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Thursday, August 26, 2010

तुम कोई गीत गुनगुनाओं

तुम कोई गीत गुनगुनाओं तो हम भी गुनगुनायें
भूलकर अपने गम जरा हम भी मुस्कराएँ
कहने को तो बहुत कुछ हैं मगर अल्फाज नहीं
बन सको अल्फाज अगर तो हम भी कुछ सुनाये
वर्षों से बेघर हैं हम किसी हमसफ़र की तलाश में
बन सको नींव अगर तो हम भी इक घर बनायें
सूनी - सूनी है महफ़िल उजड़ा हुआ ये चमन
बन जाओ तुम राग जरा हम भी साज सजाएँ
बढ़ रहीं है दूरियां मंजिल आती नहीं करीब
बढ़ाओ साथ कदम तो हम ये दूरियां मिटायें । ।

8 comments:

  1. वाह....बहुत सुन्दर....

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  2. कविता बहुत अच्छी लगी धन्यवाद्|

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  3. सुंदर भाव लिए अच्छी रचना |
    बधाई
    मेरे ब्लॉग पर आना के लिए आभार
    आशा

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  4. सुंदर रचना । सुनी सुनी की जगह सूनी सूनी टाइप कर लें शायद गलती से छोटा उ लग गया ।

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  5. आशा जोगेलकर जी

    कीमती सुझाव के लिए धन्यबाद

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  6. वाह मर्म को छूता हर अहसास उपेन्द्र जी ...........

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  7. very nice .. this one nd jindagi too...

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