हिंदी- दिवस के
शुभ अवसर पर
हिंदी को प्रोत्साहित करने के लिए
हुआ था एक सभा का आयोजन
अतिथि महोदय पधारे थे
मंच पर धीरे धीरे
मुस्कराते हुए
फूल मालाओं के बीच
भाषण की शुरुआत की थी
उन्होंने अपने की छोटे से
परिचय के साथ -
" डिअर ब्रदर्स एंड सिस्टर्स
प्यारे से मेरे फ्रैन्डस मुझे
जे. के. साहब के नामे से पुकारते है
मैं तो कोई ज्यादा
पढ़ - लिख नहीं पाया था
पर, मेरा बेटा कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी से
पी. एच. डी. कर रहा है.....।"
hahahahahaahaha
ReplyDeleteaajkal hindi ke rehnuma kuch aie hi hain
sundar vyang
उपेन्द्र जी ,
ReplyDeleteअब तो यह दिवस भी एक त्यौहार सा हो गया है ...यहाँ भी साल भर में इसी महीने हिंदी कार्यक्रमों का आयोजन होता है .....
क्या कहेंगे .....?
kya baat hai :)
ReplyDeletewaah bahut khub upendra ji achha vynagy prahar hai ..........aksar hota hai log apni baton me
ReplyDeletehindi bolte waqt english ko shamil kar na jane kyon garv ki anubhuti karte hain ..........
सुन्दर कटाक्ष
ReplyDeletewah... bahut hi sunder kataksh...
ReplyDeletekam shabd gahari baat.
hakikat bayan karati sunder si prastuti
उपेन्द्र जी कोई कुछ भी कर ले पर हिदीं तो हमारे दिलों में बसी है।
ReplyDeletegood thinking
ReplyDeleteउपेंद्र जी,
ReplyDeleteआप सेटींग्स में एक बार देख लें..आपकी पोस्ट मेरे ब्लॉग फीड पर अपडेट नहीं हो रही...इसलिए मुझे पता नहीं चल रहा...
सुन्दर व्यंगात्मक प्रस्तुति,
ReplyDeleteयहाँ भी पधारें :-
अकेला कलम...
haan .........bilkul sahi.....Hindi Diwas k uplaksh par bhi hindi bolne me pareshan ....yahi banti ja rhi hai dheere dheere aaj hmare naye Bharat ki pehchan...acchha kataksh hai....
ReplyDeletebahut achha vyang kiya aapne yahi hal hai sab jagah , badhai
ReplyDeleteसलिल साहब मेरे ब्लाग पर आकर कीमती सुधाव देने के लिये घन्यबाद । आपका बहुत आभार । सेटींग्स अपडेट हो गयी है।
ReplyDeleteप्रिय बंधुवर उपेन्द्र जी
ReplyDeleteनमस्कार !
कविता में बहुत सटीक व्यंग्य के साथ यथास्थिति का चित्रण करने में सफल हुए हैं ।
बधाई एवम् शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
achcha laga.
ReplyDelete