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Friday, August 20, 2010

कुछ शायरियां

शायरी _१


मुस्करा उठता है सारा जमाना
उनकी ईक मुस्कराहट पर
थोडा सा हम जो मुस्करा दिये
"उपेन्द्र " तो वो रूठ गये बुरा मान कर ।।

शायरी _२

कल रात कटी बडी मुस्किल से
आज न जाने क्या हाल होगा ।
मगर अफसोस मेरी इस बेबशी का
"उपेन्द्र" उनको न जरा भी ख्याल होगा।।

शायरी _३

नाराज होकर वो चले गये वों आज मुझसे
बोलते थे दिल चीरकर दिखाइये तो यकीं आये
मैं डरता रहा कि अगर दिल चीरकर दिखाया तो "उपेन्द्र"
कहीं उनकी तस्वीर निकलकर धूल में ना गिर जाये ।।

शायरी _४

दुशमनों से क्या उम्मीद उनका काम ही था जलाना
वह चले गये घर हमारा जलाकर
अब उम्मीद अपने दोस्तों पर "उपेन्द्र"
मगर सब तमाशा देख रहे थे तालियां बजाकर ।।

13 comments:

  1. उपेन्द्र जी बहुत अच्छा लिखा आपने...........
    वो चले गए घर हमारा जलाकर

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  2. आप त करेजा फाड़ आसिक निकले...ई समझने मोस्किल हो रहा है कि आप आसिक हैं कि सायर हैं...कि आसिकी में सायर बन गए हैं..जो भी हैं खुदा का कसम लाजवाब हैं...

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  3. बेहतरीन। लाजवाब।

    *** हिन्दी प्रेम एवं अनुराग की भाषा है।

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  4. bhai kya apne baare main hi likha hai
    bhala aaj dard itna kyon hai

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  5. कल रात कटी बडी मुस्किल से
    आज न जाने क्या हाल होगा ।
    मगर अफसोस मेरी इस बेबशी का
    "उपेन्द्र" उनको न जरा भी ख्याल होगा।।

    बहुत खूब ....!!

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  6. दीपक जी
    सलिल साहब
    राजभाषा हिंदी
    आदित्य जी
    हरकीरत ' हीर' जी

    इस नाचीज के लिए अपना कीमती समय देने के लिए हार्दिक आभार

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  7. उपेन्द्र जी, शायद आपने भी कभी किसी से प्यार किया है। इतनी सुन्दर रचना कि कुछ कहना भी इसके शान में गुस्ताखी होगी।

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  8. संगीता जी
    अमित जी
    आप लोंगों के दिल को इस शायरी ने छुआ। मेरा लिखना सफल हो गया। आभार

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  9. घर जले या दिल बस तमाशे बनते हैं
    बहुत अच्छा है ये भी ..

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  10. घर जले या दिल बस तमाशे बनते हैं
    बहुत अच्छा likha है ये भी ........

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  11. उम्दा प्रस्तुति……॥लाजवाब

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  12. वाह,वाह बहुत खूब ।

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