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Saturday, July 24, 2010

दिल के टुकड़े

वह लोगों के बीच
रोज़ सुनाया करता था
जिनकी मुहब्बत के
चर्चे हज़ार
एक दिन कर गयी वो
उसके दिल के टुकड़े हज़ार
फिर बड़ी अदा से मुस्कराई
और बोली थी -
" दिल के कुछ टुकड़े
हो सके तो मुझे भी दे दो
बच्चे हमारे खेलेगे".

9 comments:

  1. हा हा ह!! मामू बना गईं!! गजब !!!

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  2. अच्छी विचारणीय कविता ...

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  3. kuch logo ki fitrat aisi hi hoti hai

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  4. sahi likha hai apne..par kya aurat varg hi aisa karti hai..jahan tak dekha jaye to yeh kaam purush varg ko bakhoobi aata hai...

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  5. shatakshi ji bahoot bahoot dhanyabad. ye sach hai ke us tarah ke log purush ho ya nari dono me paye jate hai aur unhe hi ishara karke ye kavita likhi gayee hai.ab kisi na kisi ko to pakadana hi tha kavita ke liye.

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  6. pahle bhi padi aaj phir padhi...
    achchi rachna hai

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  7. भावनाओं की पराकाष्ठा है…………॥बहुत सुन्दर

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  8. सानिया कह रही है कि भारत मामू बनने वाला है

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