( विरेन्द्र सेहवाग को 99 रन पर शतक बनाने से रोकने के संदर्भ में)
हे कुमार संगाकारा
व सूरज रनदीव
काश ! तुम साबित कर पाते कि
तुम नहीं हो संतान रावण की
हम तो करने लगे थे पूजा
रावण को भी एक विद्वान समझकर
मगर तुम लोंगों ने लगा दिया धब्बा
इक बार फिर उनके नाम पर
मिल अपनी राक्षसी सेना के साथ
फिर डाल दिया रावन को उसी दुविधा में
अगर जिन्दा होता रावण
तो पहला सवाल करता तुमसे
"कि क्यों करते हो मुझे शर्मिन्दा
बार बार राम के सामने
इस बार लक्ष्मन ने नहीं
बल्कि तुमने काट डाली सूर्पनखा की नाक
अपने को पाक साफ करने में
मुझे लग गयी थी सदिया
अब हार चूका हूँ मै
चलता हूँ कही राम मिल जाये तो
क्षमाप्रार्थना कर लूं ।"
एकदम नूतन बिचार अऊर अद्भुत प्रस्तुति!!!
ReplyDeleteबढ़िया विचार पर उत्तम कविता का सृजन किया आपने.. रोचक.. आभार उपेन्द्र जी..
ReplyDeleteसलिल साहब
ReplyDeleteराजभाषा हिंदी
व
दीपक 'मशाल' जी
मेरे ब्लाग पर आकर कीमती राय देने के लिये धन्यबाद
सटीक बात कह दी ..बहुत बढ़िया ..
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