(अपनी लिखी एक पुरानी लघुकथा जो दैनिक 'हिंदी मिलाप' में १० अगस्त २००२ को प्रकाशित हुई थी )
आज प्रेमी और प्रेमिका दोनों बहुत ही महत्वपूर्ण फैसला करने के लिए मिले थे. प्रेमिका ने आँखों में घड़ियाली आँसू भरकर प्रेमी के सामने अपना रोना रोया , " डियर, मै तो तुम्हारे बिना जीने की कल्पना से ही कांप जाती हूँ , क्या करूँ ? मेरा खूसट बाप हम दोनों के प्रेम के बीच में आ गया है. उसने किसी भी कीमत पर हम दोनों को एक न होने देने की कसम खा रखी है. अब मै अपने बाप के खिलाफ भी नहीं जा सकती . क्या ऐसा नहीं हो सकता की हम दोनों आपसी सहमति से अलग हो जाये ? "
प्रेमिका की समझ में वैसे अपने बाप की सीख बहुत जल्दी आ गयी थी. सच भी तो था, प्रेमी बेरोजगार था. शादी के बाद जिंदगी की गाड़ी आगे चलने के लिए तो पैसे की जरुरत पड़ेगी ऐस - आराम की जिंदगी बेरोजगार पति के सहारे मुश्किल थी. इसलिए वह आज प्रेमी को साफ साफ मना कर देने का इरादा करके आई थी.
प्रेमी ने घबराने का नाटक करते हुए सीने पर हाथ रखकर कहा , " मेरी जान, ये तुम क्या कह रही हो, तुम्हारे बिना तो मै ख़ुदकुशी कर लूँगा. "
प्रेमी को तो बिलकुल यकीं ही नहीं हो रहा था . मानो प्रेमिका ने उसके मन की बात छीन ली हो . पीछा छुड़ाने का इरादा तो वह भी आज करके आया था. बाप के पसंद की लड़की से शादी होते ही लड़की का बाप अपने विभाग में उसकी नौकरी लगाव देने का वादा किया था. प्रेमी मन ही मन खुश हो रहा था.
लड़की ने सुबकते हुए कहा , मगर डियर, हम अकेले इस प्यार की दुश्मन दुनिया से कब तक लड़ पायेंगे, सच दुनिया वालों ने हम प्यार करने वालों के लिए कितने बंधन बना रखे है "
" ठीक है मेरी जान,अगर तुम्हारे ख़ुशी के इतना कुछ किया तो आज क्या तुम्हारी ख़ुशी के लिए इस प्यार की कुर्बानी नहीं दे सकता. तुम्हारी ख़ुशी ही मेरी ख़ुशी है. मगर एक बार............ " प्रेमी की आँखों में वासना के कीडे तैर रहे थे.
" ठीक है मगर आज के बाद तुम हमेशा के लिए मुझे भूल जाओगे " प्रेमिका को तो जैसे यकीं ही नहीं हो रहा था की प्रेमी इतनी आसानी से पीछा छोड़ देगा. प्रेमिका को लगा की प्रेमी ने उसके मन की बात छीन ली. इतनी छोटी सी कीमत .अब सिर्फ इस एक मुलाकात के बाद बाप के पसंद के अमीरजादे से शादी करने के लिए स्वतंत्र होगी. प्रेमिका ने स्वीकृति दे दी और दोनों एक दुसरे से लिपट गये. जिंदगी भर साथ जीने- मरने के कसमें और वादे घुट- घुट कर दम तोड़ रहे थे.