जिन्दगी अक्सर एक अधूरे ख्वाब सी लगी
कहीं ये धूप तो कहीं ये छाँव सी लगी
जब भी समझना चाहता लगी अन्जानी सी
कभी अपनी तो कभी तिलस्मी राज सी लगी
पल - पल बदलते रहे हैं रिस्ते यहाँ पर
कभी दुपहरी तो कभी मुरझाई शाम सी लगी
हर लम्हा कुछ ऐसे गुजरता रहा है कि
कभी स्वाद तो कभी बेस्वाद सी लगी
जख्म सहलाने वाले तो बहुत मिले यहाँ
जख्म सूखे मगर हमेशा ताजी घाव सी लगी
मुश्किल वक्त में भी अपने ना साथ मिले
" उपेन" ये कभी उजड़ी तो कभी आबाद सी लगी।।
कहीं ये धूप तो कहीं ये छाँव सी लगी
जब भी समझना चाहता लगी अन्जानी सी
कभी अपनी तो कभी तिलस्मी राज सी लगी
पल - पल बदलते रहे हैं रिस्ते यहाँ पर
कभी दुपहरी तो कभी मुरझाई शाम सी लगी
हर लम्हा कुछ ऐसे गुजरता रहा है कि
कभी स्वाद तो कभी बेस्वाद सी लगी
जख्म सहलाने वाले तो बहुत मिले यहाँ
जख्म सूखे मगर हमेशा ताजी घाव सी लगी
मुश्किल वक्त में भी अपने ना साथ मिले
" उपेन" ये कभी उजड़ी तो कभी आबाद सी लगी।।