विकसित राष्ट्र कि तरफ कदम बढ़ाते सदी के इस दूसरे दशक में कैसा हो नया भारत ? इस रास्ते में रोड़ा बनी समस्याएं कैसे दूर हो ? आज हर भारतीय के मन में एक विकसित भारत का सपना तैर रहा है . परन्तु राष्ट्र के सम्मुख अनेकों समस्याएं इस रस्ते की रूकावट बनी खड़ी है. " नये दशक का नया भारत " एक छोटी सी कोशिश है, बस आपका सुझाव और मार्गदर्शन मिलता रहे .....
मगर भारतीय गाँव आज इतने पिछड़े हुए क्यों है ? क्यों इनके विकास के लिये उचित प्रयास नहीं हुए ? ग्राम्य विकास में अडचने क्या है ? ना जाने कितने सवाल जेहन में घूम जाते है. आज आवश्यकता है गाँवों को उनके फटेहाल और गिरी हुई हालत से निकालकर एक समृद्धि और उन्नत बनाने क़ी. गाँव सदियों से ही शोषण और दासता के शिकार रहे है. अंग्रेजी शासन काल में इन गावों की दशा पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया गया, उस समय जमींदारों और सेठ- साहूकारों ने खूब जमकर जनता का शोषण किया. स्वतंत्र प्राप्ति के बाद भी इसमें कुछ सुधार नहीं हुए और हमारे राजनेता इसे बखूबी जारी रख अपना पेट और घर भरते रहे.
आर्थिक और सामाजिक संकरण कुछ ऐसे बुने गये की विकास के ज्यादातर प्रयास सिर्फ शहरों तक ही सीमित रह गयें. जहाँ शहरों में ऊँची- ऊँची अट्टालिकाये और फ्लैट बनते गये , अय्यासी और मौज मस्ती के सारे साधन मौजूद होते गये वहीं गाँव मूलभूत सुविधाओं से भी महरूम हैं
भारत कृषि प्रधान देश है फिर भी किसानों को उन्नत किस्म के कृषि यन्त्र और खाद्य सही समय पर नहीं मिल पाते. अगर थोड़ा बहुत कुछ प्रयास हुए भी तो वह जरुरतमंदों को कम जुगाड़ू लोगों तक ज्यादा पहुंचे. महंगे कृषि के आधुनिक यन्त्र गरीब जनता उठा नहीं सकती इसलिए आज भी कृषि बैल और जैविक खाद्यों पर आश्रित है.
कृषि पूरी तरह से मानसून पर निर्भर है. जिस साल सही समय पर मानसून आ गये उस साल तो ठीक है वरना सब बर्बाद. सिंचाई के दूसरे साधन जैसे नहर, कुवाँ ,और तालाब हर जगह उपलब्ध नहीं होते . इसका परिणाम ये होता है कि कहीं फसलें पानी के बिना सुख जाती है तो कहीं पानी में डूबकर नष्ट हो जाती है. ऐसे में सिंचाई के पारंपरिक साधन जैसे कुवाँ ,और तालाब भी धीरे धीरे अब खात्मा होने लगे है. तालाब अब पट चुके है उनपर दबंगों का कब्ज़ा है. इन पारंपरिक साधनों जैसे कुवों तालाबों और नहरों को फिर से खोदकर बंजर जमीनों को फिर से हरा भरा किया जा सकता है.
गावों में स्वास्थ्य की भी समुचित व्यवस्था नहीं है. यहाँ ज्यादातर लोग झोला छाप डाक्टरों के भरोसे ही रहते है क्योकि सरकारी चिकित्सालय नाममात्र के ही है और हर जगह उपलब्ध नहीं होते . और जो है भी उसे नर्स और दाई ही ज्यादातर सम्हाले हुए है. डाक्टर लोग अक्सर शहर में अपनी प्राईवेट प्रेक्टिस में ही व्यस्त होते है. ऐसे में झोलाछाप डाक्टर अपनी अज्ञानता के चलते बीमारी को और बढ़ा देते है और ऊपर से पैसे तो ऐठते ही है. अगर दवा किस्मत से क्लिक कर गयी तो ठीक वरना गरीब जनता को फिर शहरों की तरफ ही भागना पड़ता है.
बिजली की कमी गावों की एक बड़ी समस्या है. पर्याप्त बिजली न मिल पाने से किसान अपना कृषि कार्य समय पर नहीं कर पाते. बिजली कर्मचारियों से मिली भगत कर बिजली चोरी बदस्तूर जारी है. शाम होते ही कटिया लग जाना आम बात है. टूटी फूटी सड़के भी गाँवों की एक समस्या है. आवागमन के साधन भी काफी कम है. गावों को अगर सड़क, स्वास्थ्य, बिजली, शिक्षा और पानी की समस्याओं से आज निज़ात दिला दी जाये तो यहाँ का शांत, खुला और मनोरम वातावरण शहरों की धुल-धक्कड़ , भाग - दौड़ और तंग वातावरण की जगह कितना अच्छा हो जाता . अंत में पं. सुमित्रा नंदन 'पन्त' की ये कविता , जो इन गावों और उनके निवासियों का सच्चा और स्वाभाविक चित्र अंकित करती है .:-
ये तस्वीर आर्कुट मित्र धीरज के प्रोफाइल से ली गयी है , जो आधुनिक भारत के एक गाँव में बिजली नहीं होने पर हरिकेन लेम्प के उजाले में बर्थडे मानते हुये की है.............
इन समस्यायों के बारे में कुछ ई- मेल से सुझाव भी आये जिनमें :-
सुशील बाकलीवाल साहब का कहना है , " अच्छी सड़के और पर्याप्त बिजली , यदि ये दो वस्तुयें भी गाँव वालों को व्यवस्थित रूप में मिले तो वर्तमान ग्रामीण विकास के लिये यह एक प्रकार की उपलब्धि ही होगी , इसके बाद तो ग्रामवासी भी अपने विकास को स्वयं ही आगे बढ़ा लेंगें ."
आर्कुट मित्र अनिल कुमार के शब्दों में , " जितना पैसा रिलीज होता है ग्रामीण विकास के नाम पर अगर उसमे का आधा भी सही जगह खर्च होता तो भी तस्वीर कुछ दूसरी होती. ऊपर से लेकर नीचे तक बस पैसों की बंदरबाट मची है. "
अन्य भाग पढने के लिये कृपया इस लिंक पर क्लिक करें.............................
नये दशक का नया भारत ( भाग- १ ) : कैसे दूर हो बेरोजगारी ?
नये दशक का नया भारत ( भाग- 2 ) : गरीबी कैसे मिटे ?
इस श्रृंखला की अगली कड़ी " नये दशक का नया भारत ( भाग- 4 ) : सैनिक शिक्षा सबके लिये " में आप सबके विचार और सुझाव आमंत्रित है , जो आप मुझे ई- मेल ( upen1100@yahoo.com ) से भेज सकते है जिन्हें आपके नाम के साथ इस अगली पोस्ट में उद्धरित किया जायेगा. इस पोस्ट में रह गयी कमियों से भी कृपया अवगत करने का कष्ट करे ताकि अगली कड़ी को और अच्छा बनाया जा सके.
कि जिसकी नोक से
बेजान धरती खिल उठती
खिल उठता सारा जंगल
चांदनी भी खिल उठती......
गिरिजा कुमार माथुर की लिखी " ढाकबनी " कविता की ये चंद पंक्तियाँ जिस हल के महत्व को बखूबी बयां कर रही है उसे आज किसान दीवाल पर टांग शहरों कि तरफ मजदूर बनाने के लिये पलायन करता जा रहा है. कहा जाता है भारत गाँवों का देश है और उसकी आत्मा गाँवों में निवास करती है. देश की करीब अस्सी प्रतिशत जनसंख्या गावों में निवास करती है. ये गाँव ही भारतीय अर्थवयवस्था के रीढ़ की हड्डी है और शहरों के विकास का रास्ता इन्हीं गाँवों से होकर जाता है. मगर भारतीय गाँव आज इतने पिछड़े हुए क्यों है ? क्यों इनके विकास के लिये उचित प्रयास नहीं हुए ? ग्राम्य विकास में अडचने क्या है ? ना जाने कितने सवाल जेहन में घूम जाते है. आज आवश्यकता है गाँवों को उनके फटेहाल और गिरी हुई हालत से निकालकर एक समृद्धि और उन्नत बनाने क़ी. गाँव सदियों से ही शोषण और दासता के शिकार रहे है. अंग्रेजी शासन काल में इन गावों की दशा पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया गया, उस समय जमींदारों और सेठ- साहूकारों ने खूब जमकर जनता का शोषण किया. स्वतंत्र प्राप्ति के बाद भी इसमें कुछ सुधार नहीं हुए और हमारे राजनेता इसे बखूबी जारी रख अपना पेट और घर भरते रहे.
आर्थिक और सामाजिक संकरण कुछ ऐसे बुने गये की विकास के ज्यादातर प्रयास सिर्फ शहरों तक ही सीमित रह गयें. जहाँ शहरों में ऊँची- ऊँची अट्टालिकाये और फ्लैट बनते गये , अय्यासी और मौज मस्ती के सारे साधन मौजूद होते गये वहीं गाँव मूलभूत सुविधाओं से भी महरूम हैं
भारत कृषि प्रधान देश है फिर भी किसानों को उन्नत किस्म के कृषि यन्त्र और खाद्य सही समय पर नहीं मिल पाते. अगर थोड़ा बहुत कुछ प्रयास हुए भी तो वह जरुरतमंदों को कम जुगाड़ू लोगों तक ज्यादा पहुंचे. महंगे कृषि के आधुनिक यन्त्र गरीब जनता उठा नहीं सकती इसलिए आज भी कृषि बैल और जैविक खाद्यों पर आश्रित है.
कृषि पूरी तरह से मानसून पर निर्भर है. जिस साल सही समय पर मानसून आ गये उस साल तो ठीक है वरना सब बर्बाद. सिंचाई के दूसरे साधन जैसे नहर, कुवाँ ,और तालाब हर जगह उपलब्ध नहीं होते . इसका परिणाम ये होता है कि कहीं फसलें पानी के बिना सुख जाती है तो कहीं पानी में डूबकर नष्ट हो जाती है. ऐसे में सिंचाई के पारंपरिक साधन जैसे कुवाँ ,और तालाब भी धीरे धीरे अब खात्मा होने लगे है. तालाब अब पट चुके है उनपर दबंगों का कब्ज़ा है. इन पारंपरिक साधनों जैसे कुवों तालाबों और नहरों को फिर से खोदकर बंजर जमीनों को फिर से हरा भरा किया जा सकता है.
गाँव शिक्षा के क्षेत्र में काफी पिछड़े हुए है. प्राथमिक विद्यालयों की हालत तो सबसे ख़राब है. इसके अध्यापक गण ज्यादातर दायित्वहीन, अकर्मण्य और आलसी होते है. उनका मन स्कूल में कम और अपने घर- गृहस्थी में ज्यादा रहता है. वे खुद शहरों में रहकर अपने बच्चों को पब्लिक स्कूलों में पढ़ना पसंद करते है और प्राथमिक विद्यालयों को सिर्फ एक आफिस से ज्यादा न समझते हुए आकार ड्यूटी बजा कर चले जाते है. महिला शिक्षक तो स्वीटर बुनाई और बातों में ही ड्युटी पूरी कर लेती है. मजाल जो कोई कुछ बोल दे, वरना मियाँ जी हाजिर हो जायेगे दल बल के साथ.
आज गाँव शिक्षा के क्षेत्र में काफी पिछड़े हुए है. शिक्षा के लिए उच्च संस्थानों की कमी है. ऊँचीं शिक्षा के लिये शहरों का ही रुख करना पड़ता है. ग्रामीण लड़के तो किसी तरह शहरों का रुख कर लेते है मगर ग्रामीण लडकियाँ आज भी इससे वंचित रह जातीं है और या तो उनकी पढ़ाई छुट जाती है या फिर प्राईवेट बी. ए. करना पड़ता है. कहीं- कहीं स्कूल इतने दूर होते है की माँ बाप चाहकर भी अपने बच्चियों को सिर्फ इसलिए स्कूल नहीं भेज पाते की स्कूल आना जाना आसान नहीं होता. गावों में स्वास्थ्य की भी समुचित व्यवस्था नहीं है. यहाँ ज्यादातर लोग झोला छाप डाक्टरों के भरोसे ही रहते है क्योकि सरकारी चिकित्सालय नाममात्र के ही है और हर जगह उपलब्ध नहीं होते . और जो है भी उसे नर्स और दाई ही ज्यादातर सम्हाले हुए है. डाक्टर लोग अक्सर शहर में अपनी प्राईवेट प्रेक्टिस में ही व्यस्त होते है. ऐसे में झोलाछाप डाक्टर अपनी अज्ञानता के चलते बीमारी को और बढ़ा देते है और ऊपर से पैसे तो ऐठते ही है. अगर दवा किस्मत से क्लिक कर गयी तो ठीक वरना गरीब जनता को फिर शहरों की तरफ ही भागना पड़ता है.
बिजली की कमी गावों की एक बड़ी समस्या है. पर्याप्त बिजली न मिल पाने से किसान अपना कृषि कार्य समय पर नहीं कर पाते. बिजली कर्मचारियों से मिली भगत कर बिजली चोरी बदस्तूर जारी है. शाम होते ही कटिया लग जाना आम बात है. टूटी फूटी सड़के भी गाँवों की एक समस्या है. आवागमन के साधन भी काफी कम है. गावों को अगर सड़क, स्वास्थ्य, बिजली, शिक्षा और पानी की समस्याओं से आज निज़ात दिला दी जाये तो यहाँ का शांत, खुला और मनोरम वातावरण शहरों की धुल-धक्कड़ , भाग - दौड़ और तंग वातावरण की जगह कितना अच्छा हो जाता . अंत में पं. सुमित्रा नंदन 'पन्त' की ये कविता , जो इन गावों और उनके निवासियों का सच्चा और स्वाभाविक चित्र अंकित करती है .:-
भारत माता ग्राम वासिनी !
खेतों में फैला है , स्यामल धूल भरा मैला सा आँचल
गंगा-यमुना के आंसू जल , मिटटी की प्रतिमा उदासिनी
भारत माता ग्राम वासिनी !
ये तस्वीर आर्कुट मित्र धीरज के प्रोफाइल से ली गयी है , जो आधुनिक भारत के एक गाँव में बिजली नहीं होने पर हरिकेन लेम्प के उजाले में बर्थडे मानते हुये की है.............
इन समस्यायों के बारे में कुछ ई- मेल से सुझाव भी आये जिनमें :-
सुशील बाकलीवाल साहब का कहना है , " अच्छी सड़के और पर्याप्त बिजली , यदि ये दो वस्तुयें भी गाँव वालों को व्यवस्थित रूप में मिले तो वर्तमान ग्रामीण विकास के लिये यह एक प्रकार की उपलब्धि ही होगी , इसके बाद तो ग्रामवासी भी अपने विकास को स्वयं ही आगे बढ़ा लेंगें ."
आर्कुट मित्र अनिल कुमार के शब्दों में , " जितना पैसा रिलीज होता है ग्रामीण विकास के नाम पर अगर उसमे का आधा भी सही जगह खर्च होता तो भी तस्वीर कुछ दूसरी होती. ऊपर से लेकर नीचे तक बस पैसों की बंदरबाट मची है. "
अन्य भाग पढने के लिये कृपया इस लिंक पर क्लिक करें.............................
नये दशक का नया भारत ( भाग- १ ) : कैसे दूर हो बेरोजगारी ?
नये दशक का नया भारत ( भाग- 2 ) : गरीबी कैसे मिटे ?
इस श्रृंखला की अगली कड़ी " नये दशक का नया भारत ( भाग- 4 ) : सैनिक शिक्षा सबके लिये " में आप सबके विचार और सुझाव आमंत्रित है , जो आप मुझे ई- मेल ( upen1100@yahoo.com ) से भेज सकते है जिन्हें आपके नाम के साथ इस अगली पोस्ट में उद्धरित किया जायेगा. इस पोस्ट में रह गयी कमियों से भी कृपया अवगत करने का कष्ट करे ताकि अगली कड़ी को और अच्छा बनाया जा सके.
आपने बिलकुल ज्वलंत और सोचनीय विषय पर बहुत गंभीरता से प्रकाश डाला है ...आपने सही कहा है कि आज शहरीकरण के दौर में गौण पिछड़ते जा रहे हैं और फलेट संस्कृति जन्म ले रही है ..आपका आभार इस पोस्ट के लिए
ReplyDeleteसराहनीय लेखन ........ बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteसद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
भारत की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक व्यवस्था में सुधार हेतु
ReplyDeleteमेरे कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं।
@ भारत के हर नागरिक के लिए पाँच वर्ष तक सैनिक-सेवा अनिवार्य हो।
@ जसंख्या वृद्धि पर लगाम लगाने के लिए एक संतान वाले दम्पति के लिए विशेष प्रोत्साहन योजना लागू हो।
@ विदेशों में जमा वह काला धन जो भारतीय जनता के खून-पसीने की कमाई का है, भारत लाया जाय।
सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
सब के सुझावों के साथ मैं इतना ही कहूंगा कि सस्ता और आसान कर्ज, मंडियों से जोड़ने के लिये बढ़िया सड़कें, स्टोरेज की सुविधा दे दीजिये किसान को (और हां डंडे वाले से मुक्ति भी), किसान सब कुछ कर लेगा, खुद..
ReplyDeleteसराहनीय सार्थक आलेख ..
ReplyDeleteबहुत अच्छा विषय है...डंडा लखनवी जी की बातों से सहमत हूँ....
ReplyDeleteआप परवाह कर रहे हैं, पढ़ कर अच्छा लगता है.
ReplyDeleteगांवों के विकास से ही देश का विकास संभव है।
ReplyDeleteकृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली आदि सभी विषयों के समेटा है आपने। सार्थक लेख के लिए बधाई। एक और सुविधा का गाँवों में अभाव है, अच्छी सड़कें और यातायात के समुचित साधन।
ReplyDeleteसब हो सकता है बस मानवता जो मर रही है उसे जिन्दा रखने की कोशिश की जाये तो .
ReplyDeleteसार्थक आलेख। बधाई।
ReplyDeletesadiyo se yah chintan hote aa raha hai.wah bhi budhijiwi logo ke dwara aur shirs par unaka hi kabja hai.phir karega kaun.ketihar to muk-darshak ke shiwa kuchh nahi. waise bahut achcha .dhanyabad.
ReplyDeleteसार्थक चिंतन.
ReplyDeleteआपकी सोच का एक छोटा सा हिस्सा भी हुक्मरानों ने सोचा होता तो ग्रामीण भारत की तस्वीर कुछ और होती!!
ReplyDeleteनब्ज पक़ड़ी है आपने। अगर निवेश का विकेंद्रीकरण गांवों के पक्ष में हो जाए,तो कई सुविधाएं अपने आप बहाल हो जाएंगी।
ReplyDeleteपूर्णतया सहमत, सच में यही मार्ग है।
ReplyDeleteअच्छा विषय उठाया है
ReplyDeleteभारत भी बहुत जल्द ही वह मुकाम हासिल कर सकता है बर्शते हम सभी लोग अपना सारा काम ईमानदारी से करे।
ReplyDeleteएक सार्थक आलेख , बेहतरीन सुझावों के साथ ।
ReplyDeleteमुख्य बात है की गाँव में वो आकर्षण नही जो शहरों में है .... और आज के नेता और हर विशिष्ट आदमी आकर्षण की खोज में दौड़ता है ... फिर गाँव का विकास कैसे होगा ... गाँव देश की मुख्य धारा में कैसे आएँगे ....
ReplyDeleteआज वैसे भी हर बात राजनीति से चलती है और गाँव उनकी प्रआइओरिटी में नही आते ...
धन्यवाद देना चाहूँगा, साथ ही आभार प्रकट करता हूँ एक बेहतरीन श्रृंखला शुरू करने के लिए.
ReplyDeleteहर सरकारी विभाग में यह ढुल-मूल रवैया देखने को मिलता है. कारण यही है कि किसी स्तर पर कोई कारगर नियंत्रण नहीं है.
sarthak lekh
ReplyDelete...
behtreen
उपेन्द्र भाई, आपकी इस सार्थक सोच को सलाम करता हूँ।
ReplyDelete---------
ध्यान का विज्ञान।
मधुबाला के सौन्दर्य को निरखने का अवसर।
गावों की दशा सचमुच चिंतनीय है।
ReplyDeleteभारत को खुशहाल बनाने के लिए गावों को खुशहाल बनाना होगा।
गांव के लोगों का शहर की ओर पलायन भी एक विकट समस्या है। इसे रोकने के लिए सरकार कोई कदम नहीं उठा रही है।
aap bahut achchhi kosis kar rahe hai
ReplyDeleteabhi thoda jaldi mai hun, magar aapko apane wicharon se awaga jaroor karwaungi .
keep writing
my best wishes are with you
बहुत ही सार्थक आलेख....आपने समस्यायों पर अच्छी तरह प्रकाश डाला है...
ReplyDeleteअनिल कुमार जी ने बिलकुल सही बात कही है...योजनायें कम नहीं बन रहीं....और पैसे भी आवंटित किए जा रहे हैं...पर भ्रष्टाचार की वजह से सही जगह पहुँच नहीं रहे...समस्यायों की जड़ बस भ्रष्टाचार ही है.
गांवों के विकास से ही देश का विकास संभव है। बहुत ही सार्थक आलेख|
ReplyDeleteसमकालीन ज्वलंत मुद्दों पर सोचने को विवश करती सार्थक प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
भाई उपेन्द्र जी बहुत ही सारगर्भित लेख है आपको बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteupendr ji
ReplyDeletebahut hi saargarbhit avam vicharniy post . aapne gaon ki jarjar hoti vyavastha par jo roshni dali haivah bahut hi prabhavit karti hai .vastav me gaon kie sabhi xhetro me vikas hona baht hi jaruri hai jaisa ki aapne likha hai kiaapne likha hai ki gaon ka vikas hi hamare desh ke sahi vyavastha ki reedh hai ,yah solah aane sach baat hai. aapke diye gaye vichar bhi bahut hi uttam hain.
ekgahan vishay ko aapne bahut hi sahi tareeke se kalambadh kiya hai.
bahut hi sarthak lekhan----
poonam
bahut badhiya likha hai
ReplyDeletehamaare yahan bhi aao darling
गांवों के विकास के बिना भारत के विकास का सपना अधूरा है !
ReplyDeleteसार्थक और विचारणीय लेख के लिए बधाई !
बसंत पंचमी की शुभकामनाएं !
आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
आपकी चिंता व्यर्थ नहीं जाएगी ......
ReplyDeleteसराहनीय लेखन ........ बधाई स्वीकारें।
ReplyDelete