(चित्र गूगल साभार )
सदियों से तुम्हें हम
हर साल जलाते आये हैं
फिर भी क्यों तुम
जिंदा हो रावण
अभी भी हमारे बीच में
कभी आतंकवाद
कभी अलगाववाद
कभी नक्सलवाद
कभी महंगाई
कभी भ्रष्टाचार
तो कभी किसी अन्य रूप में ।
आखिर बताओ तो सही हमें
उस अमृत का असल ठिकाना
बार बार मरने के बाद भी
जिससे तुम जिंदा होकर
फिर वापस आ जाते हो
हमारे बीच
क्योंकि इस बार हम तुम्हें
लौट कर वापस
नहीं आने देना चाहते।
रावण बोला-
'' तो इस साल पहले
अपने अंदर बैठे हुए
रावण को जलाओ
फिर राम बनकर
मुझे जला देना ।''
कमाल की पंक्तियाँ रची हैं उपेन्द्रजी
ReplyDeleteआखिरी चार पंक्तियों ने तो निशब्द कर दिया
प्रासंगिक और प्रभावी रचना
उपेंद्र जी, बहुत ही उचित प्रस्न है यह अऊर उतना ही बिचित्र है उत्तर इस प्रस्न का.. दरसल हम रावन को बाहर देख रहे हैं, हर कोई अपने अंदर के रावन को खतम करे तो अपने आप रावन का दहन हो जाएगा!बहुत ही सुंदर कविता. षष्ठी पूजा की बधाई!!
ReplyDeleteनवोदय विद्यालय , जीयनपुर में पढ़ते थे तो वहां का मेला खूब देखते थे, यादें ताजा हो गईं.
ReplyDeleteबहुत हे बढिया........
ReplyDeleteबहुत ही गहरी बात की है आपने कि पहले अंदर के रावण को मारो.........
कहाँ मरा रावन - जिन्दा है हर इंसान में किसी न किसी रूप में.
अच्छी कविता. और सुंदर चित्र
ठीक ही कहा है आपने। अपने अंदर के रावण को फले हम जलाएं।
ReplyDeleteआंखें दे आईना दे
लेकिन पहले चेहरा दे
बहुत सटीक बात ..सुन्दर रचना ..आत्मावलोकन के लिए प्रेरित करती हुई
ReplyDeletesundar sahi bat/
ReplyDeletebahut hi badhiya sandesh diya apne upendra ji ......sahi mayne mein hmein hi apne andar ke rawan ko maarna hoga...
ReplyDeleteसटीक बात कही आखिर मे…………जब तक अपने अन्दर के रावण का अन्त नही करेंगे हम तब तक रावण हर बार आता रहेगा और सताता भी रहेगा।
ReplyDeleteपहले अपने भीतर के रावन को जलाना होगा....सही बात। --सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteरावण अमर है ...अपुन लोग हर साल उसे जलाते हैं फिर जिन्दा कर देते है ...फिर जलाते है ....क्रम चलता रहता है ...पर अन्दर वाले को हम नहीं मार पाते ये तो सही बात है ....क्योकि हम उसे मारने का विचार ही नहीं करते है ... हेमशा जिन्दा रहेगा...
ReplyDeleteरावण इस वर्ष भी नही मरेगा... क्योंकि हमारे भीतर का राम ही मर चुका है.. अच्छी कविता..
ReplyDeleteरावण बोला-
ReplyDelete'' तो इस साल पहले
अपने अंदर बैठे हुए
रावण को जलाओ
फिर राम बनकर
मुझे जला देना ।''
पहले अपने भीतर के रावन को जलाना होगा....सही बात।
बहुत ही सुंदर कविता.
ReplyDeletebahut hi sateekbaat kahi hai aapne. sabse pahle hame apne andar baithe ravan ko jalana hoga.
ReplyDeletetabhi aage baat kuchh banegi.
poonam
बहुत सही ..पहले अपने अंदर के राक्षस को मारना सीखें हम तब हमें रावण जलाने का हक होगा .
ReplyDeleteप्रेरक रचना.
प्रियवर उपेन्द्र जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत अच्छी कविता लगाई है आपने
"…तो इस साल पहले
अपने अंदर बैठे हुए
रावण को जलाओ
फिर राम बनकर
मुझे जला देना"
बहुत ख़ूब !
आपने तो इतनी जल्दी दशहरे की पोस्ट लगा दी । घर जा रहे हैं , संभव हो तो दशहरे पर मेरी पोस्ट भी देखने का प्रयास करें ।
आपकी अनुपस्थिति बहुत खलेगी , लेकिन आपके लिए बहुत बहुत मंगलकामनाएं हैं … घर-परिवार के साथ हंसी ख़ुशी छुट्टियों का आनन्द लें ।
दशहरे सहित दीवाली की अग्रिम शुभकामनाएं
- राजेन्द्र स्वर्णकार
तय है रावण की ज़िंदगी हर हर साल नये रूप में परिधान पहनता है जलने के पहले. पर राम केवल अभिनेता ही बनते हैं
ReplyDelete@ मोनिका जी - रचना सराहने के लिए धन्यवाद
ReplyDelete@ सलिल साहब - षष्ठी पूजा की आपको भी बधाई!!
@ कृष्ण कुमार जी- आप सही कह रहे है। पूरे देहात मे जीयनपुर जैसी मूर्ति मेले मे नहीं बनती थी
@ दीपक जी- आप ठीक कहे रावण अभी भी कही न कही जिन्दा है
@ मनोज जी - अपने अंदर के रावण को ही पहले जलाना होगा
@ संगीता जी @ आलोक जी @ शताक्षी जी @ बंदना जी@ अरुण जी @रजनी जी@ शिखा जी
ReplyDeleteहौसला आफजाई के लिए आप लोंगो का धन्यवाद
@ दिव्या जी@ एकलव्य जी
आप लोंगों का पहली बार मेरे ब्लॉग पर आना हुआ। भविष्य मे भी यह उपकार बनाये रखियेगा.आभार
@ पूनम जी -सही कहा आपने. अब अपने अंदर के रावण को मरकर ही शायद हम कुछ पा सके।
ReplyDelete@ राजेंद्र जी -नमस्कार . दशहरे व दीवाली के लिए आपको भी शुभकामनायें। कविता को पसंद करने के लिए आभार।
@ गिरीश जी- आपका कहना बिलकुल सही है । असल जिंदगी मे रावण के मुकाबले अब राम कही खो रहे है । यहाँ पधारकर अपनी राय व्यक्त करने के लिए आप सभी लोंगो का धन्यवाद।
बहुत सटीक बात ..सुन्दर रचना
ReplyDeleteब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
ReplyDeleteबहुत ही सराहनीय प्रस्तुति
ReplyDeleteहर युग में रावण के लिए एक राम की तलाश है।
पर लगता है इस युग के राम को आजीवन वनवास है
bahut hi sunder rachana upendra ji........yadi har vyakti apne ander chhupe huye ravan ko maar de to sach me shayad es duniya ka swaroop hi badal jaye.......aur waise b sabse pehle hme apne ander ke ravan ko marna jaruri hai..........
ReplyDeleteबढ़िया लिखा है .....
ReplyDeleteयहाँ भी आये , आपकी चर्चा है यहाँ
http://malaysiaandindia.blogspot.com/2010/10/blog-post_13.html
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
ReplyDeleteया देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
साहित्यकार-6
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
बहुत अच्छी प्रस्तुति. आपकी कविता पर मुझे अपनी रावण पर लिखी कविता याद आ गयी. मेरे ही ब्लॉग से
ReplyDelete"अब से रावण नहीं मरेगा"
कहते हैं, रावण व्यथित नहीं होता
मैं, कैकसी-विश्वश्रवा पुत्र
दसग्रीव
सूर्पनखा सहोदर, मंदोदरी पति, लंकेश
अपराधी हूँ ,
हाँ! मैं अपराधी हूँ...
पर मात्र एक
अक्षम्य अपराध
सीता हरण का
पर यहाँ तो होता है
प्रतिदिन
न जाने कितनी ही सीताओं का अपहरण
फिर दुस्श्शासन बन चीर हरण,
करती हैं वो, मरण का
रोज ही वरण
एक अपराध का दंड मृत्यु
सौ अपराध का दंड मृत्यु
फिर क्यों ???
मैं एक अपराध के लिए
युग युगान्तरों तक जलूं
मैं, दशकंधर सबने देखा है
तुम सब कितने सर, किसने देखा है
मैं, लंकेश, लंकापति, दशानन
व्यथित हूँ !!!
मैं रावण हूँ
पर रामायण बदलने न दूंगा
अब मैं रावणों के हांथों नही मरूँगा
ये प्रण लेता हूँ
अब न मरुँगा,
अब न जलूँगा
जाओ ढूंढ़ लाओ,
मात्र एक राम मेरे लिए
तब तक मैं यहीं प्रतीक्षारत हूँ
मैं, कैकसी-विश्वश्रवा पुत्र
दसग्रीव
सूर्पनखा सहोदर, मंदोदरी पति, लंकेश
अपराधी हूँ ,
पर सिर्फ राम का.
@संजय जी @ अमित जी @आरती जी @हरवंश जी @राजभाषा हिंदी
ReplyDeleteआप सभी लोंगो का हार्दिक आभार
@ रचना जी ,
ReplyDeleteइस कविता ने तो यहाँ और चार -चाँद लगा दिए। यहाँ पधारने के लिए शुक्रिया
बहुत सही बात है ! रावण को अमृत तो हमारे अंदर से ही मिलते रहता है ... हमारे अंदर ही बैठा है राम और रावण ... अच्छाई और बुराई ...
ReplyDeleteउपेन्द्र जी ,
ReplyDeleteदशहरे की छुट्टियों में दसहरा देखने गाँव जा रहे है ....हमें तो बरसों हो गए दसहरा देखे ....इधर तो होता नहीं यहाँ दुर्गा पूजा होती है ....बचपन में कभी देखा था जालंधर में वही याद है .......
कविता पढ़ी .....
ये रावण नहीं मरता ...
न मरेगा .....
मर गया तो हम किसे जलायेगे ....?
स्वदेश फिल्म की वो पंक्तियाँ याद आ गईं भाई जी- -
ReplyDelete''मन से रावण जो निकाले राम उसके मन में हैं....
पाप तज के देख रावण राम तेरे मन में हैं..''
वैसे सच्चाई ही बयान की आपने.. फिर भी दशहरे की शुभकामनाएं..
सुन्दर सामयिक रचना !
ReplyDeletevery nice poem. keep it up.
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