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Wednesday, February 9, 2011

सैनिक शिक्षा सबके लिये अनिवार्य हो

नये दशक का नया भारत ( 4  ) : 
सैनिक शिक्षा सबके लिये अनिवार्य हो
               वर्षों पहले नाना पाटेकर ने प्रहार फिल्म के जरिये एक सपना देखा था , " सैनिक शिक्षा का और एक सार्थक सन्देश दिया था की देश के हर नागरिक को सैनिक शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए. आज के दौर में यह अवधारणा और भी महत्वपूर्ण हो गयी है .जरुरत है आज एक सार्थक कदम के साथ इस सैनिक शिक्षा की अनिवार्यता को समझा जाय और इस पर अमल लाने के प्रयास हो.

              सैनिक शिक्षा आखिर क्यों ?,  सैनिक शिक्षा इस विचारधारा के साथ जुड़ी है कि  देश के  हर नागरिक को मिलिट्री ट्रेनिग अनिवार्य रूप से दी जाय.  चाहे भले ही सबको हथियार और गोले बारूद इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग न जी जाय मगर कम से कम बेसिक चीजें अवश्य  जुडी हो जैसे युद्ध , हवाई हमलों, आतंकवादी हमलों ,प्राकृतिक आपदाओं आदि में एक नागरिक को किस प्रकार सक्रिय होना  चाहिए और उसकी क्या भूमिका हो सकती है ?

                जरा संचिये , २६/११ जैसे मुंबई के आतंकवादी हमलों के बारे में और जो पहले भी हमले हो चुके है. सैनिक शिक्षा सिर्फ सीमा पर  लड़ रहे जवानो से ही संबंधित नहीं हो सकती क्योंकि कई बार तो हालत देश के अंदर ही युद्ध जैसे भीषण हो जाते है. यह शांतिकाल में अपने नागरिकों की विपरीत परिस्थितियों में आत्म रक्षा से भी जुडी होनी चाहिए. सेना का जितना ही आक्रामक पहलू महत्वपूर्ण होता है उतना ही महत्वपर्ण अपना तथा  अपने नागरिकों का बचाव भी होता है. ऐसे आतंकवादी  हमलों  के दौरान एक नागरिक का क्या कर्त्तव्य हो सकता है,  मसलन वह कैसे अपने हो छिपा कर बचा सकता और फिर दूसरे फँसे लोंगों को कैसे बचाया जा सकता है. इसके अतिरिक्त आतंकवादियों से मोर्चा सम्हाले अपने जवानों की किस तरह से मदद की जा सकती है, यह सैनिक शिक्षा के माध्यम से हर नागरिक को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए.

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               लड़ाई सीमा पर  जवान लड़ता है मगर उसकी यह लड़ाई बहुत हद तक उसके बैक अप  , सप्लाई लाइन और पीछे से मिल रहे सहयोग पर निर्भर करती है . ऐसे में आम जनता की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है. रसद , गोला बारूद और  अन्य चीजों की सप्लाई में नागरिकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है. सेना अकेले ही यह सब त्वरित गति से नहीं कर पाती ऐसे में अगर एक प्रशिक्षित जनता का पूरा सहयोग  मिले तो बेहतर हो सकता है.

                युद्ध के समय सिर्फ जवान ही नहीं मरता है वरन दुश्मन के हमलों में आम नागरिक भी मारे जाते है. हर नागरिक को यह पाता होना चाहिए की दुश्मन के जमीनी , हवाई , नुक्लियर बायोलोजिकल  व केमिकल (NBC)  जैसे हमलों मे  किस तरह से सरवाईव  करना है.  हवाई हमलों के दौरान बलैक आउट और  गड्ढों व बंकरों  में छिपना तथा  रासायनिक और जैविक हमलों के असर से  किस तरह से कम प्रभावित हुए बचा जा सकता है, यह हर नागरिक के लिये जानना महत्वपूर्ण होना चाहिए.

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                   भारत एक विशाल देश है यहाँ प्राकृत आपदाओं के दौरान शहरी इलाकों में तो सैनिक मदद जल्दी पहुँच सकती है मगर जब ये हादसे दूर दराज के ग्रामीण इलाके और कठिन रास्तों पर होते है तो सैनिक मदद पहुँचाने में काफी वक्त लग जाता है और सैनिक मदद उन तक पहुंचते  पहुंचते जन धन की काफी हानी  हो चुकी होती  है. अगर इन ऐसी घटनाओं से निपटने के प्रक्षिक्षण आम जनता के पास भी रहे तो ऐसी घटनाओं से होने वाली क्षति को काफी हद तक कम किया जा सकता है.सेना और पैरा मिलिट्री का इंतजार किये बिना राहत कार्य हो उनके आने तक अंजाम दिया जा सकता है. इससे सेना पर निर्भरता भी कम होगी और हर आदमी कम से कम ऐसी घटनाओं से अपनी रक्षा करने  में आत्मनिर्भर बन सकेगा .

                 सैनिक शिक्षा गुंडों , चेन स्निचरो और बदमाशों  से निपटने में आम नागरिक के लिये लाभप्रद साबित हो सकती है. जो प्रशिक्षण ये गुंडे मवाली लेकर पब्लिक को डराने और लूटने आते है अगर वहीं आम नागरिक भी इन घटनाओं से निपटने में प्रशिक्षित हो तो उनका मुकाबला आसानी से किया जा सकता है.  इसके अतिरिक्त सैनिक शिक्षा नागरिकों को स्वयं को  स्वस्थ और तंदरुस्त रखने की प्रेरणा देती है. यह त्वरित कार्यवाही और निर्णय लेने की क्षमता को भी मजबूत करती है.


               रही बात तो,  इतने बड़े विशाल राष्ट्र  में यह मुश्किल तो जरुर है परन्तु असंभव नहीं . हम व्यवसायिक शिक्षा, सेक्स शिक्षा , शारीरिक और योग शिक्षा आदि पर तो बहस कर लेते है परन्तु सैनिक शिक्षा पर न के बराबर बहस हुई है. एक सार्थक प्रयास इस दिशा में होने चाहिए. पहले तो प्रारंभिक कक्षाओं से ही सैनिक शिक्षा एक अनिवार्य विषय करना चाहिए. इसके अतिरिक्त सैनिक शिक्षा के बारे में पत्राचार ,  सी डी , अख़बारों, टी वी इत्यादि के माध्यम से  भी आम नागरिक को शिक्षित और जागरूक करना चाहिए. आज इजराईल  का उदहारण हमारे सामने है जहाँ का हर नागरिक पहले देश का एक सैनिक है नागरिक बाद में. 

इन्हें  पढने के लिये कृपया इस लिंक पर क्लिक करें............................. नये दशक का नया भारत ( ३) : कैसे हो गाँवों का विकास ?  

Tuesday, February 1, 2011

नये दशक का नया भारत ( भाग- ३) : कैसे ही गाँवों का विकास ?

विकसित राष्ट्र कि तरफ कदम बढ़ाते सदी के इस दूसरे दशक में कैसा हो नया भारत ? इस रास्ते में रोड़ा बनी समस्याएं कैसे दूर हो ? आज हर भारतीय के मन में एक विकसित  भारत का सपना तैर रहा है . परन्तु राष्ट्र  के सम्मुख अनेकों समस्याएं इस रस्ते की रूकावट बनी खड़ी है. " नये दशक का नया भारत " एक छोटी सी कोशिश है, बस आपका सुझाव और मार्गदर्शन मिलता रहे ..... 




हल !
कि  जिसकी नोक से 
बेजान धरती खिल उठती
खिल उठता सारा जंगल 
चांदनी भी खिल उठती......
                गिरिजा कुमार माथुर की लिखी " ढाकबनी " कविता की  ये चंद पंक्तियाँ जिस हल के महत्व को बखूबी बयां कर रही है उसे आज किसान दीवाल पर टांग शहरों  कि तरफ मजदूर बनाने के लिये पलायन करता जा रहा है. कहा जाता है भारत गाँवों  का देश है  और उसकी आत्मा गाँवों में निवास करती है. देश की करीब अस्सी प्रतिशत जनसंख्या  गावों में निवास करती है. ये गाँव ही भारतीय अर्थवयवस्था के रीढ़ की हड्डी है और शहरों के विकास का रास्ता इन्हीं गाँवों से होकर जाता है

                मगर भारतीय गाँव आज इतने पिछड़े हुए क्यों है ? क्यों इनके विकास के लिये उचित प्रयास नहीं हुए ? ग्राम्य विकास में अडचने क्या है ? ना जाने कितने  सवाल जेहन में घूम जाते  है. आज आवश्यकता है गाँवों को उनके फटेहाल और गिरी हुई हालत से निकालकर एक समृद्धि  और उन्नत बनाने क़ी. गाँव सदियों से ही शोषण और दासता के शिकार रहे है. अंग्रेजी शासन काल में इन गावों की दशा पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया गया, उस समय जमींदारों और सेठ- साहूकारों ने खूब जमकर जनता का शोषण किया. स्वतंत्र प्राप्ति के बाद भी इसमें कुछ सुधार नहीं हुए और हमारे राजनेता इसे बखूबी जारी रख अपना पेट और घर भरते रहे

                 आर्थिक और सामाजिक संकरण कुछ ऐसे बुने गये की विकास के ज्यादातर प्रयास सिर्फ शहरों तक ही सीमित रह गयें. जहाँ शहरों में ऊँची- ऊँची अट्टालिकाये और फ्लैट बनते गये , अय्यासी और मौज मस्ती के सारे साधन मौजूद होते गये वहीं गाँव मूलभूत सुविधाओं से भी महरूम हैं 
                 
                  भारत कृषि प्रधान देश है फिर भी किसानों को उन्नत किस्म के कृषि यन्त्र और खाद्य सही समय पर नहीं मिल पाते. अगर थोड़ा बहुत कुछ प्रयास हुए भी तो वह जरुरतमंदों  को कम जुगाड़ू लोगों तक ज्यादा पहुंचे. महंगे कृषि के आधुनिक  यन्त्र गरीब जनता उठा  नहीं सकती  इसलिए आज भी कृषि बैल  और जैविक  खाद्यों  पर आश्रित है
                 कृषि पूरी तरह से मानसून  पर निर्भर है. जिस साल सही समय पर  मानसून गये उस साल तो ठीक है वरना सब बर्बादसिंचाई के दूसरे साधन जैसे नहरकुवाँ ,और तालाब हर जगह उपलब्ध नहीं होते . इसका परिणाम ये होता है कि कहीं फसलें  पानी  के बिना  सुख  जाती है तो कहीं पानी  में डूबकर  नष्ट  हो  जाती है. ऐसे  में सिंचाई  के पारंपरिक  साधन जैसे कुवाँ ,और तालाब भी धीरे  धीरे  अब  खात्मा  होने  लगे  है. तालाब अब पट चुके है उनपर दबंगों का कब्ज़ा है. इन पारंपरिक साधनों जैसे कुवों  तालाबों  और नहरों को फिर से खोदकर बंजर जमीनों को फिर से हरा भरा किया जा सकता है.  

                    गाँव शिक्षा के क्षेत्र में काफी पिछड़े हुए है. प्राथमिक विद्यालयों की हालत तो सबसे ख़राब है. इसके अध्यापक गण ज्यादातर दायित्वहीन, अकर्मण्य और आलसी होते है. उनका मन स्कूल में कम और अपने घर- गृहस्थी में ज्यादा रहता हैवे खुद  शहरों में रहकर अपने बच्चों को पब्लिक  स्कूलों में पढ़ना पसंद करते है और  प्राथमिक  विद्यालयों को सिर्फ एक आफिस से ज्यादा समझते हुए आकार ड्यूटी बजा कर चले जाते है. महिला शिक्षक तो स्वीटर बुनाई और बातों में ही ड्युटी पूरी कर लेती है. मजाल जो कोई कुछ बोल दे, वरना मियाँ जी हाजिर हो जायेगे दल बल के साथ.
                   आज गाँव शिक्षा के क्षेत्र में काफी पिछड़े हुए  है. शिक्षा के लिए उच्च  संस्थानों की कमी  है. ऊँचीं शिक्षा के लिये शहरों का ही रुख करना पड़ता है. ग्रामीण लड़के तो किसी तरह शहरों का रुख कर लेते है मगर ग्रामीण लडकियाँ आज भी इससे वंचित रह जातीं है और या तो उनकी पढ़ाई छुट जाती है या फिर प्राईवेट बी. . करना पड़ता हैकहीं- कहीं स्कूल इतने दूर होते है की माँ बाप चाहकर भी  अपने बच्चियों को सिर्फ इसलिए  स्कूल नहीं भेज पाते की स्कूल आना जाना आसान नहीं होता
                   गावों में स्वास्थ्य की भी समुचित व्यवस्था नहीं है. यहाँ ज्यादातर लोग झोला छाप डाक्टरों के भरोसे ही रहते है क्योकि सरकारी चिकित्सालय नाममात्र के ही है और हर जगह उपलब्ध नहीं होते . और जो है भी उसे नर्स और दाई ही ज्यादातर सम्हाले हुए है. डाक्टर लोग अक्सर शहर  में अपनी प्राईवेट प्रेक्टिस में ही  व्यस्त होते है. ऐसे  में झोलाछाप डाक्टर अपनी अज्ञानता  के चलते बीमारी को और बढ़ा देते है और ऊपर से पैसे तो ऐठते ही है. अगर दवा किस्मत से क्लिक कर गयी तो ठीक वरना गरीब जनता को फिर शहरों की तरफ ही भागना पड़ता है.
                                 बिजली की  कमी गावों की एक बड़ी समस्या है. पर्याप्त बिजली मिल पाने से किसान अपना कृषि कार्य समय पर नहीं कर पाते. बिजली कर्मचारियों   से मिली भगत कर बिजली चोरी बदस्तूर जारी है. शाम होते ही कटिया लग  जाना आम बात है. टूटी फूटी सड़के भी गाँवों की  एक समस्या है. आवागमन  के साधन  भी काफी कम है. गावों को अगर सड़क, स्वास्थ्य, बिजली, शिक्षा और  पानी की समस्याओं से आज निज़ात दिला दी जाये तो यहाँ का शांत, खुला और मनोरम वातावरण शहरों की धुल-धक्कड़ , भाग - दौड़   और तंग वातावरण की जगह  कितना अच्छा हो जाता .  अंत में पं. सुमित्रा नंदन 'पन्त' की ये कविता , जो इन गावों और उनके निवासियों का सच्चा और स्वाभाविक चित्र अंकित करती है .:-
भारत माता ग्राम वासिनी ! 
खेतों में फैला है , स्यामल धूल भरा मैला सा  आँचल
गंगा-यमुना के आंसू जल , मिटटी की प्रतिमा उदासिनी
भारत माता ग्राम वासिनी !


                  ये तस्वीर  आर्कुट मित्र धीरज के प्रोफाइल से ली गयी है , जो आधुनिक भारत के एक  गाँव में बिजली नहीं होने पर  हरिकेन लेम्प के उजाले में बर्थडे मानते हुये की है.............



इन समस्यायों के बारे में कुछ ई- मेल से सुझाव भी आये जिनमें :-
सुशील बाकलीवाल  साहब का  कहना है , " अच्छी सड़के और पर्याप्त बिजली , यदि ये दो वस्तुयें भी गाँव वालों को व्यवस्थित रूप में मिले तो वर्तमान ग्रामीण विकास के लिये यह एक प्रकार की उपलब्धि ही होगी , इसके बाद तो ग्रामवासी भी अपने  विकास को स्वयं ही आगे बढ़ा लेंगें ."
आर्कुट मित्र अनिल कुमार के शब्दों में , " जितना पैसा रिलीज होता है ग्रामीण विकास के नाम पर अगर उसमे का आधा भी सही जगह खर्च होता तो भी तस्वीर कुछ दूसरी होती. ऊपर से लेकर नीचे तक बस पैसों की बंदरबाट मची है. "

अन्य भाग पढने के लिये कृपया इस लिंक पर क्लिक करें.............................
नये दशक का नया भारत ( भाग- १ ) : कैसे दूर हो बेरोजगारी  ? 
नये दशक का नया भारत ( भाग- 2 ) : गरीबी कैसे मिटे ?

इस श्रृंखला की अगली कड़ी  " नये दशक का नया भारत ( भाग- 4  ) : सैनिक शिक्षा सबके लिये  " में आप सबके विचार और सुझाव आमंत्रित है ,  जो आप मुझे - मेल  ( upen1100@yahoo.com ) से भेज सकते है  जिन्हें आपके नाम के साथ इस अगली पोस्ट में उद्धरित किया जायेगा. इस पोस्ट में रह गयी कमियों से भी कृपया अवगत करने का कष्ट करे ताकि अगली कड़ी को और अच्छा बनाया जा सके.