शायरी _१
मुस्करा उठता है सारा जमाना
उनकी ईक मुस्कराहट पर
थोडा सा हम जो मुस्करा दिये
"उपेन्द्र " तो वो रूठ गये बुरा मान कर ।।
शायरी _२
कल रात कटी बडी मुस्किल से
आज न जाने क्या हाल होगा ।
मगर अफसोस मेरी इस बेबशी का
"उपेन्द्र" उनको न जरा भी ख्याल होगा।।
मगर अफसोस मेरी इस बेबशी का
"उपेन्द्र" उनको न जरा भी ख्याल होगा।।
शायरी _३
नाराज होकर वो चले गये वों आज मुझसे
बोलते थे दिल चीरकर दिखाइये तो यकीं आये
मैं डरता रहा कि अगर दिल चीरकर दिखाया तो "उपेन्द्र"
कहीं उनकी तस्वीर निकलकर धूल में ना गिर जाये ।।
मैं डरता रहा कि अगर दिल चीरकर दिखाया तो "उपेन्द्र"
कहीं उनकी तस्वीर निकलकर धूल में ना गिर जाये ।।
शायरी _४
दुशमनों से क्या उम्मीद उनका काम ही था जलाना
वह चले गये घर हमारा जलाकर
अब उम्मीद अपने दोस्तों पर "उपेन्द्र"
मगर सब तमाशा देख रहे थे तालियां बजाकर ।।
अब उम्मीद अपने दोस्तों पर "उपेन्द्र"
मगर सब तमाशा देख रहे थे तालियां बजाकर ।।
उपेन्द्र जी बहुत अच्छा लिखा आपने...........
ReplyDeleteवो चले गए घर हमारा जलाकर
आप त करेजा फाड़ आसिक निकले...ई समझने मोस्किल हो रहा है कि आप आसिक हैं कि सायर हैं...कि आसिकी में सायर बन गए हैं..जो भी हैं खुदा का कसम लाजवाब हैं...
ReplyDeleteबेहतरीन। लाजवाब।
ReplyDelete*** हिन्दी प्रेम एवं अनुराग की भाषा है।
bhai kya apne baare main hi likha hai
ReplyDeletebhala aaj dard itna kyon hai
कल रात कटी बडी मुस्किल से
ReplyDeleteआज न जाने क्या हाल होगा ।
मगर अफसोस मेरी इस बेबशी का
"उपेन्द्र" उनको न जरा भी ख्याल होगा।।
बहुत खूब ....!!
दीपक जी
ReplyDeleteसलिल साहब
राजभाषा हिंदी
आदित्य जी
हरकीरत ' हीर' जी
इस नाचीज के लिए अपना कीमती समय देने के लिए हार्दिक आभार
बहुत खूब ...सुन्दर शायरी
ReplyDeleteउपेन्द्र जी, शायद आपने भी कभी किसी से प्यार किया है। इतनी सुन्दर रचना कि कुछ कहना भी इसके शान में गुस्ताखी होगी।
ReplyDeleteसंगीता जी
ReplyDeleteअमित जी
आप लोंगों के दिल को इस शायरी ने छुआ। मेरा लिखना सफल हो गया। आभार
घर जले या दिल बस तमाशे बनते हैं
ReplyDeleteबहुत अच्छा है ये भी ..
घर जले या दिल बस तमाशे बनते हैं
ReplyDeleteबहुत अच्छा likha है ये भी ........
उम्दा प्रस्तुति……॥लाजवाब
ReplyDeleteवाह,वाह बहुत खूब ।
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