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Wednesday, June 9, 2010

राज

वो पूछते हैं मुझसे
मेरी गजलों में
छिपे दर्द का राज
उन्हें ये नहीं मालुम
उन्हीं का था
दिया हुआ जख्म
जो इस दिल में
रोज होता रहा इकठ्ठा
वही एक दिन बनकर
दो बूंद आंसू
कागज पर गिर पडा
फिर गजल बन गई ।।

( प्रकाशित 9 नव. 1997 जलते द्वीप)

3 comments:

  1. दो बूंद आंसू
    कागज पर गिर पडा
    फिर गजल बन गई ।।

    kya baat hai..wah nahi kahungi dard ki abhivaykti hai..jindagi ko najdeek se dekh aaye hai aap hai na??

    gahri rachnaye

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  2. सुबह से शाम तक की,
    भाग दोड़ में, भूल जाता है,
    अपने आप को.
    फैक्ट्री में काम करने वाले
    मजदूरों के भीड़ में,
    खो जाता है, उसका वजूद.
    फिर .......
    पता नहीं कब,
    बचपन से जवानी
    और .......
    जवानी से बुढ़ापा
    तक की सफ़र,
    पूरा कर लेता है, आदमी.

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