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Friday, December 31, 2010

नये वर्ष की शुभकामनायें

(२ जनवरी १९९४ को इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाले दैनिक 
" अमृत प्रभात " में प्रकाशित मेरी कविता )
नये वर्ष की शुभकामनायें

गाँवों की धूलों पर 
और, खेतों की मेंड़ों पर 
टहलते हुए किसान को 
नये वर्ष की शुभकामनायें ।।

दादा की चौपालों से 
और, थिरकती हुई चालों से
गूंजने वाली झंकारों को
नये वर्ष की शुभकामनायें ।।

बच्चों की किलकारियों  से
और, बूढी माँ  की लोरियों से
निकलने वाली आवाज को 
नये वर्ष की शुभकामनायें ।।

तंग जीवन की घुटन से
और, अरमानों की टूटन से
निकलने वाली चीत्कार  को 
नये वर्ष की शुभकामनायें ।।

देहातों की पगडंडियों से
और, बांसों के झुरमुटों से
गुजरने वाले पवन को 
नये वर्ष की शुभकामनायें ।।

Chitra Google Sabhar


Sunday, December 26, 2010

फर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी

Wg Cdr BSK Kumar
             ये प्रस्तुति मेरी बड़ी कहानी " फर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी " का  एक छोटा हिस्सा है. भारतीय वायु सेना के इस जांबाज हेलीकाप्टर पायलट विंग कमांडर बी. एस. के. कुमार को सुनामी  के दौरान शीघ्र कार्यवाही, जांबाज दिलेरी , हैरत अंगेज कारनामों और देश- सेवा के फर्ज को अपने परिवार से भी ऊपर समझाने के लिए , शांतिकाल में वीरता के लिए दिए जाने वाले दूसरे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार " कीर्ति चक्र" से नवाजा गया.
          अंडमान और कार निकोबार के निवासी 25 दिसम्बर 2004 की देर रात जब क्रिसमस की पार्टी के बाद जब अपने अपने घरों में नींद  के आगोश में समायें होंगे तो उन्हें जरा भी इस बात का अंदेशा नहीं रहा होगा की अगली सुबह उनकी नींद किसी प्यारे  एहसास के साथ नहीं बल्कि सुनामी की भीषण गर्जना के साथ टूटेगी. 26 दिसम्बर 2004 की सुबह जब सुनामी ने दस्तक दी तो लोंगों की अलसाई नजरे खौफनाख  मंजर देख कांप उठी . हजारों लोग पल भर में बेघर हो चुके थे और जीवन की आखिरी लड़ाई लड़ते हुए आसमान की तरफ किसी फ़रिश्ते के इंतजार में देख रहे थे.
             विंग कमांडर बी. एस. के. कुमार कार निकोबार स्थित एयर बेस  में MI-8 हेलीकाप्टर फलाईट  के कमांडिंग ऑफिसर थे. पहले तो वे अपनी पत्नी की आवाज को अनसुनी करते हुए ध्यान नहीं दिया . लेकिन तुरंत ही उन्हें किसी बड़े खतरे का आभास  हो गया  .  किसी तरह वे अपने पत्नी और दो बच्चों के साथ घर से बाहर आने में सफल हुए तो बाहर का मंजर देख उनका दिल दहल गया. सुनामी का कहर लोंगों पर टूट रहा था और देखते देखते लोग मौत के मुंह  में समा रहे थे. चारों तरफ से मदद के लिए आवाज आ रही थे.
Tsunami disaster at Air Base Car Nicobar
          उन्होंने ने बिना तनिक भी देर किये हैंगर की तरफ  दौड़  लगाई. कुछ ही मिनटों में एक MI-8 हेलीकाप्टर हवा में टेक ऑफ कर चुका था. उन्होंने चेन्नई स्थित ताम्ब्रम एयर बेस  को इस बात की सूचना दी. यह अंडमान और कार निकोबार द्वीप पर मची तबाही की पहली खबर थी. बड़े- बड़े पेड़ उखड़कर पानी में तैर  रहे थे . लोग उसे पकड़े मदद की गुहार कर रहे थे. कुमार ने अपने साथी सैनिकों के साथ बचाव कार्य को अंजाम देना शुरू किया . जी-टी वी से एक कार्यक्रम में बकौल उनकी पत्नी बिंदु लक्ष्मी, " हवा में हेलीकाप्टर देख हमें  अंदाजा हो गया था की ये जरूर बी .एस.के. ही होगे और हम  सबने राहत की साँस ली.
          करीब 5 घंटे के अथक मेहनत के बाद लगभग 350 लोंगों को ऊंचाई पर स्थित स्थन पर पहुँचाया गया. इस आपरेसन के दौरान काफी मुश्किलात का भी सामना करना पड़ा, क्योंकि हेलीकाप्टर के विन्च के सहारे भी 2 या 3 लोंगों को लाना पड़ रहा था. कुमार को उम्मीद थी की विन्च यह भार उठा  लेगा , क्योंकि इसकी अधिकतम भार सीमा लगभग 150 कि. ग्रा .रहती है. परन्तु फिर भी ये एक भारी रिस्क था और हेलीकाप्टर समेत बचाव दल के सदस्यों के साथ कुमार की जान को भी खतरा था मगर इसकी परवाह ना करते हुए उन्होंने अपने कार्य को जारी रखा. पहले हेल्काप्टर का ईधन समाप्त होने के बाद उन्होंने दूसरा हेलीकाप्टर चेंज    किया. कई बार फायर  टेंडर के छत  पर सींढी लगाकर  उसपर लोंगों को उतारा गया और फिर उन्हें सही जगह पर पहुचाया गया.
         हेलीकाप्टर चेंज - ओवर के दौरान ही उन्हें हाथ के इशारे से थम्प्स अप  करके उनके परिवार के सलामत और सही होने कि जानकारी दी गयी. जब वो इस आपरेशन को अंजाम देते समय लोंगों को चिल्लाते और मदद के लिए पुकारते देख रहे होंगे तो  वे अपने परिवार के सलामती के  बारे में सिर्फ सोंच सकते रहे होंगे ना कि यकीं, क्योंकि काफी देर तक उन्हें ये भी नहीं पता था कि उनका परिवार किस हाल में है. बकौल कुमार , " ऐसे हादसे में पहली प्राथमिकता अपना परिवार न होकर ज्यादा मुसीबत - जदा दुसरे  लोंग होने चाहिए"
Dharmsila with 4 years old son, w/o Late Cpl  RN Singh,  survived by  this operation but her husband was not so lucky

.            कुमार कि इस जांबाजी  और दिलेरी से प्रेरणा लेकर जिंदा बचे वायुसैनिकों ने नए जोश के साथ इस बचाव कार्य में सहयोग  दिया. रन - वे पूरी तरह से क्षतिग्रस्त  हो गया था.  पुरे दिन बचाव कार्य चलता रहा. परन्तु अँधेरे में मुश्किलें आने लगी थी. रन वे के किनारे के लाईट  इंडिकेटर टूट चुके थे. मगर इस काम को भी कुमार और उनके साथियों ने रन -वे के किनारे केरोसीन के लेम्प जलाकर  इंडिकेटर के रूप में इस्तेमाल किया . कुमार कि ये उड़ान इस मायने में  भी महत्वपूर्ण थी कि वे यह उड़ान फ्लाईंग यूनिफार्म    में  नहीं बल्कि बनियान और लोअर में नंगे पाँव उडी थी और बचाव कार्य को नंगे पाँव ही अंजाम दिया था, क्यंकि सब कुछ पानी में बह गया था. यह ये साबित करता है भारतीय सेनायें विकट परिस्थिति में भी किस तरह से अपने फर्ज को निभा सकती है.
                          केरल में बैठे कुमार के माता पिता अपने बेटे के सलामती के लिए परेशान थे क्योंकि मोबाईल  संपर्क टूट चुका था और  मीडिया के हवाले से सुनामी के भीषण विनाश की ख़बरों से उनका  भी मनोबल टूट गया था. कार निकोबार का संपर्क पुरे देश के एयर  बेस से टूट गया था. मगर जब संपर्क स्थपित हुआ और दक्क्षिण   कमान मुख्यालय त्रिवेंद्रम से उन्हें अपने बेटे कि सलामती और उसके जांबाज कारनामों कि खबर मिली तो  उनका सीना फक्र से चौड़ा जरूर हो गया होगा. 15 जुलाई 1963 को केरल के क्वीलोन जिले में जन्में बी. एस. के. कुमार ( भगवान श्री कृष्ण कुमार ) का पूरा नाम जब उनके माता पिता ने रखा होगा तो उन्हें जरा भी  इस बात का ये अंदेशा नहीं रहा होगा कि ये सचमुच  सैकड़ों जिंदगियों के लिए एक दिन भगवान  का ही रूप  लेकर आयेगें. कीर्ति चक्र से नवाजे गए बी.एस.के कुमार आज वायु सेना में ग्रुप कैप्टन है. यह प्रस्तुति श्री  कुमार जी को नमन और सुनामी के कारण जान गवा बैठे हजारों लोंगों को एक विनम्र  श्रद्धांजलि  है.

Tsunami Memorial at Kanyakumari

Monday, December 13, 2010

हम सबके नाम एक शहीद की कविता

Chitra Google Sabhar

संसद हमले की 9 वीँ बरसी पर उन शहीदोँ को नमन और एक कविता उन्हीँ एक शहीद की जुबानी हम सबके लिये :-

माँ !
देश ने भले खोया हो
एक बहादुर सिपाही
मगर तुमने तो खोया
सिपाही के साथ
एक बेटा भी
एक माँ का दर्द बेटे से अच्छा
शायद ही कोई जाने
जिन लोगों ने
भारत माँ को दुत्कारा
वो किसी दूसरे के माँ के आँसू
क्या पोंछेगे ?

पत्नी !
मैँ अपराधी हूँ
तुम्हारें माथे का
सुहाग छिनकर
हाँ गर्व जरूर हुआ होता
जब मेरे जाने के बाद
तुम्हारे आँखोँ का आँसू
पोछने के लिये
एक अरब हिन्दुस्तानियोँ मेँ सेँ
एक हाथ भी उठा होता।

बेटा !
कब तक देखोगे
मेरे शहादत पर
घोषित फ्लैट का रास्ता
क्योँकि अब उसमेँ कोई
और काबिज है
राहत पैकेज
जो तुम तक पहुँचते पहुँचते
आधे से भी कम रह जायेगी
हमदर्दी
जिसकी जरूरत
मेरे ख्याल से
एक शहीद के बेटे को
Chitra Google Sabhar
नहीँ पड़नी चाहिये
इसलिये अब उठो
अपने पैर पर खड़े होवो
और बिना किसी आसरे के
दुनिया को दिखलाओ
कि मैँ एक बहादुर शहीद का बेटा हूँ ।

और अन्त मेँ
मेरे प्यारे देशवाशियोँ !
शहीद के मरने के बाद
उसकी शहादत को
जिन्दा रखना सीखो
न कि सिर्फ फूल- मालायें चढ़ाकर
अपने कर्तव्यों की  इतिश्री 
और मरने के बाद हमें
हमेशा के लिये मार देना ।
' जयहिंद '

Tuesday, December 7, 2010

छलिया प्रेमी

बहुतै  दिन से  हम सोंचत  रहनी की कौनों भोजपुरिया मिठास के साथ पोस्ट  ले आयीं. आज आपन पुरनका डायरी हाथ मे लागल तै आपन लिखल एक गो पहिली लघुकथा  हाथ लागल और उहो भोजपुरी  में , बस तै इकरा के आप लोगन के समने अवले  में तनिकों देर ना लागल............एक बात अऊर की ये कहानी के साथ एक गो अऊर कहानी जुडल बाये की जब ई अख़बार में छपे के खातिन गइल तै स्वीकृति तै हो गइल बके इकरा के हिंदी में तब्दील कैले के शर्त पर   . मगर हम दूसर कहानी भेंज दिहनीं बजाये एकरा में  तब्दीली के. काहे से की ई आपन के  पहिली लघुकथा रहल अऊर आज भी ई डायेरी के शोभा बाये ...( तै पेश बाय  आपन  ११ नव . १९९६  के लिखल पहिली लघुकथा  " छलिया प्रेमी "  )
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 सुबह जब  बुढाए  के साँझ के गोदी  सोवै  जात रहल तै वो बेला में रजमतिया के खेत के मेडी से गुजरत देख मिसिर के लौंडा रतन  के मन मचल गएल . आपन इशारा से रतन रजमतिया के मकई  के खेते में बुलावनै .
" ना बाब ना ,  केहू देख लेई तै का होई  " रजमतिया सकुचात  आपन बात कही के भागे  लागल.
" अरे नाहीं रे केहू देखि लेई तै का हो जाई. हम तै तोहरा से  पियार  करी  ला " रतन आपन  बाहीं कै सहारा देत रजमतिया से बोलनै.
" अगर कुछो गड़बड़ भई गयेल तब "
" तब का हम तोहरा से वियाह कई लेबी "
" अऊर  अगर जात बिरादरी कै चक्कर पड़ी गयेल तब "
" हम अपने साथै तुहके शहरवा भगा ले चालब ना........ " रतन रजमतिया के अपने  पहलु में समेटत कहने .
रजमतिया भी अब एतना आसरा  पाके मन से  गदगद हो गइल  और अपने भविष्य कै सपना सजावत   समर्पण कै दिहले.
कुछे देर बाद मिसिर बाबा अपने खेते के निगरानी बदे  वहां से गुजरने तै कुछ गड़बड़ कै आशंका तुरंते भाप  चिल्लैनन " कौने हई रे खेतवा में.. .. आज  लगत बाये कुल मकई टुटी  जाई ."
उधर रजमतिया के गाले  पै  रतन कै थप्पड़ पड़ल और चिलाये के कहनै ," दौड़िहा  बाबू जी हम रजमतिया के पकड़ लिहले बानीं ."  इ ससुरी आज मकई तोरै बदे खेत में घुसल रहे , " रजमतिया के तनिको  ना समझ  में आवत  की ई   का  होत बाये. मगर रतानवा  सब  समझ  गयेल रहेल की   अब  रजमतिया के ही चोर   साबित  कईके उ  रजमतिया से पीछा  छुड़ा  सकत  हवे . काहें के  की अब रजमतिया के भोगले के बाद अब उमें रतन कै तनिको इच्छा ना रही गएल रहल .  अऊर इसे उ बिल्कुले पाक साफ बच जात रहने अपने बाप    के नज़र मे.
फिर  तै  मिसिर  बाबा अऊर    रतन   दोनों  रजमतिया पै सोंटा और लात - घुसन    कै बौछार कई देहेनें. इधर रजमतिया छलिया प्रेमी के ठगल बस देखत रही गएल.

Tuesday, November 30, 2010

राजीव दीक्षित जी का जाना















 ‘भारत स्वाभिमान’ के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं सचिव श्री राजीव दीक्षित जी का अकस्मिक देहावसान आज ३० नव. को सुबह करीब १.००  बजे . भिलाई के स्टील सिटी अपोलो हॉस्पिटल  में हृदय गति रूकने  से हो गया। इन दिनों ये  छत्तीसगढ में ‘भारत स्वाभिमान’ के राष्ट्रीय दौरे पर थे।  पता चला है कि उनका पार्थिव शरीर आज विशेष विमान से ‘पतंजलि योगपीठ’ लाया गया, जहाँ लोग उनके अंतिम दर्शन के लिए उमड़े हैं। उनका अंतिम संस्कार कनखल (हरिद्वार) में कल १  दिसंबर २०१०  को प्रातः १०.००    बजे किया जाएगा


 स्वदेशी के प्रखर प्रवक्ता, राष्ट्रीय चिंतक ,जुझारू सत्य को दृढ़ता से रखने के लिए पहचाने जाने वाले ४३ वर्षीय भाई राजीव  जी का जन्म अलीगढ़ में ३० नव. १९६७ को एक स्वतंत्रता  सेनानी परिवार में हुआ था. इलाहाबाद से इंजीनियरिंग  की शिक्षा  ग्रहण करने वाले राजीव जी भगत  सिंह , चंद्रशेखर  आजाद और महात्मा गाँधी के विचारों से प्रभावित  थे.  वह एक वैज्ञानिक भी थे और फ्रांस में दूर संचार क्षेत्र में सर्विस  भी कर चुके थे.


जहाँ लोग विदेशी डालरों के पीछे पागल हैं वही राजीव जी सब कुछ छोड़कर  एक एक पल देश के लिये जीने की ठानी ,  जिनके तन मे, मन मे, हृदय मे, प्राण मे देश प्रेम ईतना प्रखर था की अपना पूरा बचपन, अपनी पूरी जवानी, अपना पूरा जीवन राष्ट्र के लिये अर्पित कर दिया था। दो दशक से जो देश भर मे घुम घुम कर के लोगो के भीतर स्वाभिमान जगा रहे थे और वर्तमान मे बाबा रामदेव जी के सानिध्य में पतंजलि योगपीठ के अन्तर्गत "भारत स्वाभिमान"  के राष्ट्रिय प्रवक्ता एवं सचिव का दायित्व देख रहे थे।  


सन १९८६  में इस   वैज्ञानिक ने  अपना सुनहरा भविष्य त्यागकर  पत्रकारिता  की दुनिया  में कदम  रखते  हुए  इलाहाबाद में  बहुराष्ट्रीय कंपनियों  के खिलाफ  स्वदेशी  आन्दोलन  की नीव  रखी  और चैथम लाइन्स ,  इलाहाबाद के एक छोटे  से कमरे  से  " आज़ादी  बचाओ  आन्दोलन  " की शुरुआत    की और "दूसरी  आज़ादी " तथा "आज़ादी  बचाओ  आन्दोलन "  नामक  पत्रिका  निकाली। बाद में वर्धा को इन्होने अपना कार्यक्षेत्र बनाया और देश भर में भ्रमण करके हुए  स्वदेशी आन्दोलन का आन्दोलन का अलख जागते रहे 








मेरी  इनसे  व्यक्तिगत  मुलाकात  सन  १९९३  में ,  जब मैं  इलाहाबाद में स्नातक कर रहा था तब एक मंच पर हुई जो अमेरिका के" डंकल कमीशन " के खिलाफ आयोजित किया गया था और  उसमें राजीव जी मुख्य वक्ता थे , जहाँ   इन्होने  मेरे द्वारा पढ़ी  गई  " डंकल प्रस्ताव " पर एक कविता पर बधाई दी  थी। व्यक्तिगत रूप  से ये बहुत ही अच्छे और मददगार इन्सान थे।  


 




इनके लेक्चर पूरी तरह से तर्क व सत्य पर आधारित हैं। अपने आंदोलन के बल पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों  के खिलाफ लोंगों में जाग्रति पैदा की । सन् 1999 में इनके व्याख्यानों से देश भर में बनी स्वदेशी की हवा के बदौलत लाखों समर्थक तथा हजारों कार्यकर्ता बने। स्वदेशी आंदोलन के  उत्थान का श्रेय राजीव दीक्षित को जाता है। श्री राजीव दीक्षित में एक अदभुत  प्रतिभा थी जिनका लोहा सभी मानते है कि किसी चीज को देखकर या पढ़कर उस कार्य की विवेचना भली भांति करते थे जो सभी लोग पंसद करते थे। राजीव जी का  चले जाना ‘भारत स्वाभिमान’ का ही नहीं वरन् राष्ट्रीय क्षति है जो कभी पूरी नहीं होगी। देश ने  अपना गांधीवादी सपूत खोया है। इन्हे भावभीनी श्रद्घान्जली ..........


राजीव जी के बारे में विस्तृत जानकारी.........
www.rajivdixit.com
www.bharat-swabhiman.com


( आभार .... भारत स्वाभिमान/  चित्र-गूगल )










  
 दो पंक्तियाँ आपके लिए.....
आपका यूँ चले जाना
निश्चय ही छोड़ देता है
निराशा के अँधेरे में
मगर,
आपके जलाये दिये
अभी भी जल रहे हैं
और अँधेरा  उन्हें छू भी नहीं पा रहा
दिख गयी हैं  एक ज्योति
अँधेरे को चीरकर आगे बढती हुई ।।




Sunday, November 28, 2010

वे याद आये बहुत

 याद आयी बहुत हम रोये बहुत
 आंसुओं से ये पलके भिगोये बहुत ।।
 
बहुत चाहा की जी ले हम उनके बिना 
पर ख्यालात बनकर वे याद आये बहुत।।
                     




चित्र गूगल साभार
पल भर भी न गुजरा दो वक्त सही 
 राह देख - देख लम्हें गुजारे बहुत।

 कसक उठती रही आह बढती रही
ग़मों के बोंझ हम उठाये बहुत।।



कुछ भी न रहा जिंदगी हुई तन्हा 
                                              " उपेन्द्र "कदम दर कदम हम खोये बहुत।।

 




                

Wednesday, November 17, 2010

मेरा दिल

photo curstey--www.wowhollywood.blogspot.com


                                          (  यह कविता कल टी. वी. में आये इस समाचार से प्रेरित होकर लिखी गई है --जिसमे प्रेमी से प्रेमिका हीरे की अँगूठी की मांग करती है. प्रेमी इसके  लिए अपने पुराने आफिस से चेक बुक चोरी करके बैंक से पैसे  निकालता है और पकड़ा जाता है. आज वह जेल में है और प्रेमिका ने अभी तह उससे मिलने तक की जहमत नहीं उठाई )

Sunday, November 7, 2010

तेरा रूप निखर आया है

( चित्र गूगल साभार )
हर शय बेचैन है हर जगह तेरा साया है
चाँद से भी ज्यादा तेरा रूप निखर आया है.

ठहर गए मुसाफिर सिर्फ एक झलक पाने को
हर लबों पर बस तेरा ही नाम छाया है.

चंचल हो उठी हवा मदहोश हो उठे भौरें
हर दिल मे तेरा अक्स उतर आया है.

बहुत गुमान रहता था आईने को खुदपर
देखकर तेरा हुस्न आईना भी शरमाया है.

दूर दूर तक फैली हुई है तेरे हुस्न की चर्चा
"उपेन्द्र" हर जर्रे जर्रे पर तेरा नाम उभर आया है .

Friday, November 5, 2010

आप सभी को दीवाली मुबारक हो

                   सृजन _ शिखर  ब्लॉग की तरफ से आप सभी को दीवाली मुबारक हो

Tuesday, November 2, 2010

पंचायती राज चुनाव और मुर्गे की टांग

   महात्मा गाँधी और राजीव  गाँधी ने पंचायती राज व्यवस्था के जो सपने देखे थे क्या वो आज के परिपेक्ष्य मे सफल हो रहे है ? अभी हाल मे ही हुए उत्तर प्रदेश मे पंचायती राज चुनाव  को देखकर तो हाँ  बिलकुल नहीं कहा जा सकता. इतने छोटे स्तर के चुनाव मे भी प्रत्याशी मानो रुपये- पैसों  की बारिश कर रहा हो. चुनाव के पहले वाली रात प्रत्याशी के एजेंट गावों मे घूमकर पाँच- पाँच सौ के नोट तथा साड़ी खुलेआम बाँट रहे थे. दारू के पौवे छलक रहे थे और मुर्गे की दावत उड़ाई जा रही थी.
            आज मतदाता की तुलना एक मुर्गे से की जाय  तो बुरा नहीं होगा. जब चाहो  खरीद लो जब चाहो बेंच दो. चाहो तो पकाकर खा जाओ या किसी को परोस दो. चाहे खुद टांग तोड़ दो या किसी की तुड़वा दो .बस सब कमाल पैसे का है.  जिसकी अंटी मे पैसा जितना उसके हिस्से में  उतने ही  मुर्गे .
             गाँवो मे अशिक्षा , बेरोजगारी,  गरीबी जैसी कई समस्याए है. मुफ्त मे अगर इस गरीब तबके को दारू, साड़ी और  कुछ नोटों का जुगाड़ हो जाय तो ये इन्हें क्या कष्ट  है. इन्ही मजबूरियों का फायदा ये प्रत्याशी उठा लेते है. तो ऐसे मे इन चुनाओं का क्या महत्व रह जाता है. इस तरह पंचायती राज  बस एक मजाक बन गया है. कुछ सालों पहले तक पंचायत चुनाव मे इतने हंगामे नहीं हुआ करते थे. जबसे ग्राम पंचायतो मे पैसे आना शुरू  हुए और  इसमें पैसों की बन्दर बाँट होने लगी तबसे  ये चुनाव काफी  अहम होने लगे. अब ये चुनाव तो हिंसक  भी होने लगे है.
           अब लाखो रुपये खर्च करके जो व्यक्ति ग्राम प्रधान बन रहा है वो क्या जब रुपये हाथ मे आयेगे तो ग्राम का विकास करेगा या फिर अपने खर्च हुए रुपये को वसूलेगा और  फिर इसके बाद अगले चुनाव के लिए जुगाड़ करेगा. ये सब देख सुन कर मन बहुत द्रवित हो जाता है. जब नीचे स्तर पर इतने बड़े घोटाले है तो देश किस तरह से प्रगति कर पायेगा. कब हम जागृत होंगे अपने कर्तव्यों के प्रति ?
          इन चुनाओं  मे बड़े पैमाने पर हिंसा भी हुई. चुनाव बाद भी हिंसाओं का दौर रुक नहीं रहा. अभी एक खबर  बहराइच से आयी है जहाँ एक हारे हुए प्रत्याशी ने अपने ही एक अन्य हारे हुए प्रत्याशी के हाथ सिर्फ इस लिए काट डाले की अगर  वो उनकी बात मान कर अपना नाम वापस ले लेता तो वह जीत जाता. क्या ये संवेदनहीनता  की हद नहीं है.

             आज ही खबर मिली की हमारे भी एक खासम खाश  ग्राम प्रधान बन चुके है. उन्हें बधाई देने के बाद कुछ सोंचने बैठे तो अनायास ही ये कुछ पंक्तिया मन मे आ गयी.-----
       1.
दारू के पौवे का शोर जहाँ
मुर्गे की टांगो का जोर जहाँ
हरी -हरी नोटों पर बिकते वोट जहाँ
और इमानदार बन जाता कमजोर जहाँ
जहाँ होती रुपये  - पैसो  की बारिश
और होता हर कोई  मालामाल
देखा नहीं जाता
लोकतंत्र तेरा अब ये हाल.

      2 .
गाँधी तेरे लोकतंत्र मे
कैसा ये अजब तमाशा है
हर पाँच साल  बाद
बजने वाला ये कैसा बाजा है
तुम्हारे लिए तो ये प्रजा का तंत्र था
इनके  लिए ये
रेवड़ी और बताशा है. 
खुल्लम खुल्ला बंदर बाट मची है
ये समाजवाद की परिभाषा है. 

      3.
अब पाँच  साल तक नंगे  रह लेना
फिर आकर ये साड़ी बाँटेगे
छलकेगें दारू के जाम
तब तक प्यासे रह लेना
नोटों की अगली बारिश तक
बस कंकड़ - पत्थर गिनते रहना
फिर आकर ये करेंगे  सौदा
तब तक मर- मर कर जीते रहना
/ अन्य 

Wednesday, October 27, 2010

सार्थक जीवन


एक ही डाली से तीन फूल तोड़े गये .  पहला सुहागरात की सेज पर सजाया गया,  दूसरा भगवान के मंदिर मे  चढ़ाया गया तथा तीसरा एक शहीद की अर्थी पर सजाया गया .   
पहले और दूसरे फूल बहुत खुश थे और तीसरे फूल की किस्मत पर हंस रहे थे. पहले ने कटाक्ष करते हुए कहा , " मुझे दो आत्माओ के मिलन का साक्षी होने का सौभाग्य मिला है और मेरा जीवन धन्य हो गया तथा वहीं तुम एक लाश के ऊपर ... छि ..छि ... ऐसी जलालत किसी और को न मिले.
 दूसरे  फूल ने भी तीसरे पर कटाक्ष करते हुए कहा " मुझे तो भगवान के माथे  को चूमने का सौभाग्य मिला है. मै तो सीधा  स्वर्ग का अधिकारी हूँ.
तीसरा वाला  फूल शहीद की अर्थी के साथ साथ जल  गया शहीद  को स्वर्ग मे स्थान दिया जा रहा था. शहीद  ने स्वर्ग देवता से प्रार्थना की , " देव इस फूल ने आखिरी वक्त तक मेरा साथ दिया और मेरे साथ इसने भी अपनी शहादत दी है अतः यह भी स्वर्ग का अधिकारी होना चाहिए . "
पहला फूल अगली सुबह मसल- कुचल जाने के बाद घर  के पीछे एक नाली मे पड़ा आंसू  बहा रहा था , दूसरा फूल सुबह के साथ - साथ झाड़ू से बटोर कर कूड़ेदान मे डाला  जा चुका  था  और तीसरा  फूल अपनी शहादत  के साथ स्वर्ग मे स्थान पा चुका था.
                                                                                                   

Tuesday, October 12, 2010

क्यों तुम जिंदा हो रावण

(चित्र गूगल साभार )


सदियों से तुम्हें हम
हर साल जलाते आये हैं
फिर भी क्यों तुम
जिंदा
हो रावण
अभी भी हमारे बीच में
कभी आतंकवाद
कभी अलगाववाद
कभी नक्सलवाद
कभी महंगाई
कभी भ्रष्टाचार
तो कभी किसी अन्य रूप में ।
आखिर बताओ तो सही हमें
उस अमृत का असल ठिकाना
बार बार मरने के बाद भी
जिससे तुम जिंदा होकर
फिर वापस आ जाते हो
हमारे बीच
क्योंकि इस बार हम तुम्हें
लौट कर वापस
नहीं आने देना चाहते।
रावण बोला-
'' तो इस साल पहले
अपने अंदर बैठे हुए
रावण को जलाओ
फिर राम बनकर
मुझे जला देना ।''

Saturday, October 9, 2010

साकी के नाम

एक

एक साकी ही तो था मेरा अपना कहलाने वाला
अब वह भी शराब मे पानी मिलाने लगा है
गम जो हम भुला लेते थे कभी पीकर शराब
अब
वो फिर से मुझे सताने लगा है । ।

दो

जिंदगी हुई कुछ इस तरह से बसर साकी
हम पीते गए तुम पिलाते गए
खूब छककर पिया खूब जमकर पिया
मगर गए तो फिर भी प्यासे गए

.

Friday, October 1, 2010

अयोध्या की सुबह

( चित्र गूगल साभार )


मत प्यार करो इतना मुझसे
कि संगीनों के सायों मे
हो मेरा जीवन
मुझे निकालने दो
अब अपनी गलियों मे
देखूं कैसे लोग है मेरे
कितना बदला उनका जीवन
कुछ ऐसे पल
अब रहने दो
जो जी सकूं
मैं अपनों के बीच
ले सकें सुकून कि साँस
जिसमे अपने लोग यहाँ
मत रोको अब सूरज की
इन आती किरणों को
फ़ैल जाने दो इन्हें
मेरे अंग- अंग मे
मेरे कोने -कोने मे
ताकी , उन्मुक्त होकर
एहसास कर सकूं मै आज
अपने अस्तित्व को
अपनों के बीच ॥

Sunday, September 26, 2010

पहला साक्षात्कार ( लघु कथा )

( चित्र गूगल साभार )

अबोध शिशु की आँखों मे स्वप्निल संसार जन्म लेने लगा था. मुख मे दन्त क्या निकले की मानो पर निकल आये हों. वह उड़ना चाहता था, दुनिया देखना था. बच्चा अंजान था , उसकी इस कोशिश ने पहली बार शरारत की. उसने चपलता के साथ अपने दन्त माँ के स्तन मे गड़ा दिए.

माँ को पहले ही आशंका थी की स्तनपान से स्तन का आकर ख़राब हो सकता है. अब यह आशंका प्रबल हो गयी. माँ ने बच्चे के स्तनपान की आदत को छुड़ाने के लिए स्तन पर हरी मिर्च का टुकड़ा रगड़ दिया.

बच्चे ने जैसे ही स्तनपान करना चाहा वैसे ही उसका मन छनछना गया. मुख पूरी तरह से कसैला हो उठा. अबोध शिशु का पहली बार इस दुनिया की कडुआहट से साक्षात्कार हुआ.


.

Friday, September 17, 2010

आपत्ति

दहेज के लिए
बहू की हत्या के अभियोग में
नेता जी की पेशी हुई
जज के सामनें
वे मुस्कराये एवं
भाषण के अन्दाज में
सफाई देते हुए बोले--
"जब सारा देश
नाच सकता है
हमारी उगलियों पर
तब हमारी बहू को ही
भला क्या आपत्ति थी ।।'

( प्रकाशित 7 नव. 2004 स्वतंत्र वार्ता में)

Tuesday, September 14, 2010

हिन्दी - दिवस

हिंदी- दिवस के
शुभ अवसर पर
हिंदी को प्रोत्साहित करने के लिए
हुआ था एक सभा का आयोजन
अतिथि महोदय पधारे थे
मंच पर धीरे धीरे
मुस्कराते हुए
फूल मालाओं के बीच
भाषण की शुरुआत की थी
उन्होंने अपने की छोटे से
परिचय के साथ -
" डिअर ब्रदर्स एंड सिस्टर्स
प्यारे से मेरे फ्रैन्डस मुझे
जे. के. साहब के नामे से पुकारते है
मैं तो कोई ज्यादा
पढ़ - लिख नहीं पाया था
पर, मेरा बेटा कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी से
पी. एच. डी. कर रहा है.....।"

Saturday, September 11, 2010

अपनी शादी मे लिखी एक कविता




एक कवि की शादी और कविता नहीं । तो सबके बहुत कहने पर मैंने अपनी शादी के लिए जो १८ जून १९९९ को थी, ये कविता उस समय लिखी थी जो सब घरातियों और बारातियों को उपहार स्वरुप एक कार्ड पर छपवाकर दी गई। आज ११ साल बाद पुराने कागजों के बीच ये कार्ड मुझसे फिर उलझ गया और मेरे दिमाग में ये फितूर समां गया की इसे ब्लॉग पर डाल दूं । तो आप लोग गुस्ताखी माफ़ करियेगा और इसलिए भी की कविता और वो भी अपने ऊपर और अपनी ही शादी पर थोड़ा मुश्किल है ना ....................

है आज भला क्या बात नई क्यों हँसते चाँद सितारे है
क्यों रंग है फूलों पर छाया क्यों करते आज इशारे है
क्यों आज हवा भी नाच रही क्यों महक महक कर चलती है
क्या इसने कुछ पी रखी है जो बहक बहक कर चलती है॥

उपेन्द्र के शोभित मस्तक पर सेहरा कुछ ऐसा दमका है
जैसे बदल के घूँघट से कोई चाँद ख़ुशी का चमका है
सेहरे ने इसके मुखड़े को कुछ नूर में ऐसा घेरा है
फिर बिन्दू ने अपना सेहरे की तरफ मुंह फेरा है।।

सेहरे के अंदर गुंथे हुए कुछ फर्ज भी है अरमान भी है
सेहरे के महकते फूलों में इन दोनों के लिए वरदान भी है
इक गृहस्थ जीवन का राजा है एक गृहस्थ जीवन की रानी है
दोनों को आपस में मिलकर एक प्रेम की ज्योति जलानी है ॥

पिता सदाफल चाचा रामप्यारे ,रामदुलारे ऐसे आते हैं
रामश्रृंगार और रामाश्रय अपना शुभ स्नेह लुटाते है
राजेंद्र महेंद्र विकाश देवेन्द्र सोनू ज्ञानू बिट्टू छोटू फूले नहीं समाते है
भाई के सिर पर सेहरा देखकर खुशियाँ खूब मानते है ॥

इस परम सुहानी बेला में शुचि- शुभ्र ह्र्दय मिल रहें है आज
भव-सागर नैया खेने को दो प्राणी उत्तर रहें है आज
सब लोग भी उनको आशीष दे रहे है मनमानी
उन्नति पथ पर ये चले सदा और कीर्ति बड़े आसमानी॥

Saturday, September 4, 2010

ग्रुप कैप्टन सचिन रमेश तेंदुलकर


ग्रुप कैप्टन सचिन रमेश तेंदुलकर
छूआ है आज तुमने
आसमां की उन ऊँचाइयों को
जो हुआ करते हैं सिर्फ
ओरों के लिए कुछ सपने।

तुम किया करते थे अपने शतकों से
जिस आसमां को सिर उठाकर नमन
आज लचककर इस धरा पर
उसने किया है तुम्हारा अभिनन्दन।

चूमा है उसने झुककर
आज तुम्हें इस जमीं पर
बिछ गयें हैं फूल हर कदम पर तुम्हारे
गौरवान्वित है सारा देश आज तुम्हीं पर।

तबीयत से तो हर किसी ने यारों
उछाला होगा पत्थर
मगर आसमां को झुका पाया जो
वही है अपना तेंदुलकर।

वायुसेना का ये सम्मान
तुम्हारे उस जज्बे को है सलाम
जिसने कभी हार माना नहीं
हर हल में जीतना
जिसकी है सिर्फ पहचान ।

न मिट सकेगी कभी पहचान
जिसके क़दमों में है आसमान
पूरे भारत देश की शान
तुम हो वो तेंदुलकर महान।

(भारतीय वायुसेना द्वारा सचिन को ग्रुप कैप्टन की मानद उपाधि
से सम्मानित किये जाने के सन्दर्भ में )

(
Photo courtesy - IBN Live)

Saturday, August 28, 2010

जिन्दगी

एक

जिन्दगी
दो वक्त की
भूख तो नहीं
कि चलो आज
पानी पीकर सो रहेंगें ।।

दो

जिन्दगी
ढूढने निकले थे
हम लेकर चिराग
हर कदम के नीचे
अपनी ही जिन्दगी
मसलते गये।।

तीन

जिन्दगी की
कल एक मोड पर
मुलाकात हुयी थी मुझसे
एक दूसरे के हालात पर
तरस खाकर
वो अपने रास्ते
हम अपने रास्ते
मुड चलें

चार

जिन्दगी जीना
मुशकिल तो था
मगर तेरी याद ने इस कदर
इसे मुशकिल बना दिया
कि हम चाहकर भी
इसे जी नहीं सके थे
अपनी तरह से ।।

पांच

जिन्दगी से मेरे
वे हमेशा ही
खेलते रहें
मै समझता रहा
वे खेल मुझसे
खेल की तरह
खेल रहें हैं ।।

छ:

मैं चूल्हा था
एवं मेरे उपर तवा
जिन्दगी बनाती रही
मेरे लिए रोटियां
मै हर लौ के साथ
खुद ही उसे जलाता गया ।।

( प्रकाशित सित, २००९ )

Thursday, August 26, 2010

तुम कोई गीत गुनगुनाओं

तुम कोई गीत गुनगुनाओं तो हम भी गुनगुनायें
भूलकर अपने गम जरा हम भी मुस्कराएँ
कहने को तो बहुत कुछ हैं मगर अल्फाज नहीं
बन सको अल्फाज अगर तो हम भी कुछ सुनाये
वर्षों से बेघर हैं हम किसी हमसफ़र की तलाश में
बन सको नींव अगर तो हम भी इक घर बनायें
सूनी - सूनी है महफ़िल उजड़ा हुआ ये चमन
बन जाओ तुम राग जरा हम भी साज सजाएँ
बढ़ रहीं है दूरियां मंजिल आती नहीं करीब
बढ़ाओ साथ कदम तो हम ये दूरियां मिटायें । ।

Sunday, August 22, 2010

अपराध बोध

" ये बब्बू ! बुरा तो नहीं मनोगे "
" नहीं बोल क्या बात है ? "
" अब आप यहाँ मत आया करो "
" क्यों क्या बात है , नाराज है मुझसे ?
"नहीं ये बात नहीं "
" तो फिर ? "
" हास्टल के लड़के मुझे चिंढाते है "
" क्या कहते है ?"
"आप को देख हमारी गरीबी का मजाक उड़ाते है ?"
इस बार बाप खामोश रहा ।
" मैं ही गाँव मिलने आ जाया करूंगा ?" कहकर बेटे ने अपना मुंह फेर लिया। उसकी आँखों में आंसू आ गया । लड़के को अपराध बोध मह्सुस हुआ की व्यर्थ ही बब्बू का दिल दुखाया ।
" ठीक है " बाप को अपना अपराध बोध मह्सुस हुआ कि उसे पहले ही यह बात ध्यान में आ जानी चाहिए थी।उसकी आँखों में आंसू छलक आयें मगर संतोष था कि उसका बेटा एक दिन इंजीनियर बनकर निकलेगा। अब वह फिर बेटे कि पढाई में बाधक नहीं बनेगा। उसने बेटे के सर पे हाथ फेर कर आशीर्वाद दिया और वापस लौट पड़ा।

Friday, August 20, 2010

कुछ शायरियां

शायरी _१


मुस्करा उठता है सारा जमाना
उनकी ईक मुस्कराहट पर
थोडा सा हम जो मुस्करा दिये
"उपेन्द्र " तो वो रूठ गये बुरा मान कर ।।

शायरी _२

कल रात कटी बडी मुस्किल से
आज न जाने क्या हाल होगा ।
मगर अफसोस मेरी इस बेबशी का
"उपेन्द्र" उनको न जरा भी ख्याल होगा।।

शायरी _३

नाराज होकर वो चले गये वों आज मुझसे
बोलते थे दिल चीरकर दिखाइये तो यकीं आये
मैं डरता रहा कि अगर दिल चीरकर दिखाया तो "उपेन्द्र"
कहीं उनकी तस्वीर निकलकर धूल में ना गिर जाये ।।

शायरी _४

दुशमनों से क्या उम्मीद उनका काम ही था जलाना
वह चले गये घर हमारा जलाकर
अब उम्मीद अपने दोस्तों पर "उपेन्द्र"
मगर सब तमाशा देख रहे थे तालियां बजाकर ।।

कुछ शायरियां

शायरी _१


मुस्करा उठता है सारा जमाना
उनकी ईक मुस्कराहट पर
थोडा सा हम जो मुस्करा दिये
"उपेन्द्र " तो वो रूठ गये बुरा मान कर ।।

शायरी _२

कल रात कटी बडी मुस्किल से
आज न जाने क्या हाल होगा ।
मगर अफसोस मेरी इस बेबशी का
"उपेन्द्र" उनको न जरा भी ख्याल होगा।।

शायरी _३

नाराज होकर वो चले गये वों आज मुझसे
बोलते थे दिल चीरकर दिखाइये तो यकीं आये
मैं डरता रहा कि अगर दिल चीरकर दिखाया तो "उपेन्द्र"
कहीं उनकी तस्वीर निकलकर धूल में ना गिर जाये ।।

शायरी _४

दुशमनों से क्या उम्मीद उनका काम ही था जलाना
वह चले गये घर हमारा जलाकर
अब उम्मीद अपने दोस्तों पर "उपेन्द्र"
मगर सब तमाशा देख रहे थे तालियां बजाकर ।।

Tuesday, August 17, 2010

रावण की दुविधा

( विरेन्द्र सेहवाग को 99 रन पर शतक बनाने से रोकने के संदर्भ में)

हे कुमार संगाकारा
व सूरज रनदीव
काश ! तुम साबित कर पाते कि
तुम नहीं हो संतान रावण की
हम तो करने लगे थे पूजा
रावण को भी एक विद्वान समझकर
मगर तुम लोंगों ने लगा दिया धब्बा
इक बार फिर उनके नाम पर
मिल अपनी राक्षसी सेना के साथ
फिर डाल दिया रावन को उसी दुविधा में
अगर जिन्दा होता रावण
तो पहला सवाल करता तुमसे
"कि क्यों करते हो मुझे शर्मिन्दा
बार बार राम के सामने
इस बार लक्ष्मन ने नहीं
बल्कि तुमने काट डाली सूर्पनखा की नाक
अपने को पाक साफ करने में
मुझे लग गयी थी सदिया
अब हार चूका हूँ मै
चलता हूँ कही राम मिल जाये तो
क्षमाप्रार्थना कर लूं ।"

Sunday, August 8, 2010

विश्व स्तनपान सप्ताह

हे पाश्चात्य सभ्यता में रमी
जीवनदाहिनी माओं
अपनी सुडौल शरीर की चिंता करने वाली
कॉन्वेंट स्कूल से निकली
आधुनिक नारीओं !

बड़े शर्म की बात है कि
आज मनाना पड़ रहा है
विश्व स्तनपान सप्ताह
और बताना पड़ रहा है
कि कितना जरूरी है
ये स्तनपान
बच्चे की सेहत के लिए ।

माना की सौंदर्य पर
पड़ सकता है विपरीत प्रभाव
मगर बच्चे की सेहत से भी तो
है एक मजाक
और नहीं हो जाती
कर्तव्यो की इतिश्री
सिर्फ जन्म दे देने से ही
संस्कार तो अभी पूरा है बाकी

कल को कोई बच्चा
कैसे ललकार लगाएगा कि
असल माँ का दूध पिया है तो रूक
या अगर कल को कोई दुश्मन
सीमा पर ललकार लगा बैठा
कि पिया है दूध अगर
अपनी माँ का
तो आ जा सामने
तब क्या तुम
अपने अर्जुन के
मन की दुबिधा दूर कर पाओगी
( चित्र गूगल साभार )

Saturday, July 31, 2010

अपवित्र गंगा



बहुत बडा हुआ था सम्मेलन
दूर - दूर से बडे बडे नेता
एवं गणमान्य व्यक्ति
पधारे हुये थे
विषय था
गंगा के पवित्र जल को
गंदा व अपवित्र होने से
बचाने का ।

अतिथि महोदय यानि मंत्री जी
फरमा रहे थे आराम
फूल की माला व हारों के बीच
एक अच्छे व दमदार भाषण से
माहौल को गर्म कर देने के बाद।

अचानक बज उठी थी घंटी
अतिथि महोदय के मोबाइल की
"साहब-मिल मजदूरों ने
वेतन-वृध्दि के लिये
कर दी है हडताल।"

सबने देखा था आश्चर्य से
मोबाइल पर बदलते हुए
अतिथि महोदय के चेहरे का भाव
" जलाकर सालों को
बहा दो गंगा में
ताकि किसी को इसकी
खबर तक न लगे । "
(यह चित्र इलाहाबाद के संगम का है)

Saturday, July 24, 2010

दिल के टुकड़े

वह लोगों के बीच
रोज़ सुनाया करता था
जिनकी मुहब्बत के
चर्चे हज़ार
एक दिन कर गयी वो
उसके दिल के टुकड़े हज़ार
फिर बड़ी अदा से मुस्कराई
और बोली थी -
" दिल के कुछ टुकड़े
हो सके तो मुझे भी दे दो
बच्चे हमारे खेलेगे".

Friday, July 23, 2010

मुख्यमंत्री जी सुनिए !

(ये कविता एक निरक्षर महिला मतदाता के शब्दों की सिर्फ कलम भर है )

मुख्यमंत्री जी !

हमें पता चला है की
आप और आप के मंत्री लोग
हजारो
के बेड पे चैन की नींद सोते है
करोड़ो के नोट की मालाओं से
मंच पर आप सबका स्वागत होता है
मंच पर सोने चांदी के सिक्के से तौला जाता है

तीन साल हो गए आप लोंगो को
दर्शन दिए हुए
तब और आज में
बहुत हो गया है अंतर :-
जब पिछली बार आप लोग आये थे
तबसे बिटिया बहुत बड़ी हो गयी है
मगर कॉलेज नहीं जाती
क्योंकि उसके गले में
एक अदद दुपट्टा नहीं है ।

हम जमीं पर सोया करते है
क्योंकि हमारे पास जो खटिया थी
कुछ ही दिन पहले टूट गयी है
और अब शायद फिर कभी बने
( हा ये वही खटिया थी
जिसपर कुछ दिन पहले
एक युवराज आकर बैठे थे और
हमारी थाली में खाना खाए थे )
क्योंकि हरिया के पापा तो कुछ दिन पहले ही
बैंक के कर्ज के बोझ तले पेड़ से लटक चुके है।

महगाई तेजी से बढ रही है
इसलिए आप लोग भारत बंद पर है
मगर सुना है गोदामों में अन्न सड़ रहे है
और कल पड़ोस का चिंटू भूख से मर गया

सुना है करोडो के कही पार्क बन रहे है
रातो -रात शहर के नक़्शे बदल रहे है
मगर हमें चिंता है की कही इस बारिष में यह
झोपड़ी बचेगी या नहीं
नहीं तो जब आप लोग जब अगली साल
हमारे घर आयेगे वोट माँगने
या फिर कोई दूसरा युवराज ही गया
तो कैसे मै करूगी आव-भगत

और सुनिए गाँव में एक स्कूल था
जिसकी छत इस बारिश में गिर चुकी है
और स्कूल चल रहा है खुले में आसमान के नीचे

कहने को तो बहुत कुछ है
मगर ये सब में आज क्यों लिखवा रही हूँ
दो साल बाद तो आप लोग आयेगे ही
अपने लुभावने वादों के साथ वोट मांगने
तो खुद ही देख लीजियेगा

हाँ एक बात और
इस बार आप लोंगो को हरिया नहीं मिलेगा
इस गाँव के मोड़ पर अगवानी करने के लिए
क्योकि पिछली बार चुनाव के एक दिन पहले
किसी ने कच्ची शराब पीलाकर लेली थी उसकी जान

और हा, इस सवाल के जबाब के लिए
तैयार होकर आइयेगा कि
क्या यही प्रजातंत्र है ?
वर्ना सिंहासन कर दीजिये खाली
की जनता रही है राजधानी में
एक सवाल और
क्या इस प्रजातंत्र में ये संभव है कि एक दिन
सिर्फ एक दिन आप लोग हम सबकी जिंदगी जिए
और हम सब आप की। ।

--हस्ताक्षर --
( आप के सूबे की एक चालीस वर्षीया भूखमरी के कगार पर पहुंची एक निरक्षर महिला मतदाता )


"यह पत्र देश के शासक वर्ग से गरीब जनता का सिर्फ एक सवाल है की उनकी जबाबदेही हमारे प्रति कहा
तक है । क्या वो हमारे पास सिर्फ पांच साल के बाद ही आया करेगे ?"

Friday, July 2, 2010

उड़ान

ललक है बाकी अभी उड़ने की अगर तो
मुश्किल है ये कहना कि आसमां न मिले
राहे हैं बडी मुश्किल तो क्यों न होती रहें
जरूरी नहीं कि पत्थरों पर निशां न बने
बुझ सकती है शमां तुफां से मगर
जरूरी नही कि दुबारा फिर शमां न जले
मुश्किल है कि एक मुकर्रर जहां न मिले
मगर ये तो नही कि कछ भी यहां न मिले
तुम कोशिस करो तो सही ये जरूरी नहीं कि
पहले से बेहतर फिर आशियां न बने ।।

Wednesday, June 9, 2010

कातिल

जबसे कातिलों के शहर में आकर हम रहने लगे है
बेगुनाह होते हुए भी लोग हमें कातिल समझने लगे है
एक अंजाना सा भय है एक अनजानी सी दहशत
ऑंखें चुराकर लोग हमसे अब निकलने लगे है
नहीं जलती है शमां नहीं होती है रोशनी मेरी महफ़िल में
कदम -दर- कदम पैरों के निशान मिटने लगे हैं
आने लगी हर सहर बनकर मुस्किल एक डगर
घर का रुख देख मेरे लोगों के कदम रुकने लगे हैं
" उपेन्द्र " नजरें नहीं मिलती हर शक्श अब सहमा हुआ है
महफ़िलें हो गयी सुनी लोग महफ़िलों उठने लगे हैं ।।

गुस्सा

उसके पति उससे कह कर सोये थे कि सुबह - सुबह थोडा जल्दी जगा देना कल जल्दी ऑफिस जाना है । परन्तु सुबह उसकी भी नींद देर से खुली।
" रात भर क्या खाक छान रही थी जो सुबह जगा नहीं सकी " पतिदेव गुस्से में चीखे।
" रात में थोड़ा अच्छा सा सपना आ गया था ।"
" किस मजनूं के सपने देख रही थी , जरा में भी तो सुनूं। पति का गुस्सा बढता ही जा रहा था ।
" आज आप गुस्सा क्यों हो रहें हैं। सपने में हम तथा आप एक सुन्दर झील के किनारे.......।"
पति का गुस्सा कम होने लगा था तथा पत्नी ने राहत की सांस ली।

(प्रकाशित ०७ अप्रैल १९९९ हिन्दी देनीक " आज ")

राज

वो पूछते हैं मुझसे
मेरी गजलों में
छिपे दर्द का राज
उन्हें ये नहीं मालुम
उन्हीं का था
दिया हुआ जख्म
जो इस दिल में
रोज होता रहा इकठ्ठा
वही एक दिन बनकर
दो बूंद आंसू
कागज पर गिर पडा
फिर गजल बन गई ।।

( प्रकाशित 9 नव. 1997 जलते द्वीप)

दर्द

मूसल को
भले ही न हुआ हो
ओखली में पडे
सिर के दर्द का एहसास
मगर सिर भला क्या
भूल पायेगा कभी
मूसल की मार को ।।

Tuesday, June 8, 2010

अफसोस

अफसोस
सरकार बनने के
चन्द दिनों बाद ही
समर्थन देने वाली पार्टी ने
समर्थन ले लिया वापस
पूरे मंत्रिमण्डल में
रोष था
मंत्री जी को एक भी घोटाला
न कर पाने का
अफसोस था ।।

( प्रकाशित___26 मार्च 1997 पंजाब केशरी में )