तुम कोई गीत गुनगुनाओं तो हम भी गुनगुनायें
भूलकर अपने गम जरा हम भी मुस्कराएँ
कहने को तो बहुत कुछ हैं मगर अल्फाज नहीं
बन सको अल्फाज अगर तो हम भी कुछ सुनाये
वर्षों से बेघर हैं हम किसी हमसफ़र की तलाश में
बन सको नींव अगर तो हम भी इक घर बनायें
सूनी - सूनी है महफ़िल उजड़ा हुआ ये चमन
बन जाओ तुम राग जरा हम भी साज सजाएँ
बढ़ रहीं है दूरियां मंजिल आती नहीं करीब
बढ़ाओ साथ कदम तो हम ये दूरियां मिटायें । ।
वाह....बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteकविता बहुत अच्छी लगी धन्यवाद्|
ReplyDeleteसुंदर भाव लिए अच्छी रचना |
ReplyDeleteबधाई
मेरे ब्लॉग पर आना के लिए आभार
आशा
सुंदर रचना । सुनी सुनी की जगह सूनी सूनी टाइप कर लें शायद गलती से छोटा उ लग गया ।
ReplyDeleteआशा जोगेलकर जी
ReplyDeleteकीमती सुझाव के लिए धन्यबाद
bahut sundar prastuti
ReplyDeleteवाह मर्म को छूता हर अहसास उपेन्द्र जी ...........
ReplyDeletevery nice .. this one nd jindagi too...
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