खंजर
ये खुदा
एक गुजारिश है तुमसे
अगली बार खंजर
उनके हाथों में
थमाने से पहले
न भूल जाना
इस दिल को पत्थर बनाना
ताजमहल
इतना भी इतराना
ठीक नहीं
अपनी इस सुन्दरता पर
न काटे गए होते
हाथ कारीगरों के
तो आज हर घर
इक ताजमहल रहा होता
मुस्कराहट एक गुनाह
ये मुस्कराहट
चली जाये तो
सन्नाटा
आ जाये तो
गुनाह
उन्हें गुनाह पसंद नहीं
और हमें सन्नाटा
इस तरह बढती रही
हमारे गुनाहों की संख्या
प्यार
सिर्फ ढाई आखर
उनके लिए
जो शब्दों को देते है मोल
जिया जाय तो कम है
सात जन्म भी
समझने के लिए
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