© कापीराइट

© कापीराइट
© कापीराइट _ सर्वाधिकार सुरक्षित, परन्तु संदर्भ हेतु छोटे छोटे लिंक का प्रयोग किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त लेख या कोई अन्य रचना लेने से पहले कृपया जरुर संपर्क करें . E-mail- upen1100@yahoo.com
आपको ये ब्लाग कितना % पसंद है ?
80-100
60-80
40-60

मेरे बारे में

मेरे बारे में
परिचय के लिए कृपया फोटो पर क्लिक करें.

Monday, December 24, 2012

कुछ क्षणिकायें

याद

हम तो थे परिंदा
हमारी हर उड़ान के साथ
अपने लोग भी हमें
अपने दिलों से
उड़ाते गये
आलम अब ये है की
हम याद भी करें तो 
उनको याद नहीं आते है।। 

जख्म

हमें आदत थी
उनके हर चीज को
सम्हालकर रखने की
उनके दिए हर दर्द को भी
हम दिल में
सम्हालकर रखते गए
और जख्म  खाते रहें।।


इल्जाम 

उनके हर इल्जाम 
हम अपने सर लेते गये
इस उम्मीद में की 
यह होगा
आखिरी इल्जाम ।।

रेत

जबसे रेत पर मैंने
तुम्हारा नाम लिखा है
तुमने छोड़ दिया है 
लहर बनकर 
किनारे तक आना ।।

बगिया के फूल

मेरी बगिया में गिरे 
कोमल फूल 
आज बड़े उदास है
कि वो आये 
और बिन मुस्कराए 
लौट गए 
कहीं उनके 
कोमल पैरों में 
छाले तो नहीं 
पड़ गये होंगे ।।




Monday, December 17, 2012

लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया के लिए चंद पंक्तियाँ

आज बेचैन हूँ
पूरा दिन ढूंढ़ता रहा
किताबों का वो पन्ना 
जहाँ लिखा हुआ
कभी पढ़ा था
शहीदों की चिताओं पर
लगेंगे हर वर्ष मेले
मगर नहीं मिला वो पन्ना
कहीं धूल खा रहीं होगी
हमारी याददास्त भी
उन पन्नों की ही तरह
हम भूलते गए उन्हें
उनके परिजन होते रहे
दर-बदर अकेले

कहाँ हमें करना था इन्हें
दिलो-जान से प्यार
हम करते रहें इन्हें
पहचानने से भी इंकार
दिल पर लगे घाव
मां  के बहते आँसू पोंछ
हमें भाई-बहना की
उम्मीद को जगाना था
मगर हमने अदा की कीमत
कुछ को पेट्रोल पम्प
कुछ को गैस एजेंसी
और प्लाट बाँट  
हमने समझा
अपने कर्तव्यों की इतिश्री
वो भी आधे कागजों पर
और आधी हकीकत 

साल में एक बार
ढोल- बाजों के साथ
याद  कर लेना
देशभक्ति के गीत गा लेना
नहीं हो जाता इससे
शहीदों का सम्मान
पता नहीं ये सम्मान
जुबां  से दिल तक कभी
उतर पायेगा या नहीं ......




 ( कारगिल युद्ध 1999 में शहीद होने वाले 4 जाट रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया का जन्म हिमांचल प्रदेश के पालनपुर में 29 जून 1976 में हुआ था . कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तान  ने इन्हें इनके पांच साथियों, सिपाही अर्जुन राम ( नागौर , राजस्थान), सिपाही भंवर लाल बागडिया ( सीकर, राजस्थान) सिपाही भीखाराम ( बाड़मेर, राजस्थान ),सिपाही मूलाराम ( नागौर, राजस्थान ) और सिपाही नरेश सिंह ( अलीगढ, उत्तर प्रदेश) के साथ सीमा पर गस्त के दौरान घेरकर अपहरण कर लिया और 22 दिन अपनी कस्टडी में टार्चर  करने के बाद इन्हें मारकर  भारतीय सीमा में फेंक दिया। इन सबको बर्बर यातनाये दी गयी और इनके नाख़ून , आँखे निकाल ली गयी थी और सर धड से अलग करके क्षत- विक्षत हालत में भारतीय सीमा में फेंका गया था .
   इस  घटना के बाद लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया के पिता श्री नरेन्द्र कालिया को दिल का दौरा  पड़ा और  कुछ दिनों बाद उनकी नौकरी जाती रही। आजकल वो सरकार  द्वारा  दी गयी एक गैस एजेंसी के सहारे अपना और अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे है। अपने बेटे के कातिलों को सजा दिलवाने के लिए हर तरफ से हारकर और सरकारी रवैये से निराश होकर वे हेग के अंतर्राष्ट्रीय न्यायलय में इसे ले जाने की कोशिश में लगे है । पाकिस्तानी सेना ने इन युद्ध बंदियों के साथ जो बर्बरतापूर्ण कार्यवाही की वह हर तरफ  से अंतर्राष्ट्रीय संधि और युद्ध अधिनियम का सरेआम उल्लंघन था।