एक ही डाली से तीन फूल तोड़े गये . पहला सुहागरात की सेज पर सजाया गया, दूसरा भगवान के मंदिर मे चढ़ाया गया तथा तीसरा एक शहीद की अर्थी पर सजाया गया .
पहले और दूसरे फूल बहुत खुश थे और तीसरे फूल की किस्मत पर हंस रहे थे. पहले ने कटाक्ष करते हुए कहा , " मुझे दो आत्माओ के मिलन का साक्षी होने का सौभाग्य मिला है और मेरा जीवन धन्य हो गया तथा वहीं तुम एक लाश के ऊपर ... छि ..छि ... ऐसी जलालत किसी और को न मिले.
दूसरे फूल ने भी तीसरे पर कटाक्ष करते हुए कहा " मुझे तो भगवान के माथे को चूमने का सौभाग्य मिला है. मै तो सीधा स्वर्ग का अधिकारी हूँ.
तीसरा वाला फूल शहीद की अर्थी के साथ - साथ जल गया शहीद को स्वर्ग मे स्थान दिया जा रहा था. शहीद ने स्वर्ग देवता से प्रार्थना की , " देव इस फूल ने आखिरी वक्त तक मेरा साथ दिया और मेरे साथ इसने भी अपनी शहादत दी है अतः यह भी स्वर्ग का अधिकारी होना चाहिए . "
पहला फूल अगली सुबह मसल- कुचल जाने के बाद घर के पीछे एक नाली मे पड़ा आंसू बहा रहा था , दूसरा फूल सुबह के साथ - साथ झाड़ू से बटोर कर कूड़ेदान मे डाला जा चुका था और तीसरा फूल अपनी शहादत के साथ स्वर्ग मे स्थान पा चुका था.
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ReplyDeleteरचना प्रेरणादायक है किन्तु माखन लाल चतुर्वेदी की सुप्रसिद्ध कविता "पुष्प की अभिलाषा" से पूर्णतयः प्रेरित है :
चाह नहीं मैं सुरबाला के,
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में,
बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव,
पर, हे हरि, डाला जाऊँ
चाह नहीं, देवों के शिर पर,
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ!
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जाएँ वीर अनेक।
Bahut sunder.... prernadati rachna...
ReplyDeleteBhool sudhar
ReplyDeletePrernadayi
sundar abhivyakti, pushp ki mahima,
ReplyDeletebadhai
bahoot sunder tarike se appne fool ke madhyam se achchha sandesh diya hai..............
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति ...
ReplyDeleteउपेन्द्र जी, कहाँ कहाँ से फूल चुन कर ब्लॉग जगत के लिए लाते हैं......
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति..
upendra ji blog jagat me is sunder rachna ke saath apki wapasi ka swagat hai.
ReplyDeleteBahut kuch kahti hai aapki ye laghu-latha ... apne aap ko home karna hi jeevan hai ...
ReplyDeletewah...bahot sundar...
ReplyDelete.
ReplyDeleteसम्मान का अधिकारी कौन है, ये सब नहीं समझते। यूँ ही इतराते हैं। लेकिन जिंदगी सब समझा देती है। बहुत सुन्दर तरीके से आपने अभिव्यक्त किया है मान सम्मान के हक़दार को।
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यह रचना प्राथमिक विद्यालय के कोर्स में होनी चाहिए ताकि शुरु से ही हम समझ सकें, हमारे मन में बैठ जाए कि किस तरह का फूल बनना चाहिए जीवन में।
ReplyDeleteबहुत प्रेरक।
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ReplyDelete@ मनोज जी , इस लघुकथा को ये हक देने के लिए आपका हार्दिक आभार. आपकी बात बिलकुल सही है. हमें बचपन से ही अपनी पौध सीचनी चाहिए.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर तरीके से आपने अभिव्यक्त किया है
ReplyDeleteप्रेरक पोस्ट मनोज जी ने सही कहा है। आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।
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