्बर ०२२ ३३०८११२२ कर लिया है.

क्या आपने ०२२ ३३०८११२२ पर missed call दिया ?


अगर  आप भारत स्वाभिमान के भ्रष्टाचार आन्दोलन से सीधे नहीं जुड़ पा   रहे हो तो ऊपर के  इस नंबर पर मिस्ड कॉल करके आप अपना योगदान कर सकते है.

          *******************
जाग उठे हैं लोग देश में, आंधी चलने वाली है
भूख और भ्रष्टाचार में डूबी, रात गुजरने वाली है

चार जून को राम देव जी, दिल्ली को ललकारेंगे -२
हम भी बाबा साथ तुम्हारे , लाखों लोग पुकारेंगे...

लाखों लोग करेंगे अनशन, ऐसी क्या मज़बूरी है -२
जो नहीं जानते गौर करे , ये मुद्दे बहुत जरुरी है

दुनिया के बाकि देशों में, नहीं चलते नोट हजारी है -२
क्यों भारत में हैं बड़े नोट , भारत की क्या लाचारी है
 
बड़े नोट ही नकली छपते , छोटे नोटों में घाटा है -२
नकली नोट का देश में आना , अपने मुहं पर चांटा है

भ्रस्टाचारी के घर दफ्तर , रेड जहाँ भी मारी है -२
रजाई , गद्दे , तकियों तक से , निकले नोट हजारी है...

बड़े नोट गर बंद किये तो , आतंकी खुद मर जायंगे -२
नकली नोट नहीं होंगे, तो बन्दूक कहाँ से लायेंगे

बड़े नोट बंद करवाना , नहीं मुद्दा कोई निराला है -२
हुआ तीन बार भी पहले , ये फिर से होने वाला है

बड़े नोटों को बंद करो , ये पहली मांग हमारी है -२
पड़ा जो इसकी खातिर मरना , इसकी भी तयारी है

फिर ना समझना बेवकूफ है -२ , जनता भोली भाली है -२
जाग उठे हैं लोग देश में, आंधी चलने वाली है

भूख और भ्रष्टाचार में डूबी, रात गुजरने वाली है
आजादी के बाद देश को, नेता इतना लूट गए -२

खादी से विश्वाश के अपने , धागे सारे टूट गए
भ्रष्टाचारी नेता अधिकारी , भारत को खाते जाते हैं
लूट लूट के देश का पैसा , स्विस बैंक पहुंचाते हैं

स्लम डोग हम कहलाते , गिनती होती कंगलो में -२
क्योंकि, 400 लाख करोड़ खा गए नेता , पिछले पैंसठ सालो में
 
(यह कविता  भारत स्वमिमान के फेसबुक   से साभार ली गयी है )

Monday, May 16, 2011

लेट्स ज्वाइन द हैण्ड टु ब्रींग आवर मनी बैक

google sabhar

          In this ‘Satyagraha against Corruption’ movement, Yoga guru Baba Ramdev is going to start fast unto death at Ramleela Ground in New Delhi on June 4, 2011 to demand :-
                        
         1. Recovery of black money deposited by Indians in   Swiss banks, 
         2. Disclosure of account-holders’ names, and 
         3. A ban on high-denomination currency notes like 500 &1000. 


( So let,s support and join hands for a good cause  
                  "TO BRING OUR MONEY BACK " )

Thursday, April 21, 2011

अन्ना हजारे के आन्दोलन के सन्दर्भ में : " अब क्या होगा ? "

चित्र गूगल साभार  
अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार के खिलाफ और जन लोकपाल बिल के लिए किये जा रहे आन्दोलन के सन्दर्भ में.................
अब क्या होगा - १
हिल गयी हैं 
सत्ता की जड़े 
खलबली मची है 
भ्रष्टाचारियों से 
भरी हुई सत्ता में
अब क्या होगा 
सोये  हुओं के 
जाग जाने के बाद ? 

अब क्या होगा -२ 
बड़ी मछलियाँ 
व्यस्त थी 
छोटी मछलियों को
खाने में
उनके हक छिनने में.
उन्हें लूटने में
एक कंकड़ उछाला है किसी ने 
शांत जल में 
बड़ी बेचैनी है 
खलबलाहट है
बड़ी मछलियों को 
डर सताने लगा है
कि कहीं ये भँवर का रूप न लेले
वो परेशान हैं कि
अब क्या होगा 
सोये  हुओं के 
जाग जाने के बाद ?

अब क्या होगा -३ 
जंतर -मंतर पर
जब जारी था तुम्हारा अनशन
तुम भूख से तड़पे तो होगे जरूर
मगर इस तड़प  से ज्यादा
वह तड़प रही होगी
जो तड़प रहे थे
इस वजह से
रातों की नींद उड़ जाने के बाद
क्योकि उन्हें डर सता रहा था कि
अब क्या होगा 
सोये  हुओं के 
जाग जाने के बाद ?

अब क्या होगा -४ 
सत्ता है
शतरंज  की बिसात
जारी है और जारी रहेगा
शह और मात का खेल
आरोप और प्रत्यारोप का दौर
कड़ियों को जोड़ने और तोड़ने का खेल
राह लगती नहीं आसन
मगर अन्ना हजारे
असली आजादी का
जो अलख जलाया है तुमने
अब जागने लगा है
सोया हिंदुस्तान
कुछ लोंगों के माथे पर बल पड़ने लगे हैं कि
अब क्या होगा 
सोये  हुओं के 
जाग जाने के बाद ?

Wednesday, March 16, 2011

लघु कथा--- आखिरी मुलाकात

             
       (अपनी लिखी एक पुरानी लघुकथा जो दैनिक 'हिंदी मिलाप'  में १० अगस्त २००२ को प्रकाशित हुई थी  ) 

                आज प्रेमी और प्रेमिका दोनों बहुत ही महत्वपूर्ण फैसला करने के लिए मिले थे. प्रेमिका ने आँखों में घड़ियाली आँसू भरकर प्रेमी के सामने अपना रोना रोया , " डियर, मै तो तुम्हारे बिना जीने की कल्पना से ही कांप जाती हूँ , क्या करूँ ? मेरा खूसट  बाप हम दोनों के प्रेम के बीच में आ गया है. उसने किसी भी कीमत पर हम दोनों को एक न होने देने की कसम खा रखी है. अब मै अपने बाप के खिलाफ भी नहीं जा सकती . क्या ऐसा नहीं हो सकता की हम दोनों आपसी सहमति से अलग हो जाये ? "
                प्रेमिका की समझ में वैसे अपने बाप की सीख  बहुत जल्दी आ गयी थी. सच भी तो था, प्रेमी बेरोजगार था. शादी के बाद जिंदगी की गाड़ी आगे चलने के लिए तो  पैसे  की जरुरत पड़ेगी ऐस - आराम की जिंदगी बेरोजगार पति के सहारे मुश्किल थी. इसलिए वह  आज प्रेमी को साफ साफ मना कर देने का इरादा करके आई थी. 
               प्रेमी ने घबराने का नाटक करते हुए सीने पर हाथ रखकर कहा , " मेरी जान, ये तुम क्या कह रही हो,  तुम्हारे बिना तो मै ख़ुदकुशी कर लूँगा. "
               प्रेमी को तो बिलकुल यकीं ही नहीं हो रहा था . मानो  प्रेमिका ने उसके मन की बात छीन ली हो . पीछा छुड़ाने का इरादा तो वह भी आज करके आया था. बाप के पसंद की लड़की से शादी होते ही लड़की का बाप अपने विभाग में उसकी नौकरी लगाव देने का वादा किया था. प्रेमी मन ही मन खुश हो रहा था.
              लड़की ने सुबकते हुए कहा , मगर डियर, हम अकेले इस प्यार की दुश्मन दुनिया से कब तक लड़ पायेंगे, सच दुनिया वालों ने हम प्यार करने वालों के लिए कितने बंधन बना रखे है "
              " ठीक है मेरी जान,अगर तुम्हारे ख़ुशी के इतना कुछ किया तो आज क्या तुम्हारी ख़ुशी के लिए इस प्यार की कुर्बानी नहीं दे सकता. तुम्हारी ख़ुशी ही मेरी ख़ुशी है. मगर एक बार............ " प्रेमी की आँखों में वासना के कीडे तैर रहे थे.
               " ठीक है मगर आज के बाद तुम हमेशा के लिए मुझे भूल जाओगे "  प्रेमिका को तो जैसे यकीं ही नहीं हो रहा था की प्रेमी इतनी आसानी से पीछा छोड़ देगा. प्रेमिका को लगा की प्रेमी ने उसके मन की बात छीन ली. इतनी छोटी सी कीमत .अब सिर्फ इस एक मुलाकात के बाद बाप के पसंद के अमीरजादे  से शादी करने के लिए स्वतंत्र होगी. प्रेमिका ने स्वीकृति दे दी और दोनों एक दुसरे से लिपट गये. जिंदगी भर साथ जीने- मरने के  कसमें और वादे घुट- घुट कर दम तोड़ रहे थे.

Wednesday, February 9, 2011

सैनिक शिक्षा सबके लिये अनिवार्य हो

नये दशक का नया भारत ( 4  ) : 
सैनिक शिक्षा सबके लिये अनिवार्य हो
               वर्षों पहले नाना पाटेकर ने प्रहार फिल्म के जरिये एक सपना देखा था , " सैनिक शिक्षा का और एक सार्थक सन्देश दिया था की देश के हर नागरिक को सैनिक शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए. आज के दौर में यह अवधारणा और भी महत्वपूर्ण हो गयी है .जरुरत है आज एक सार्थक कदम के साथ इस सैनिक शिक्षा की अनिवार्यता को समझा जाय और इस पर अमल लाने के प्रयास हो.

              सैनिक शिक्षा आखिर क्यों ?,  सैनिक शिक्षा इस विचारधारा के साथ जुड़ी है कि  देश के  हर नागरिक को मिलिट्री ट्रेनिग अनिवार्य रूप से दी जाय.  चाहे भले ही सबको हथियार और गोले बारूद इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग न जी जाय मगर कम से कम बेसिक चीजें अवश्य  जुडी हो जैसे युद्ध , हवाई हमलों, आतंकवादी हमलों ,प्राकृतिक आपदाओं आदि में एक नागरिक को किस प्रकार सक्रिय होना  चाहिए और उसकी क्या भूमिका हो सकती है ?

                जरा संचिये , २६/११ जैसे मुंबई के आतंकवादी हमलों के बारे में और जो पहले भी हमले हो चुके है. सैनिक शिक्षा सिर्फ सीमा पर  लड़ रहे जवानो से ही संबंधित नहीं हो सकती क्योंकि कई बार तो हालत देश के अंदर ही युद्ध जैसे भीषण हो जाते है. यह शांतिकाल में अपने नागरिकों की विपरीत परिस्थितियों में आत्म रक्षा से भी जुडी होनी चाहिए. सेना का जितना ही आक्रामक पहलू महत्वपूर्ण होता है उतना ही महत्वपर्ण अपना तथा  अपने नागरिकों का बचाव भी होता है. ऐसे आतंकवादी  हमलों  के दौरान एक नागरिक का क्या कर्त्तव्य हो सकता है,  मसलन वह कैसे अपने हो छिपा कर बचा सकता और फिर दूसरे फँसे लोंगों को कैसे बचाया जा सकता है. इसके अतिरिक्त आतंकवादियों से मोर्चा सम्हाले अपने जवानों की किस तरह से मदद की जा सकती है, यह सैनिक शिक्षा के माध्यम से हर नागरिक को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए.

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               लड़ाई सीमा पर  जवान लड़ता है मगर उसकी यह लड़ाई बहुत हद तक उसके बैक अप  , सप्लाई लाइन और पीछे से मिल रहे सहयोग पर निर्भर करती है . ऐसे में आम जनता की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है. रसद , गोला बारूद और  अन्य चीजों की सप्लाई में नागरिकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है. सेना अकेले ही यह सब त्वरित गति से नहीं कर पाती ऐसे में अगर एक प्रशिक्षित जनता का पूरा सहयोग  मिले तो बेहतर हो सकता है.

                युद्ध के समय सिर्फ जवान ही नहीं मरता है वरन दुश्मन के हमलों में आम नागरिक भी मारे जाते है. हर नागरिक को यह पाता होना चाहिए की दुश्मन के जमीनी , हवाई , नुक्लियर बायोलोजिकल  व केमिकल (NBC)  जैसे हमलों मे  किस तरह से सरवाईव  करना है.  हवाई हमलों के दौरान बलैक आउट और  गड्ढों व बंकरों  में छिपना तथा  रासायनिक और जैविक हमलों के असर से  किस तरह से कम प्रभावित हुए बचा जा सकता है, यह हर नागरिक के लिये जानना महत्वपूर्ण होना चाहिए.

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                   भारत एक विशाल देश है यहाँ प्राकृत आपदाओं के दौरान शहरी इलाकों में तो सैनिक मदद जल्दी पहुँच सकती है मगर जब ये हादसे दूर दराज के ग्रामीण इलाके और कठिन रास्तों पर होते है तो सैनिक मदद पहुँचाने में काफी वक्त लग जाता है और सैनिक मदद उन तक पहुंचते  पहुंचते जन धन की काफी हानी  हो चुकी होती  है. अगर इन ऐसी घटनाओं से निपटने के प्रक्षिक्षण आम जनता के पास भी रहे तो ऐसी घटनाओं से होने वाली क्षति को काफी हद तक कम किया जा सकता है.सेना और पैरा मिलिट्री का इंतजार किये बिना राहत कार्य हो उनके आने तक अंजाम दिया जा सकता है. इससे सेना पर निर्भरता भी कम होगी और हर आदमी कम से कम ऐसी घटनाओं से अपनी रक्षा करने  में आत्मनिर्भर बन सकेगा .

                 सैनिक शिक्षा गुंडों , चेन स्निचरो और बदमाशों  से निपटने में आम नागरिक के लिये लाभप्रद साबित हो सकती है. जो प्रशिक्षण ये गुंडे मवाली लेकर पब्लिक को डराने और लूटने आते है अगर वहीं आम नागरिक भी इन घटनाओं से निपटने में प्रशिक्षित हो तो उनका मुकाबला आसानी से किया जा सकता है.  इसके अतिरिक्त सैनिक शिक्षा नागरिकों को स्वयं को  स्वस्थ और तंदरुस्त रखने की प्रेरणा देती है. यह त्वरित कार्यवाही और निर्णय लेने की क्षमता को भी मजबूत करती है.


               रही बात तो,  इतने बड़े विशाल राष्ट्र  में यह मुश्किल तो जरुर है परन्तु असंभव नहीं . हम व्यवसायिक शिक्षा, सेक्स शिक्षा , शारीरिक और योग शिक्षा आदि पर तो बहस कर लेते है परन्तु सैनिक शिक्षा पर न के बराबर बहस हुई है. एक सार्थक प्रयास इस दिशा में होने चाहिए. पहले तो प्रारंभिक कक्षाओं से ही सैनिक शिक्षा एक अनिवार्य विषय करना चाहिए. इसके अतिरिक्त सैनिक शिक्षा के बारे में पत्राचार ,  सी डी , अख़बारों, टी वी इत्यादि के माध्यम से  भी आम नागरिक को शिक्षित और जागरूक करना चाहिए. आज इजराईल  का उदहारण हमारे सामने है जहाँ का हर नागरिक पहले देश का एक सैनिक है नागरिक बाद में. 

इन्हें  पढने के लिये कृपया इस लिंक पर क्लिक करें............................. नये दशक का नया भारत ( ३) : कैसे हो गाँवों का विकास ?  

Tuesday, February 1, 2011

नये दशक का नया भारत ( भाग- ३) : कैसे ही गाँवों का विकास ?

विकसित राष्ट्र कि तरफ कदम बढ़ाते सदी के इस दूसरे दशक में कैसा हो नया भारत ? इस रास्ते में रोड़ा बनी समस्याएं कैसे दूर हो ? आज हर भारतीय के मन में एक विकसित  भारत का सपना तैर रहा है . परन्तु राष्ट्र  के सम्मुख अनेकों समस्याएं इस रस्ते की रूकावट बनी खड़ी है. " नये दशक का नया भारत " एक छोटी सी कोशिश है, बस आपका सुझाव और मार्गदर्शन मिलता रहे ..... 




हल !
कि  जिसकी नोक से 
बेजान धरती खिल उठती
खिल उठता सारा जंगल 
चांदनी भी खिल उठती......
                गिरिजा कुमार माथुर की लिखी " ढाकबनी " कविता की  ये चंद पंक्तियाँ जिस हल के महत्व को बखूबी बयां कर रही है उसे आज किसान दीवाल पर टांग शहरों  कि तरफ मजदूर बनाने के लिये पलायन करता जा रहा है. कहा जाता है भारत गाँवों  का देश है  और उसकी आत्मा गाँवों में निवास करती है. देश की करीब अस्सी प्रतिशत जनसंख्या  गावों में निवास करती है. ये गाँव ही भारतीय अर्थवयवस्था के रीढ़ की हड्डी है और शहरों के विकास का रास्ता इन्हीं गाँवों से होकर जाता है

                मगर भारतीय गाँव आज इतने पिछड़े हुए क्यों है ? क्यों इनके विकास के लिये उचित प्रयास नहीं हुए ? ग्राम्य विकास में अडचने क्या है ? ना जाने कितने  सवाल जेहन में घूम जाते  है. आज आवश्यकता है गाँवों को उनके फटेहाल और गिरी हुई हालत से निकालकर एक समृद्धि  और उन्नत बनाने क़ी. गाँव सदियों से ही शोषण और दासता के शिकार रहे है. अंग्रेजी शासन काल में इन गावों की दशा पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया गया, उस समय जमींदारों और सेठ- साहूकारों ने खूब जमकर जनता का शोषण किया. स्वतंत्र प्राप्ति के बाद भी इसमें कुछ सुधार नहीं हुए और हमारे राजनेता इसे बखूबी जारी रख अपना पेट और घर भरते रहे

                 आर्थिक और सामाजिक संकरण कुछ ऐसे बुने गये की विकास के ज्यादातर प्रयास सिर्फ शहरों तक ही सीमित रह गयें. जहाँ शहरों में ऊँची- ऊँची अट्टालिकाये और फ्लैट बनते गये , अय्यासी और मौज मस्ती के सारे साधन मौजूद होते गये वहीं गाँव मूलभूत सुविधाओं से भी महरूम हैं 
                 
                  भारत कृषि प्रधान देश है फिर भी किसानों को उन्नत किस्म के कृषि यन्त्र और खाद्य सही समय पर नहीं मिल पाते. अगर थोड़ा बहुत कुछ प्रयास हुए भी तो वह जरुरतमंदों  को कम जुगाड़ू लोगों तक ज्यादा पहुंचे. महंगे कृषि के आधुनिक  यन्त्र गरीब जनता उठा  नहीं सकती  इसलिए आज भी कृषि बैल  और जैविक  खाद्यों  पर आश्रित है
                 कृषि पूरी तरह से मानसून  पर निर्भर है. जिस साल सही समय पर  मानसून गये उस साल तो ठीक है वरना सब बर्बादसिंचाई के दूसरे साधन जैसे नहरकुवाँ ,और तालाब हर जगह उपलब्ध नहीं होते . इसका परिणाम ये होता है कि कहीं फसलें  पानी  के बिना  सुख  जाती है तो कहीं पानी  में डूबकर  नष्ट  हो  जाती है. ऐसे  में सिंचाई  के पारंपरिक  साधन जैसे कुवाँ ,और तालाब भी धीरे  धीरे  अब  खात्मा  होने  लगे  है. तालाब अब पट चुके है उनपर दबंगों का कब्ज़ा है. इन पारंपरिक साधनों जैसे कुवों  तालाबों  और नहरों को फिर से खोदकर बंजर जमीनों को फिर से हरा भरा किया जा सकता है.  

                    गाँव शिक्षा के क्षेत्र में काफी पिछड़े हुए है. प्राथमिक विद्यालयों की हालत तो सबसे ख़राब है. इसके अध्यापक गण ज्यादातर दायित्वहीन, अकर्मण्य और आलसी होते है. उनका मन स्कूल में कम और अपने घर- गृहस्थी में ज्यादा रहता हैवे खुद  शहरों में रहकर अपने बच्चों को पब्लिक  स्कूलों में पढ़ना पसंद करते है और  प्राथमिक  विद्यालयों को सिर्फ एक आफिस से ज्यादा समझते हुए आकार ड्यूटी बजा कर चले जाते है. महिला शिक्षक तो स्वीटर बुनाई और बातों में ही ड्युटी पूरी कर लेती है. मजाल जो कोई कुछ बोल दे, वरना मियाँ जी हाजिर हो जायेगे दल बल के साथ.
                   आज गाँव शिक्षा के क्षेत्र में काफी पिछड़े हुए  है. शिक्षा के लिए उच्च  संस्थानों की कमी  है. ऊँचीं शिक्षा के लिये शहरों का ही रुख करना पड़ता है. ग्रामीण लड़के तो किसी तरह शहरों का रुख कर लेते है मगर ग्रामीण लडकियाँ आज भी इससे वंचित रह जातीं है और या तो उनकी पढ़ाई छुट जाती है या फिर प्राईवेट बी. . करना पड़ता हैकहीं- कहीं स्कूल इतने दूर होते है की माँ बाप चाहकर भी  अपने बच्चियों को सिर्फ इसलिए  स्कूल नहीं भेज पाते की स्कूल आना जाना आसान नहीं होता
                   गावों में स्वास्थ्य की भी समुचित व्यवस्था नहीं है. यहाँ ज्यादातर लोग झोला छाप डाक्टरों के भरोसे ही रहते है क्योकि सरकारी चिकित्सालय नाममात्र के ही है और हर जगह उपलब्ध नहीं होते . और जो है भी उसे नर्स और दाई ही ज्यादातर सम्हाले हुए है. डाक्टर लोग अक्सर शहर  में अपनी प्राईवेट प्रेक्टिस में ही  व्यस्त होते है. ऐसे  में झोलाछाप डाक्टर अपनी अज्ञानता  के चलते बीमारी को और बढ़ा देते है और ऊपर से पैसे तो ऐठते ही है. अगर दवा किस्मत से क्लिक कर गयी तो ठीक वरना गरीब जनता को फिर शहरों की तरफ ही भागना पड़ता है.
                                 बिजली की  कमी गावों की एक बड़ी समस्या है. पर्याप्त बिजली मिल पाने से किसान अपना कृषि कार्य समय पर नहीं कर पाते. बिजली कर्मचारियों   से मिली भगत कर बिजली चोरी बदस्तूर जारी है. शाम होते ही कटिया लग  जाना आम बात है. टूटी फूटी सड़के भी गाँवों की  एक समस्या है. आवागमन  के साधन  भी काफी कम है. गावों को अगर सड़क, स्वास्थ्य, बिजली, शिक्षा और  पानी की समस्याओं से आज निज़ात दिला दी जाये तो यहाँ का शांत, खुला और मनोरम वातावरण शहरों की धुल-धक्कड़ , भाग - दौड़   और तंग वातावरण की जगह  कितना अच्छा हो जाता .  अंत में पं. सुमित्रा नंदन 'पन्त' की ये कविता , जो इन गावों और उनके निवासियों का सच्चा और स्वाभाविक चित्र अंकित करती है .:-
भारत माता ग्राम वासिनी ! 
खेतों में फैला है , स्यामल धूल भरा मैला सा  आँचल
गंगा-यमुना के आंसू जल , मिटटी की प्रतिमा उदासिनी
भारत माता ग्राम वासिनी !


                  ये तस्वीर  आर्कुट मित्र धीरज के प्रोफाइल से ली गयी है , जो आधुनिक भारत के एक  गाँव में बिजली नहीं होने पर  हरिकेन लेम्प के उजाले में बर्थडे मानते हुये की है.............



इन समस्यायों के बारे में कुछ ई- मेल से सुझाव भी आये जिनमें :-
सुशील बाकलीवाल  साहब का  कहना है , " अच्छी सड़के और पर्याप्त बिजली , यदि ये दो वस्तुयें भी गाँव वालों को व्यवस्थित रूप में मिले तो वर्तमान ग्रामीण विकास के लिये यह एक प्रकार की उपलब्धि ही होगी , इसके बाद तो ग्रामवासी भी अपने  विकास को स्वयं ही आगे बढ़ा लेंगें ."
आर्कुट मित्र अनिल कुमार के शब्दों में , " जितना पैसा रिलीज होता है ग्रामीण विकास के नाम पर अगर उसमे का आधा भी सही जगह खर्च होता तो भी तस्वीर कुछ दूसरी होती. ऊपर से लेकर नीचे तक बस पैसों की बंदरबाट मची है. "

अन्य भाग पढने के लिये कृपया इस लिंक पर क्लिक करें.............................
नये दशक का नया भारत ( भाग- १ ) : कैसे दूर हो बेरोजगारी  ? 
नये दशक का नया भारत ( भाग- 2 ) : गरीबी कैसे मिटे ?

इस श्रृंखला की अगली कड़ी  " नये दशक का नया भारत ( भाग- 4  ) : सैनिक शिक्षा सबके लिये  " में आप सबके विचार और सुझाव आमंत्रित है ,  जो आप मुझे - मेल  ( upen1100@yahoo.com ) से भेज सकते है  जिन्हें आपके नाम के साथ इस अगली पोस्ट में उद्धरित किया जायेगा. इस पोस्ट में रह गयी कमियों से भी कृपया अवगत करने का कष्ट करे ताकि अगली कड़ी को और अच्छा बनाया जा सके.