photo curstey--www.wowhollywood.blogspot.com |
( यह कविता कल टी. वी. में आये इस समाचार से प्रेरित होकर लिखी गई है --जिसमे प्रेमी से प्रेमिका हीरे की अँगूठी की मांग करती है. प्रेमी इसके लिए अपने पुराने आफिस से चेक बुक चोरी करके बैंक से पैसे निकालता है और पकड़ा जाता है. आज वह जेल में है और प्रेमिका ने अभी तह उससे मिलने तक की जहमत नहीं उठाई )
भाई वाह,....... इत्ता ही.
ReplyDeleteभरते रहो दिलों के जख्म
वाह उपेन्द्र जी, बेहतरीन! बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteविचार-श्री गुरुवे नमः
बेहतरीन प्रस्तुति !
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है! हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteलघुकथा – शांति का दूत
वाह वाह बेहतरीन .बहुत ही उम्दा.
ReplyDeleteक्या बात है । आज भी हम भर रहे हैं अपने जख्म कि कल उन्हें पड जाये जरूरत रोशनी की ।
ReplyDeleteupendra jee, i can only say one word for you...waoooooooooooo...
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील कविता ..... बेहतरीन पंक्तियाँ
ReplyDeletesunder kavita. dil ko chu lene wali kavita.
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन और संवेदनशील प्रस्तुति.
ReplyDeleteउपेंद्र जी!लाजवाब! दिल खुश कर दिया आपने...बस एक शब्द खटक रहा है,आशा है अन्यथा न लेंगे..पूँछ बैठते हैं को पूछ बैठते हैं कर लीजिए!!
ReplyDeleteसलिल साहब, कैसी बात कर रहे है.इसमें अन्यथा लेने वाली बात कहाँ है. आप ने तो एक सजग दोस्त के तौर पर मेरा सही मार्गदर्शन किया है . गलती सुधार दी गयी है. आभारी है आपके हम. धन्यवाद.
ReplyDeleteकल उनकी गली मे
ReplyDeleteजो उजाला था
वो हमने अपना दिल जला कर
रोशनी की थी
वाह ! किसी की बेवफाई पर इससे अच्छा क्या लिखा जा सकता है। बेहतरीन रचना। हार्दिक शुभकामनायें।
बहुत सुंदर रचना....बधाई
ReplyDeleteबहुत बहुत अच्छी कविता है..
ReplyDeleteकविता के साथ साथ आपकी लिखावट भी बहुत अच्छी है...और चित्र तो हमेशा आप एकदम खोज के लाते हैं ही...
सब कुछ सुन्दर :)
आपकी राइटिंग भी बहुत सुन्दर है ..
ReplyDeleteउन्हें क्या मालूम
ReplyDeleteकल उनकी गली में
जो उजाला था
वो हमने
अपना दिल जलाकर
की थी रोशनी।
वाह, उपेन्द्र जी, दिल से लिखी गई एक बेहतरीन कविता।
सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeletewah !
ReplyDeletekya bat hai !likhawat bhi bya krti hai jjbat ko .
बहुत खूब... दिल के संभालने की एक नई वजह..
ReplyDeleteप्रेमी के प्रेम की भाषा तो यही होती है .... कुछ स्वार्थी लोग इस आड़ में कुछ और ही कर जाते हैं ... अछा लिखा है आपने ...
ReplyDeleteदिल को छू नहीं बल्कि दिल में उतर गयी ....बहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeletebahut sundar .. kafi snvednao se bhari.. touching..
ReplyDeleteKavita bhi sundar aur aapka writing behad sundar... :)
ReplyDelete5/10
ReplyDeleteकविता तो बहुत साधारण सी थी किन्तु संदर्भ पढ़कर सोच में पड़ गया.
आपका चित्र के ऊपर लिखने का अंदाज दिलचस्प है और आकर्षक भी.
अच्छी रचना ..हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteachhi rachna
ReplyDeletebahut khub
kabhi yaha bhi aaiye
www.deepti09sharma.blogspot.com
विरल अंदाज में लिखी रचना बहुत अच्छी लगी ... सुन्दर हस्तलिपि ...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आना सार्थक हुआ...आपका कवि अपने आस-पास के
ReplyDeleteघटनाक्रम से जुड़ा है...यह अच्छा संकेत है... आपको बधाई!
‘मुक्तक विशेषांक’ हेतु रचनाएँ आमंत्रित-
ReplyDeleteदेश की चर्चित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक त्रैमासिक पत्रिका ‘सरस्वती सुमन’ का आगामी एक अंक ‘मुक्तक विशेषांक’ होगा जिसके अतिथि संपादक होंगे सुपरिचित कवि जितेन्द्र ‘जौहर’। उक्त विशेषांक हेतु आपके विविधवर्णी (सामाजिक, राजनीतिक, आध्यात्मिक, धार्मिक, शैक्षिक, देशभक्ति, पर्व-त्योहार, पर्यावरण, श्रृंगार, हास्य-व्यंग्य, आदि अन्यानेक विषयों/ भावों) पर केन्द्रित मुक्तक/रुबाई/कत्आत एवं तद्विषयक सारगर्भित एवं तथ्यपूर्ण आलेख सादर आमंत्रित हैं।
इस संग्रह का हिस्सा बनने के लिए न्यूनतम 10-12 और अधिकतम 20-22 मुक्तक भेजे जा सकते हैं।
लेखकों-कवियों के साथ ही, सुधी-शोधी पाठकगण भी ज्ञात / अज्ञात / सुज्ञात लेखकों के चर्चित अथवा भूले-बिसरे मुक्तक/रुबाइयात/कत्आत भेजकर ‘सरस्वती सुमन’ के इस दस्तावेजी ‘विशेषांक’ में सहभागी बन सकते हैं। प्रेषक का नाम ‘प्रस्तुतकर्ता’ के रूप में प्रकाशित किया जाएगा। प्रेषक अपना पूरा नाम व पता (फोन नं. सहित) अवश्य लिखें।
प्रेषित सामग्री के साथ फोटो एवं परिचय भी संलग्न करें। समस्त सामग्री केवल डाक या कुरियर द्वारा (ई-मेल से नहीं) निम्न पते पर शीघ्र भेजें-
जितेन्द्र ‘जौहर’(अतिथि संपादक ‘सरस्वती सुमन’)आई आर -13/6, रेणुसागर,सोनभद्र (उ.प्र.) 231218.
मोबा. # : +91 9450320472
ईमेल का पता : jjauharpoet@gmail.com यहाँ भी मौजूद : jitendrajauhar.blogspot.com
बहुत अच्छी कहानी हॆ
ReplyDelete