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Tuesday, November 30, 2010

राजीव दीक्षित जी का जाना















 ‘भारत स्वाभिमान’ के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं सचिव श्री राजीव दीक्षित जी का अकस्मिक देहावसान आज ३० नव. को सुबह करीब १.००  बजे . भिलाई के स्टील सिटी अपोलो हॉस्पिटल  में हृदय गति रूकने  से हो गया। इन दिनों ये  छत्तीसगढ में ‘भारत स्वाभिमान’ के राष्ट्रीय दौरे पर थे।  पता चला है कि उनका पार्थिव शरीर आज विशेष विमान से ‘पतंजलि योगपीठ’ लाया गया, जहाँ लोग उनके अंतिम दर्शन के लिए उमड़े हैं। उनका अंतिम संस्कार कनखल (हरिद्वार) में कल १  दिसंबर २०१०  को प्रातः १०.००    बजे किया जाएगा


 स्वदेशी के प्रखर प्रवक्ता, राष्ट्रीय चिंतक ,जुझारू सत्य को दृढ़ता से रखने के लिए पहचाने जाने वाले ४३ वर्षीय भाई राजीव  जी का जन्म अलीगढ़ में ३० नव. १९६७ को एक स्वतंत्रता  सेनानी परिवार में हुआ था. इलाहाबाद से इंजीनियरिंग  की शिक्षा  ग्रहण करने वाले राजीव जी भगत  सिंह , चंद्रशेखर  आजाद और महात्मा गाँधी के विचारों से प्रभावित  थे.  वह एक वैज्ञानिक भी थे और फ्रांस में दूर संचार क्षेत्र में सर्विस  भी कर चुके थे.


जहाँ लोग विदेशी डालरों के पीछे पागल हैं वही राजीव जी सब कुछ छोड़कर  एक एक पल देश के लिये जीने की ठानी ,  जिनके तन मे, मन मे, हृदय मे, प्राण मे देश प्रेम ईतना प्रखर था की अपना पूरा बचपन, अपनी पूरी जवानी, अपना पूरा जीवन राष्ट्र के लिये अर्पित कर दिया था। दो दशक से जो देश भर मे घुम घुम कर के लोगो के भीतर स्वाभिमान जगा रहे थे और वर्तमान मे बाबा रामदेव जी के सानिध्य में पतंजलि योगपीठ के अन्तर्गत "भारत स्वाभिमान"  के राष्ट्रिय प्रवक्ता एवं सचिव का दायित्व देख रहे थे।  


सन १९८६  में इस   वैज्ञानिक ने  अपना सुनहरा भविष्य त्यागकर  पत्रकारिता  की दुनिया  में कदम  रखते  हुए  इलाहाबाद में  बहुराष्ट्रीय कंपनियों  के खिलाफ  स्वदेशी  आन्दोलन  की नीव  रखी  और चैथम लाइन्स ,  इलाहाबाद के एक छोटे  से कमरे  से  " आज़ादी  बचाओ  आन्दोलन  " की शुरुआत    की और "दूसरी  आज़ादी " तथा "आज़ादी  बचाओ  आन्दोलन "  नामक  पत्रिका  निकाली। बाद में वर्धा को इन्होने अपना कार्यक्षेत्र बनाया और देश भर में भ्रमण करके हुए  स्वदेशी आन्दोलन का आन्दोलन का अलख जागते रहे 








मेरी  इनसे  व्यक्तिगत  मुलाकात  सन  १९९३  में ,  जब मैं  इलाहाबाद में स्नातक कर रहा था तब एक मंच पर हुई जो अमेरिका के" डंकल कमीशन " के खिलाफ आयोजित किया गया था और  उसमें राजीव जी मुख्य वक्ता थे , जहाँ   इन्होने  मेरे द्वारा पढ़ी  गई  " डंकल प्रस्ताव " पर एक कविता पर बधाई दी  थी। व्यक्तिगत रूप  से ये बहुत ही अच्छे और मददगार इन्सान थे।  


 




इनके लेक्चर पूरी तरह से तर्क व सत्य पर आधारित हैं। अपने आंदोलन के बल पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों  के खिलाफ लोंगों में जाग्रति पैदा की । सन् 1999 में इनके व्याख्यानों से देश भर में बनी स्वदेशी की हवा के बदौलत लाखों समर्थक तथा हजारों कार्यकर्ता बने। स्वदेशी आंदोलन के  उत्थान का श्रेय राजीव दीक्षित को जाता है। श्री राजीव दीक्षित में एक अदभुत  प्रतिभा थी जिनका लोहा सभी मानते है कि किसी चीज को देखकर या पढ़कर उस कार्य की विवेचना भली भांति करते थे जो सभी लोग पंसद करते थे। राजीव जी का  चले जाना ‘भारत स्वाभिमान’ का ही नहीं वरन् राष्ट्रीय क्षति है जो कभी पूरी नहीं होगी। देश ने  अपना गांधीवादी सपूत खोया है। इन्हे भावभीनी श्रद्घान्जली ..........


राजीव जी के बारे में विस्तृत जानकारी.........
www.rajivdixit.com
www.bharat-swabhiman.com


( आभार .... भारत स्वाभिमान/  चित्र-गूगल )










  
 दो पंक्तियाँ आपके लिए.....
आपका यूँ चले जाना
निश्चय ही छोड़ देता है
निराशा के अँधेरे में
मगर,
आपके जलाये दिये
अभी भी जल रहे हैं
और अँधेरा  उन्हें छू भी नहीं पा रहा
दिख गयी हैं  एक ज्योति
अँधेरे को चीरकर आगे बढती हुई ।।




Sunday, November 28, 2010

वे याद आये बहुत

 याद आयी बहुत हम रोये बहुत
 आंसुओं से ये पलके भिगोये बहुत ।।
 
बहुत चाहा की जी ले हम उनके बिना 
पर ख्यालात बनकर वे याद आये बहुत।।
                     




चित्र गूगल साभार
पल भर भी न गुजरा दो वक्त सही 
 राह देख - देख लम्हें गुजारे बहुत।

 कसक उठती रही आह बढती रही
ग़मों के बोंझ हम उठाये बहुत।।



कुछ भी न रहा जिंदगी हुई तन्हा 
                                              " उपेन्द्र "कदम दर कदम हम खोये बहुत।।

 




                

Wednesday, November 17, 2010

मेरा दिल

photo curstey--www.wowhollywood.blogspot.com


                                          (  यह कविता कल टी. वी. में आये इस समाचार से प्रेरित होकर लिखी गई है --जिसमे प्रेमी से प्रेमिका हीरे की अँगूठी की मांग करती है. प्रेमी इसके  लिए अपने पुराने आफिस से चेक बुक चोरी करके बैंक से पैसे  निकालता है और पकड़ा जाता है. आज वह जेल में है और प्रेमिका ने अभी तह उससे मिलने तक की जहमत नहीं उठाई )

Sunday, November 7, 2010

तेरा रूप निखर आया है

( चित्र गूगल साभार )
हर शय बेचैन है हर जगह तेरा साया है
चाँद से भी ज्यादा तेरा रूप निखर आया है.

ठहर गए मुसाफिर सिर्फ एक झलक पाने को
हर लबों पर बस तेरा ही नाम छाया है.

चंचल हो उठी हवा मदहोश हो उठे भौरें
हर दिल मे तेरा अक्स उतर आया है.

बहुत गुमान रहता था आईने को खुदपर
देखकर तेरा हुस्न आईना भी शरमाया है.

दूर दूर तक फैली हुई है तेरे हुस्न की चर्चा
"उपेन्द्र" हर जर्रे जर्रे पर तेरा नाम उभर आया है .

Friday, November 5, 2010

आप सभी को दीवाली मुबारक हो

                   सृजन _ शिखर  ब्लॉग की तरफ से आप सभी को दीवाली मुबारक हो

Tuesday, November 2, 2010

पंचायती राज चुनाव और मुर्गे की टांग

   महात्मा गाँधी और राजीव  गाँधी ने पंचायती राज व्यवस्था के जो सपने देखे थे क्या वो आज के परिपेक्ष्य मे सफल हो रहे है ? अभी हाल मे ही हुए उत्तर प्रदेश मे पंचायती राज चुनाव  को देखकर तो हाँ  बिलकुल नहीं कहा जा सकता. इतने छोटे स्तर के चुनाव मे भी प्रत्याशी मानो रुपये- पैसों  की बारिश कर रहा हो. चुनाव के पहले वाली रात प्रत्याशी के एजेंट गावों मे घूमकर पाँच- पाँच सौ के नोट तथा साड़ी खुलेआम बाँट रहे थे. दारू के पौवे छलक रहे थे और मुर्गे की दावत उड़ाई जा रही थी.
            आज मतदाता की तुलना एक मुर्गे से की जाय  तो बुरा नहीं होगा. जब चाहो  खरीद लो जब चाहो बेंच दो. चाहो तो पकाकर खा जाओ या किसी को परोस दो. चाहे खुद टांग तोड़ दो या किसी की तुड़वा दो .बस सब कमाल पैसे का है.  जिसकी अंटी मे पैसा जितना उसके हिस्से में  उतने ही  मुर्गे .
             गाँवो मे अशिक्षा , बेरोजगारी,  गरीबी जैसी कई समस्याए है. मुफ्त मे अगर इस गरीब तबके को दारू, साड़ी और  कुछ नोटों का जुगाड़ हो जाय तो ये इन्हें क्या कष्ट  है. इन्ही मजबूरियों का फायदा ये प्रत्याशी उठा लेते है. तो ऐसे मे इन चुनाओं का क्या महत्व रह जाता है. इस तरह पंचायती राज  बस एक मजाक बन गया है. कुछ सालों पहले तक पंचायत चुनाव मे इतने हंगामे नहीं हुआ करते थे. जबसे ग्राम पंचायतो मे पैसे आना शुरू  हुए और  इसमें पैसों की बन्दर बाँट होने लगी तबसे  ये चुनाव काफी  अहम होने लगे. अब ये चुनाव तो हिंसक  भी होने लगे है.
           अब लाखो रुपये खर्च करके जो व्यक्ति ग्राम प्रधान बन रहा है वो क्या जब रुपये हाथ मे आयेगे तो ग्राम का विकास करेगा या फिर अपने खर्च हुए रुपये को वसूलेगा और  फिर इसके बाद अगले चुनाव के लिए जुगाड़ करेगा. ये सब देख सुन कर मन बहुत द्रवित हो जाता है. जब नीचे स्तर पर इतने बड़े घोटाले है तो देश किस तरह से प्रगति कर पायेगा. कब हम जागृत होंगे अपने कर्तव्यों के प्रति ?
          इन चुनाओं  मे बड़े पैमाने पर हिंसा भी हुई. चुनाव बाद भी हिंसाओं का दौर रुक नहीं रहा. अभी एक खबर  बहराइच से आयी है जहाँ एक हारे हुए प्रत्याशी ने अपने ही एक अन्य हारे हुए प्रत्याशी के हाथ सिर्फ इस लिए काट डाले की अगर  वो उनकी बात मान कर अपना नाम वापस ले लेता तो वह जीत जाता. क्या ये संवेदनहीनता  की हद नहीं है.

             आज ही खबर मिली की हमारे भी एक खासम खाश  ग्राम प्रधान बन चुके है. उन्हें बधाई देने के बाद कुछ सोंचने बैठे तो अनायास ही ये कुछ पंक्तिया मन मे आ गयी.-----
       1.
दारू के पौवे का शोर जहाँ
मुर्गे की टांगो का जोर जहाँ
हरी -हरी नोटों पर बिकते वोट जहाँ
और इमानदार बन जाता कमजोर जहाँ
जहाँ होती रुपये  - पैसो  की बारिश
और होता हर कोई  मालामाल
देखा नहीं जाता
लोकतंत्र तेरा अब ये हाल.

      2 .
गाँधी तेरे लोकतंत्र मे
कैसा ये अजब तमाशा है
हर पाँच साल  बाद
बजने वाला ये कैसा बाजा है
तुम्हारे लिए तो ये प्रजा का तंत्र था
इनके  लिए ये
रेवड़ी और बताशा है. 
खुल्लम खुल्ला बंदर बाट मची है
ये समाजवाद की परिभाषा है. 

      3.
अब पाँच  साल तक नंगे  रह लेना
फिर आकर ये साड़ी बाँटेगे
छलकेगें दारू के जाम
तब तक प्यासे रह लेना
नोटों की अगली बारिश तक
बस कंकड़ - पत्थर गिनते रहना
फिर आकर ये करेंगे  सौदा
तब तक मर- मर कर जीते रहना
/ अन्य