सृजन _शिखर : मेरे ख्यालों का खुला आसमां
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Sunday, September 9, 2012
कफ़न
मेरे
हाथों
से
कफ़न
का
कपड़ा
वह
छीनकर
भागा
पता
चला
उसकी
बूढ़ी
माँ
कई
दिनों
से
कंपकपाती
ठण्ड
में
बिन
चादर
के
रात
भर
सो
नहीं
प़ा
रही
थी
।।
एक भोजपुरी कविता : " ना अबकी ऊ गाँव मिलल "
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