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Sunday, September 26, 2010

पहला साक्षात्कार ( लघु कथा )

( चित्र गूगल साभार )

अबोध शिशु की आँखों मे स्वप्निल संसार जन्म लेने लगा था. मुख मे दन्त क्या निकले की मानो पर निकल आये हों. वह उड़ना चाहता था, दुनिया देखना था. बच्चा अंजान था , उसकी इस कोशिश ने पहली बार शरारत की. उसने चपलता के साथ अपने दन्त माँ के स्तन मे गड़ा दिए.

माँ को पहले ही आशंका थी की स्तनपान से स्तन का आकर ख़राब हो सकता है. अब यह आशंका प्रबल हो गयी. माँ ने बच्चे के स्तनपान की आदत को छुड़ाने के लिए स्तन पर हरी मिर्च का टुकड़ा रगड़ दिया.

बच्चे ने जैसे ही स्तनपान करना चाहा वैसे ही उसका मन छनछना गया. मुख पूरी तरह से कसैला हो उठा. अबोध शिशु का पहली बार इस दुनिया की कडुआहट से साक्षात्कार हुआ.


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Friday, September 17, 2010

आपत्ति

दहेज के लिए
बहू की हत्या के अभियोग में
नेता जी की पेशी हुई
जज के सामनें
वे मुस्कराये एवं
भाषण के अन्दाज में
सफाई देते हुए बोले--
"जब सारा देश
नाच सकता है
हमारी उगलियों पर
तब हमारी बहू को ही
भला क्या आपत्ति थी ।।'

( प्रकाशित 7 नव. 2004 स्वतंत्र वार्ता में)

Tuesday, September 14, 2010

हिन्दी - दिवस

हिंदी- दिवस के
शुभ अवसर पर
हिंदी को प्रोत्साहित करने के लिए
हुआ था एक सभा का आयोजन
अतिथि महोदय पधारे थे
मंच पर धीरे धीरे
मुस्कराते हुए
फूल मालाओं के बीच
भाषण की शुरुआत की थी
उन्होंने अपने की छोटे से
परिचय के साथ -
" डिअर ब्रदर्स एंड सिस्टर्स
प्यारे से मेरे फ्रैन्डस मुझे
जे. के. साहब के नामे से पुकारते है
मैं तो कोई ज्यादा
पढ़ - लिख नहीं पाया था
पर, मेरा बेटा कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी से
पी. एच. डी. कर रहा है.....।"

Saturday, September 11, 2010

अपनी शादी मे लिखी एक कविता




एक कवि की शादी और कविता नहीं । तो सबके बहुत कहने पर मैंने अपनी शादी के लिए जो १८ जून १९९९ को थी, ये कविता उस समय लिखी थी जो सब घरातियों और बारातियों को उपहार स्वरुप एक कार्ड पर छपवाकर दी गई। आज ११ साल बाद पुराने कागजों के बीच ये कार्ड मुझसे फिर उलझ गया और मेरे दिमाग में ये फितूर समां गया की इसे ब्लॉग पर डाल दूं । तो आप लोग गुस्ताखी माफ़ करियेगा और इसलिए भी की कविता और वो भी अपने ऊपर और अपनी ही शादी पर थोड़ा मुश्किल है ना ....................

है आज भला क्या बात नई क्यों हँसते चाँद सितारे है
क्यों रंग है फूलों पर छाया क्यों करते आज इशारे है
क्यों आज हवा भी नाच रही क्यों महक महक कर चलती है
क्या इसने कुछ पी रखी है जो बहक बहक कर चलती है॥

उपेन्द्र के शोभित मस्तक पर सेहरा कुछ ऐसा दमका है
जैसे बदल के घूँघट से कोई चाँद ख़ुशी का चमका है
सेहरे ने इसके मुखड़े को कुछ नूर में ऐसा घेरा है
फिर बिन्दू ने अपना सेहरे की तरफ मुंह फेरा है।।

सेहरे के अंदर गुंथे हुए कुछ फर्ज भी है अरमान भी है
सेहरे के महकते फूलों में इन दोनों के लिए वरदान भी है
इक गृहस्थ जीवन का राजा है एक गृहस्थ जीवन की रानी है
दोनों को आपस में मिलकर एक प्रेम की ज्योति जलानी है ॥

पिता सदाफल चाचा रामप्यारे ,रामदुलारे ऐसे आते हैं
रामश्रृंगार और रामाश्रय अपना शुभ स्नेह लुटाते है
राजेंद्र महेंद्र विकाश देवेन्द्र सोनू ज्ञानू बिट्टू छोटू फूले नहीं समाते है
भाई के सिर पर सेहरा देखकर खुशियाँ खूब मानते है ॥

इस परम सुहानी बेला में शुचि- शुभ्र ह्र्दय मिल रहें है आज
भव-सागर नैया खेने को दो प्राणी उत्तर रहें है आज
सब लोग भी उनको आशीष दे रहे है मनमानी
उन्नति पथ पर ये चले सदा और कीर्ति बड़े आसमानी॥

Saturday, September 4, 2010

ग्रुप कैप्टन सचिन रमेश तेंदुलकर


ग्रुप कैप्टन सचिन रमेश तेंदुलकर
छूआ है आज तुमने
आसमां की उन ऊँचाइयों को
जो हुआ करते हैं सिर्फ
ओरों के लिए कुछ सपने।

तुम किया करते थे अपने शतकों से
जिस आसमां को सिर उठाकर नमन
आज लचककर इस धरा पर
उसने किया है तुम्हारा अभिनन्दन।

चूमा है उसने झुककर
आज तुम्हें इस जमीं पर
बिछ गयें हैं फूल हर कदम पर तुम्हारे
गौरवान्वित है सारा देश आज तुम्हीं पर।

तबीयत से तो हर किसी ने यारों
उछाला होगा पत्थर
मगर आसमां को झुका पाया जो
वही है अपना तेंदुलकर।

वायुसेना का ये सम्मान
तुम्हारे उस जज्बे को है सलाम
जिसने कभी हार माना नहीं
हर हल में जीतना
जिसकी है सिर्फ पहचान ।

न मिट सकेगी कभी पहचान
जिसके क़दमों में है आसमान
पूरे भारत देश की शान
तुम हो वो तेंदुलकर महान।

(भारतीय वायुसेना द्वारा सचिन को ग्रुप कैप्टन की मानद उपाधि
से सम्मानित किये जाने के सन्दर्भ में )

(
Photo courtesy - IBN Live)