अब तक कितने
Saturday, September 11, 2010
अपनी शादी मे लिखी एक कविता
एक कवि की शादी और कविता नहीं । तो सबके बहुत कहने पर मैंने अपनी शादी के लिए जो १८ जून १९९९ को थी, ये कविता उस समय लिखी थी जो सब घरातियों और बारातियों को उपहार स्वरुप एक कार्ड पर छपवाकर दी गई। आज ११ साल बाद पुराने कागजों के बीच ये कार्ड मुझसे फिर उलझ गया और मेरे दिमाग में ये फितूर समां गया की इसे ब्लॉग पर डाल दूं । तो आप लोग गुस्ताखी माफ़ करियेगा और इसलिए भी की कविता और वो भी अपने ऊपर और अपनी ही शादी पर थोड़ा मुश्किल है ना ....................
है आज भला क्या बात नई क्यों हँसते चाँद सितारे है
क्यों रंग है फूलों पर छाया क्यों करते आज इशारे है
क्यों आज हवा भी नाच रही क्यों महक महक कर चलती है
क्या इसने कुछ पी रखी है जो बहक बहक कर चलती है॥
उपेन्द्र के शोभित मस्तक पर सेहरा कुछ ऐसा दमका है
जैसे बदल के घूँघट से कोई चाँद ख़ुशी का चमका है
सेहरे ने इसके मुखड़े को कुछ नूर में ऐसा घेरा है
फिर बिन्दू ने अपना सेहरे की तरफ मुंह फेरा है।।
सेहरे के अंदर गुंथे हुए कुछ फर्ज भी है अरमान भी है
सेहरे के महकते फूलों में इन दोनों के लिए वरदान भी है
इक गृहस्थ जीवन का राजा है एक गृहस्थ जीवन की रानी है
दोनों को आपस में मिलकर एक प्रेम की ज्योति जलानी है ॥
पिता सदाफल चाचा रामप्यारे ,रामदुलारे ऐसे आते हैं
रामश्रृंगार और रामाश्रय अपना शुभ स्नेह लुटाते है
राजेंद्र महेंद्र विकाश देवेन्द्र सोनू ज्ञानू बिट्टू छोटू फूले नहीं समाते है
भाई के सिर पर सेहरा देखकर खुशियाँ खूब मानते है ॥
इस परम सुहानी बेला में शुचि- शुभ्र ह्र्दय मिल रहें है आज
भव-सागर नैया खेने को दो प्राणी उत्तर रहें है आज
सब लोग भी उनको आशीष दे रहे है मनमानी
उन्नति पथ पर ये चले सदा और कीर्ति बड़े आसमानी॥
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कविता
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बहुत सुन्दर मित्र , सुन्दर भावो से सजी हुई इस सुन्दर रचना की जीतनी तारीफ़ करो . कम ही होगी .....आपकी इस रचना को पढ़कर बहुत अच्छा लगा ...लाजवाब , शब्दों के इस सुहाने सफ़र में आज से हम भी आपके साथ है , इस उम्मीद से की शायद सफर कुछ आसान हो
ReplyDeleteराजेंद्र मीणा, 'अथाह...'से
dhnyvaad
bahot-bohot dhanyawaad hame bhi yah uphaar pradaan karne ke liye... aapko dher saari unnati evam khushiyaan miltee rahe, hamari yahi dua hai...
ReplyDeletebahut hi sunder...
ReplyDeleteआपके विवाह की हार्दिक सुभकामनाओं सहित आपका हार्दिक धन्यवाद्,
ReplyDeleteआपने मुझे इतनी सुंदर रचना को पड़ने का अवसर प्रदान
किया
बहुत सुंदर
बहुत प्रसन्नता हुई
waah upendra ji kya shabdon me piroye hain aapne apne sunder bhavo ko behad sunder lagi sare shbd vinyas
ReplyDeletedil prasnn ho gaya padhkar...likhte rahiye yunhi!
ReplyDeletebhaut achchi rchana..dua hai aapka sath haste khlte uhi sadaa bana rahe
ReplyDeleteसारे जज्बात उड़ेल के रख दिए आपने तो.. बहुते खूब भाई जी..
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता।हिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।
ReplyDeleteदेसिल बयना – 3"जिसका काम उसी को साजे ! कोई और करे तो डंडा बाजे !!", राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें
behtreen sirjan janab
ReplyDeleteबाप रे ! इतने महानुभाव.......
ReplyDelete@ राजेन्द्र मीणा जी _ इस साथ के लिए धन्यबाद.
@ पूजा जी_ इस दुआ के लिए हार्दिक आभार
@ Its me_ जी शुक्रिया
@ आदित्य जी_ शादी की शुभकामनायें तहे दिल से स्वीकार धन्यबाद
@ रजनी जी_ शब्द विन्यास पसन्द आये...धन्यबाद
@ आभा जी _ आपको यहां देखना काफी सुकून दे गया आते रहिये... शुक्रिया
@ सखी जी_ सराहने के लिये ध्न्यबाद
@ दीपक मसाल जी_ आपका बहुत बहुत धन्यबाद
@ राजभाषा हिन्ही_ तारीफ के लिये शुक्रिया
@ आलोक ख्ररे जी_ शुक्रिया हौसला आफजाई के लिये
@समीर साहब _ आपको यहां देखकर सचमुच मेरी उडान को कुछ नये पंख मिल गये हो..बहुत बहुत धन्यबाद
Bahut Umda Upendra Ji ...........Sach me bahut kathin kamm hota hai apne uper likhna .pr aapne Bahut hi Sunderta se Shadi jaise Ati Mahatvpurn Programme ko Itne Acche Se pesh Kiya ..........Badhai ..............
ReplyDeleteAti sunder rachna Upendra ji ati sunder..........jis sunder tareeke se aapne bhawo ko panktiyon me piroya hai uski jitni bhi taareef ki jaye kam hai......ati sunder
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleterachna achhi lagi badhai
ReplyDeleteAapk likhte achcha hain
ReplyDeleteKavita aapki achchi lagee
Apne upar woh bhi shadi par wah ! kya baat hai !
really nice
वाह अपनी शादी में भी कविता ! :)
ReplyDeleteमैकया जी, मेरी तो डैथ ही हो गयी!
ReplyDeleteबाई गोड.... बहुत अच्छे!
भाई... ये केवल आप ही पढ़ें: अपनी भावी पत्नी को उपहार स्वरुप देने के लिए एक कविता मैंने भी रची है!
जब तक ये मौका नहीं मिलता.... तब तक: बैचलर पोहा!!!
हा हा हा हा हा हा!!!!!!
शुभ कामनाएँ!
आशीष
ni:sandeh sare bhaav hai kavita mein
ReplyDeletebhabhi ko sunate rahiye bich bich mein .
aisa lagega ki kal hi shadi hui hai
वाह क्या बात है
ReplyDelete@ Nirjhar ji your comment is noted thanks
ReplyDeleteउपेन्द्र जी, ताजुब होता है - आप शादी से पहले भी कवि थे - और शादी के बाद भी कविता लिख रहे हैं..........
ReplyDeleteसाधुवाद.