दहेज के लिए
बहू की हत्या के अभियोग में
नेता जी की पेशी हुई
जज के सामनें
वे मुस्कराये एवं
भाषण के अन्दाज में
सफाई देते हुए बोले--
"जब सारा देश
नाच सकता है
हमारी उगलियों पर
तब हमारी बहू को ही
भला क्या आपत्ति थी ।।'
( प्रकाशित 7 नव. 2004 स्वतंत्र वार्ता में)
क्रूर व्यंग्य।
ReplyDeleteइसे विधायिका की न्यायपालिका को चुनौती माने..या दोनों का सामूहिक मज़ाक इस लोकतंत्र के प्रति.. अच्छी अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
ReplyDeleteसाहित्यकार-महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
ओह नेताओं की सोच ...खतरनाक है
ReplyDeleteव्यंग्यात्मक मार्मिक कविता...
ReplyDeleteme hansu ya roun,
ReplyDeletekyunki krure vyang he
bahut achha kaha he aapne
अच्छा व्यंग है
ReplyDeleteबहुत ही खतरनाक व्यंग।
ReplyDeleteकविता के माध्यम से प्रस्तुत किये गए आपके व्यंग्य बहुत ही करारे और धारदार होते हैं उपेन्द्र जी... पिछला वाला और ये दोनों सटीक मार करते हैं
ReplyDeletebhaut achha likha hai
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