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Wednesday, October 27, 2010

सार्थक जीवन


एक ही डाली से तीन फूल तोड़े गये .  पहला सुहागरात की सेज पर सजाया गया,  दूसरा भगवान के मंदिर मे  चढ़ाया गया तथा तीसरा एक शहीद की अर्थी पर सजाया गया .   
पहले और दूसरे फूल बहुत खुश थे और तीसरे फूल की किस्मत पर हंस रहे थे. पहले ने कटाक्ष करते हुए कहा , " मुझे दो आत्माओ के मिलन का साक्षी होने का सौभाग्य मिला है और मेरा जीवन धन्य हो गया तथा वहीं तुम एक लाश के ऊपर ... छि ..छि ... ऐसी जलालत किसी और को न मिले.
 दूसरे  फूल ने भी तीसरे पर कटाक्ष करते हुए कहा " मुझे तो भगवान के माथे  को चूमने का सौभाग्य मिला है. मै तो सीधा  स्वर्ग का अधिकारी हूँ.
तीसरा वाला  फूल शहीद की अर्थी के साथ साथ जल  गया शहीद  को स्वर्ग मे स्थान दिया जा रहा था. शहीद  ने स्वर्ग देवता से प्रार्थना की , " देव इस फूल ने आखिरी वक्त तक मेरा साथ दिया और मेरे साथ इसने भी अपनी शहादत दी है अतः यह भी स्वर्ग का अधिकारी होना चाहिए . "
पहला फूल अगली सुबह मसल- कुचल जाने के बाद घर  के पीछे एक नाली मे पड़ा आंसू  बहा रहा था , दूसरा फूल सुबह के साथ - साथ झाड़ू से बटोर कर कूड़ेदान मे डाला  जा चुका  था  और तीसरा  फूल अपनी शहादत  के साथ स्वर्ग मे स्थान पा चुका था.
                                                                                                   

Tuesday, October 12, 2010

क्यों तुम जिंदा हो रावण

(चित्र गूगल साभार )


सदियों से तुम्हें हम
हर साल जलाते आये हैं
फिर भी क्यों तुम
जिंदा
हो रावण
अभी भी हमारे बीच में
कभी आतंकवाद
कभी अलगाववाद
कभी नक्सलवाद
कभी महंगाई
कभी भ्रष्टाचार
तो कभी किसी अन्य रूप में ।
आखिर बताओ तो सही हमें
उस अमृत का असल ठिकाना
बार बार मरने के बाद भी
जिससे तुम जिंदा होकर
फिर वापस आ जाते हो
हमारे बीच
क्योंकि इस बार हम तुम्हें
लौट कर वापस
नहीं आने देना चाहते।
रावण बोला-
'' तो इस साल पहले
अपने अंदर बैठे हुए
रावण को जलाओ
फिर राम बनकर
मुझे जला देना ।''

Saturday, October 9, 2010

साकी के नाम

एक

एक साकी ही तो था मेरा अपना कहलाने वाला
अब वह भी शराब मे पानी मिलाने लगा है
गम जो हम भुला लेते थे कभी पीकर शराब
अब
वो फिर से मुझे सताने लगा है । ।

दो

जिंदगी हुई कुछ इस तरह से बसर साकी
हम पीते गए तुम पिलाते गए
खूब छककर पिया खूब जमकर पिया
मगर गए तो फिर भी प्यासे गए

.

Friday, October 1, 2010

अयोध्या की सुबह

( चित्र गूगल साभार )


मत प्यार करो इतना मुझसे
कि संगीनों के सायों मे
हो मेरा जीवन
मुझे निकालने दो
अब अपनी गलियों मे
देखूं कैसे लोग है मेरे
कितना बदला उनका जीवन
कुछ ऐसे पल
अब रहने दो
जो जी सकूं
मैं अपनों के बीच
ले सकें सुकून कि साँस
जिसमे अपने लोग यहाँ
मत रोको अब सूरज की
इन आती किरणों को
फ़ैल जाने दो इन्हें
मेरे अंग- अंग मे
मेरे कोने -कोने मे
ताकी , उन्मुक्त होकर
एहसास कर सकूं मै आज
अपने अस्तित्व को
अपनों के बीच ॥