विकसित राष्ट्र कि तरफ कदम बढ़ाते सदी के इस दूसरे दसक में कैसा हो नया भारत ? इस रास्ते में रोड़ा बनी समस्याएं कैसे दूर हो ? आज हर भारतीय के मन में एक विकसित भारत का सपना तैर रहा है . परन्तु राष्ट्र के सम्मुख अनेकों समस्याएं इस रस्ते की रूकावट बनी खड़ी है. " नये दसक का नया भारत " नामक श्रृंखला के माध्यम से मैंने कुछ कोशिश की है. आपका सुझाव और मार्गदर्शन कि जरूरत है.....
भाग- १: कैसे दूर हो बेरोजगारी ?
देश के सामने आज बेरोजगारी एक बड़ी समस्या के रूप में खड़ी है. बेरोजगारी के कारण लाखों नवयुवक आज दिशाहीन हो गए है. पेट कि ज्वाला शांत करने के लिये बहुत से चोरी , डकैती जैसे समाज विरोधी काम करने लगे है. पैसों का लालच देकर दुश्मन देश भी उन्हें अपने ही देश के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है. बहुत से नवयुवक आत्महत्या कर लेते है. इस बेरोजगारी ने व्यक्तिगत , पारिवारिक और सामाजिक विघटन को बढावा दिया है और इस तरह देश के प्रगति में बहुत नौजवान अपना हाथ नहीं बटा पा रहे.
मेरे ख्याल से इस बेरोजगारी से निज़ात पाने के लिये अगर हमारी सरकारें कुछ ध्यान इन बातों पर दे तो कुछ हद तक स्थिति सुधार सकती है--------
लघु उद्योंगों को प्रोत्साहन की आज सख्त जरूरत है. आज बेरोजगार युवकों को इन उद्योगों से अवगत कराकर प्रोत्साहित करना चाहिए तथा इसके लिये सरकार को आवश्यक संसाधन भी मुहैया करना जरुरी है.
रोजगार सम्बन्धी जानकारी का सहज उपलब्ध होना आवश्यक है. हर जिले में रोजगार आफिस है मगर उसका काम सिर्फ बेरोजगारों का रजिस्ट्रेशन करने तक ही ज्यादा सीमित है. कुल ले देकर पुरे देश में एक रोजगार समाचार ही मुख्य माध्यम है. अगर किसी की नज़र पड़ी तो ठीक वरना बाद में. अतः रोजगार सम्बन्धी जानकारी को विस्तृत करना अति आवश्यक है. हालंकि, इंटरनेट और अन्य मीडिया माध्यमों के माध्यम से भी कुछ रोजगार सम्बन्धी सूचनाएं निकलती है मगर इसमें विस्तार लाना अति आवश्यक है. क्योंकि ज्यादातर लोग रोजगार समाचार पर ही आश्रित रहते है.
लार्ड मैकाले की वर्षों पुरानी शिक्षा - प्रणाली में कई खामियां है. खुद उन्होंने ही इसकी रुपरेखा इस आधार पर बनाई थी कि इससे शिक्षा प्राप्त करके युवक उनके अंग्रेजी राज में सिर्फ उनके लिये क्लर्क और बाबू से ज्यादा न बन सके. ये उनकी सोंच थी मगर हम आज भी उसी शिक्षा प्रणाली पर बैल गाड़ी की तरह दुनिया के सामने चल रहे है.
व्यवसायिक शिक्षा प्रणाली को बढावा देना अतिआवश्यक है. ताकि इस प्रकार की शिक्षा प्राप्त करके नवयुवक अपने स्वयं के व्यवसाय आरम्भ कर सके तथा उनकी निर्भरता सरकारी कार्यालयों पर कम हो सके. क्योंकि सरकारी दफ्तरों मे भी सीमित संख्या रहती है और इस तरह अनेकों नवयुवकों का बेरोजगार रह जाना स्वाभाविक है.
व्यवसाय शुरू करने के लिये सरकारी ऋण की व्यवस्था आसान शर्तों पर तथा सर्व सुलभ होनी चाहिए. ताकि धनाभाव के कारण नवयुवक अपना व्यवसाय स्थापित करने से वंचित न रह जाये. पढाई के लिये ऋण तो मिल जाता है मगर रोजगार न मिलने पर यही ऋण उनके लिये काल का ग्रास बन जाता है और इसे चुकाने के लिये नवयुवक दूसरे रास्ते देखने लगते है या आत्महत्या जैसे विकल्प चुन लेते है. अतः इन ऋणों से बेरोजगार कम से कम अपना खुद का व्यवसाय तो शुरू कर सकते हैं .
कुकुरमुत्ते की तरह हर गली में उग आये शिक्षण संस्थानों पर लगाम अति आवश्यक है. ये एम.बी.ए , एम.सी.ए , मेडिकल और इन्जीनियरिंग की डिग्री बिना उन्हें सही से योग्य किये पैसे के खातिर बस बांटते जा रहे है. इससे बेरोजगारों की संख्या में वृद्धि तो हो ही रही है और उन्हें सही ज्ञान नहीं मिल पा रहा. इन संस्थानों से डिग्री लेकर ये सिर्फ घुमते रह जाते है और इन्हें नौकरी के काबिल नहीं समझा जाता.
शारीरिक श्रम की तरफ नवयुवकों को प्रोत्साहित करना अति आवश्यक है. हाथ में ऊँची डिग्री लेकर नवयुवक शारीरिक श्रम नहीं करना चाहते तथा इन्हें हीन भावना से देखते है. इस दृष्टीकोण के कारण वे उन सभी कामों की तरफ से मुख मोड़ लेते है जो शारीरिक श्रम से जुड़े होते है. इससे भी बेरोजगारों की संख्या में वृद्धि होती है, क्योंकि सरकारी नौकरियां सीमित होती है और सबको तो मिलना मुश्किल है. अतः आवश्यकता है कुछ न कुछ वैकल्पिक व्यवसाय करने की.
आप लोंगों के कुछ सुझाव मै यहाँ जोड़ना चाहूँगा जैसे की -------
@ मो सम कौन वाले संजय जी का सैनिक शिक्षा का सुझाव बहुत ही काबिले तारीफ है. वर्षों पहले नाना पाटेकर ने जो सपना ' प्रहार ' जैसी सार्थक फिल्म के साथ देखा था वो हमारी सरकारों ने दिलचस्पी नहीं ली और इसे सच नहीं होने दिया . एक आदर्श है ईजराईल का हमारे सामने, जहाँ का हर नागरिक , एक नागरिक बाद में पहले वह देश का सैनिक है वो भी ट्रेनिंग के साथ.
Manoj kumar ji, का सुझाव , ये ऐसी बुनियादी समस्याएँ है, जिनका निराकरण हम केवल सरकार के मोहताज रहकर नहीं कर सकते. बेरोजगारी एवं गरीबी जैसी समस्या से निजात पाने के लिए कोई शार्टकट नहीं हो सकता, इसके लिए स्थायी रूप से ठोस और दीर्घकालीन योजनाओ पर अमल की जरुरत है. हम सबको अपनी सोच व कार्यशैली समय के साथ, समय के अनुकूल लेकर चलनी होगी.
दीपा गुप्ता जी , जिनका खुद का एक पब्लिक एडमिनिस्ट्रेटर के रूप में रोजगार आफिस में काम करने का अनुभव है, ने एक बहुत ही अच्छा अनुभव शेयर किया कि रोगगार - मेलों मे ज्यादातर लोग अपने आस पास हो रोजगार खोजना चाहते है . अतः. इसके लिये क्षेत्रीय उद्योगों को बढावा दिया जाय तो बहुत हद तक समस्या कम हो सकती है मगर इसके लिये भी छोटे स्तर पर ही सही मगर सरकारी मदद जरुरी है . ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी का सुझाव है की देश के नौजवान एक बार स्वावलंबी हो गए तो बहुत सारी समस्याएं स्वतः समाप्त हो जायेंगी और देश विकास के रास्ते पर बड़ी तेजी से अग्रसर हो सकेगा ! सुशील बकलीबस जी का कहना है कि सरकार तो शुरु से घडियाली आंसू और दिखावी उपचार से आगे न कुछ कर पाई है और न ही शायद बहुसंख्यक सामान्यजन के लिये कुछ कर पावेगी । उपचार एक ही है और वह है शिक्षित युवा को सरकार पर निर्भर होने की बजाय अपनी व्यक्तिगत क्षमता के अनुसार शारीरिक श्रम के द्वारा अपनी राह स्वयं बना ले.
अमित जी के दो सुझाव भी काबिलेतारीफ है. एक जनसंख्या नियन्त्रण, दूसरा शत-प्रतिशत लोगों का शिक्षित होना, और दोनो के लिये सरकार से ज्यादा लोगों को इच्छा शक्ति दिखानी होगी .\अलोक खरे जी का कहना है कि मूल समस्या भ्रष्टाचार है!योजनाये कितनी भी बना लो, जब तक इमानदारी नही आएगी, हमारे अफसरों और नेताओं में तब तक सब बेकार है!हरीश भट्ट जी का इस सम्बन्ध में कहना है की भ्रष्ट कार्यप्रणाली का का खात्मा जरूरी है जो अपने निहित स्वार्थों के लिए इस समस्या को जीवंत रखे आ रहे हैं .
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इस श्रृंखला की दूसरी कड़ी " नये दसक का नया भारत ( भाग- २ ) : गरीबी कैसे मिटे ? " में आप सबके विचार और सुझाव आमंत्रित है , जो आप मुझे इ- मेल ( upen1100@yahoo.com ) से भेजने का कष्ट करे , जिन्हें आपके नाम के साथ इस अगली पोस्ट में उद्धरित किया जायेगा. इस पोस्ट में रह गयी कमियों से भी कृपया अवगत करने का कष्ट करे ताकि अगली कड़ी को और अच्छा बनाया जा सके.