विकसित राष्ट्र कि तरफ कदम बढ़ाते सदी के इस दूसरे दशक में कैसा हो नया भारत ? इस रास्ते में रोड़ा बनी समस्याएं कैसे दूर हो ? आज हर भारतीय के मन में एक विकसित भारत का सपना तैर रहा है . परन्तु राष्ट्र के सम्मुख अनेकों समस्याएं इस रस्ते की रूकावट बनी खड़ी है. " नये दशक का नया भारत " नामक श्रृंखला के माध्यम से मैंने कुछ कोशिश की है. आपका सुझाव और मार्गदर्शन की जरूरत है.....
भाग- २ : कैसे मिटे गरीबी ?
जरा देखिये , भारत देश की एक तस्बीर, जहाँ मुकेश अम्बानी जैसे कई लोग करोडो डालर की लागत से बने अपने आलीशान घरों में रहते है तो वहीं लाखों लोंगों को छत भी नसीब नहीं और कितनों तो खुले आसमां के नीचे रहने को मजबूर है. फ़ोर्ब्स मैगजीन तो इन लोंगों की गिनती तो बड़े शौक से करती है मगर दूसरे लोग उसके हिसाब से गायब है. और दूसरी तस्वीर देखिये , जहाँ देश के गोदामों में हजारों टन खाद्यान्य सड़ गये वहीं दूसरी तरफ लाखों लोगों को ढंग से दो जून की रोटी भी नसीब नहीं और कितने तो भुखमरी की कगार पर है.गरीबी मिटाने के कुछ कारगर उपाय तय करने ही चाहिए जैसे की :-
* देश की पूरी अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है और सरकारी अनदेखी का आलम ये कि किसान सही मूल्य न मिल पाने से फसलों का खेतों में ही जलना बेहतर समझ रहे है. किसान आज मजदूर बनाने पर विवश हो रहा है. अतः कृषि को एक उद्योग के रूप में विकसित किया जाना चाहिए.
* रोजगार के नये अवसर को तलाशने के साथ छोटे- छोटे ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए. इन उद्योगों से बने उत्पादों को सही मूल्य मिल सके इसके लिये बाज़ार भी खोजा जाना चाहिए. इसके अलावा इन उद्योगों को कच्चा मॉल भरपूर मिल सके इसकी गारंटी सरकारी स्तर पर बनी योजनाओं में अवश्य होनी चाहिए.
* अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए न की कुछ बड़ी कंपनियों खासकर कुछ परिवारों का अधिपत्य हो. बड़ी मछलियों का छोटी -छोटी मछलियों को खाना बंद होना चाहिए, इसके लिये देश में ऐसा वातावरण विकसित हो जिसमें छोटी कंपनियों को भी उभरने का मौका मिले और विकास एक संतुलित और टिकाऊ हो.
*उर्जा किसी भी देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती है. बिजली चोरी को रोकने के साथ साथ उर्जा के कुछ वैकल्पित उपायों पर जोर देना चाहिए.
* विकास को बिजली, पानी, खाद्यान्य, सड़क इत्यादि जैसी कुछ मूलभूत सुविधाओं की नज़र से देखना चाहिए. हर हाथ में मोबाईल होने, कार होने या कुछ बड़ी इमारतों का निर्माण कर देने भर से ही विकसित होने का भ्रम नहीं पालना चाहिए. नागरिकों के लिये जबतक मूलभूत सुविधाओं का ढांचा नहीं तैयार होता तबतक सारा विकास व्यर्थ है.
*शिक्षा को रोजगार परक बनाने के लिये से व्यवसायोंमुखी बनाना अति आवश्यक है. हाथ में सिर्फ डिग्री थमाकर बेरोजगारी के दलदल में ढकेलने वाली शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन करने जरूरी है.
* देश का समग्र विकास आवश्यक है . दो चार और टाटा , बिरला व अम्बानी देश में बन जाये तो एक अरब लोगों की सेहत पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है और वो ना ही विकसित नहीं बन जायेगे. सरकार को ऐसी योजनायें बनानी चाहिए किस्में सभी लोंगों को विकास का भरपूर मौका मिले.
* गरीबी उन्मूलन में लगी संस्थाओं को सिर्फ रेवड़ी की तरह पैसे बाँट देने से ही सरकार के कर्तव्यों की इतिश्री नहीं हो जाती. ये पैसे गरीबों तक पहुँचाना चाहिए न कि विचौलियों के माध्यम से वापस जेबों में या फिर स्विस बैंक में. ये सरकार की जबाबदेही बनती है की एक-एक पैसे सही जगह खर्च हो और इसके लिये ऐसा तंत्र विकसित हो.
* और अंत में मेरे हिसाब से इन सबसे जरूरी एक बात कि गरीबी उन्मूलन के लिये बनी सारी योजनायें पारदर्शी , जबाबदेह और सक्षम होनी चाहिए . इनमें से भ्रष्टाचार पूरी तरह मिटना चाहिए और अफसरों व कर्मचारियों में पूरी ईमानदारी अपने काम के प्रति आनी चाहिए . दूसरे, स्विस बैंक का सारा पैसा अगर ईमानदारी से वापस आ जाये तो हम शायद दुनिया में एक विकसित राष्ट्र बन जाते. ऐसे में बाबा रामदेव जी का नारा सही लगता है कि स्विस बैंक से सारा पैसा वापस लाना चाहिए.
पहला भाग पढ़ने के लिये कृपया इस लिंक पर क्लिक करें
नये दशक का नया भारत ( भाग १ ) : कैसे दूर हो बेरोजगारी ?
इस श्रृंखला की अगली कड़ी " नये दशक का नया भारत ( भाग- 3 ) : कैसे हो गाँवों का विकास ? " में आप सबके विचार और सुझाव आमंत्रित है , जो आप मुझे ई- मेल ( upen1100@yahoo.com ) से भेजने का कष्ट करे , जिन्हें आपके नाम के साथ इस अगली पोस्ट में उद्धरित किया जायेगा. इस पोस्ट में रह गयी कमियों से भी कृपया अवगत करने का कष्ट करे ताकि अगली कड़ी को और अच्छा बनाया जा सके.
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अब आईये देखते है ई मेल से आये कुछ सुझाव . मो सम कौन ? वाले संजय जी कहते है, सिर्फ किताबी ज्ञान देने से बेहतर है की वोकेशनल ट्रेनिंग देकर कुटीर उद्योगों की तरफ जनता का रूझान बढाया जाय. विवाह मृत्यु और दुसरे पारिवारिक सामाजिक और धार्मिक संस्कारों में फिजूलखर्ची रोकना चाहिए और हो सके तो इसके लिये कानून भी बने. स्वास्थ्य के क्षेत्र में कैशलेस कार्ड जारी करके अल्प बचत वर्ग की जनता को अपनी आय का एक बड़ा मद बचाने में मदद मिल सकती है . गरीबी ख़त्म करने के लिये तो सबसे ज्यादा गरीबों को ही कोशिस करनी होगी. सब्सिडी खैरात जैसी चीज कोई छोड़ना नहीं चाहता और राजनितिक दल इसको नोट के जरिये वोट के रूप में उठाते है. और इससे से भी बड़ा सच ये है की कुछ जुगाड़ू टाईप के ही लोग इस सुबिधाओं को उठा रहे है. एक तरफ जिनके बैंक खाते लाखों रुपये से भरे है वो भी २०० रूपये की बृद्धा पेंशन उठा रहे है जो की सिर्फ असमर्थ लोगों को जारी की जाती है. इसके पीछे मानसिकता ये रहती है अगर सरकार कुछ दे रही है तो क्यों का कुछ फायदा उठा लिया जाय.
संजय जी आगे लिखते है कि आम आदमी सौ रुपये खर्च करने से पहले दस बार सोंचता है कि इससे परिवार या बच्चों कि कोई जरुरत तो नहीं प्रभावित नहीं हो रही वही गरीब आदमी शाम को अद्धा सेवन में खर्च कर देता है. यह तुलना सार्वभौमिक नहीं तो अपवाद भी नहीं है . एक बहुत बड़ा फर्क अपनी वित्तीय प्राथमिकताये भी तय करने का है. किस मद पर कितना खर्च करना चाहिए ये जीवन स्तर को बहुत प्रभावित करता है. ऐश और शो -आफ पर खर्च किया हुआ पैसा व्यर्थ चला जाता है जब कि यही पैसा बच्चों कि पढ़ाई के लिये दीर्घकालिक निवेश बन सकता है.
पी से गोदियाल साहब कहते है कि जबतक इस देश कि राजनीति में मूलभूत परिवर्तन नहीं लाये जाते इस देश से गरीबी दूर नहीं कि जा सकती. सिर्फ सिद्धांतों और कागजी प्रयासों से कुछ भी नहीं हो सकता. इसकी वजह है यहाँ के लोंगों कि मानसिकता जिसे बदल पाना आसान नहीं. हम आदिवासियों की गरीबी का रोना रोते है मगर कभी क्या ईमानदारी से सोंचतें है कि ये आदिवासी अपनी उत्थान के लिये कैसे तैयार होंगे ? नक्सली रेल पटरिया, स्कूलों सरकारी भवनों और अस्पतालों को क्यों उड़ाते है ? सीधा सा जबाब है कि इससे आदिवासियों का उत्थान न हो.
गोदियाल साहब आगे लिखते है कि अभी कुछ ही महीने पहले आई. पी. एल. में इतना बड़ा घोटाला उजागर हुआ था और यहाँ तक कहा गया कि इसके सारे मैच फिक्स होते है मगर फिर भी अगले आई. पी .एल. के लिये अभी हाल में जोर -शोर से मंडी सजी. वजह ये भ्रष्टाचार कि बातें हम हिन्दुस्तानियों के लिये ज्यादा मायने नहीं रखती. गुलामी भ्रष्टाचार और गद्दारी का विषारू हमारे अन्दर इतना गहरे बैठ चुका है कि शायद सारे प्रयासों के बाद भी अगले सौ साल तक भी न भागे. असमानता का एक उदहारण मै और दूंगा, सभी जानते है कि समाज में मौजूदा भेदभाव और असमानता को दूर करने के लिये हमारे तथाकथिक कुछ समाजवादी और निम्न तबके के नेता लोग सत्ता में दाखिल हुए और आज खुद चोरी- चपारी करके धनवान बन गये और चाहते है कोई आम आदमी उन रास्तों पर न चले और बात असमानता दूर करने कि करते है. अगर हमें वाकई गरीबी दूर करनी है तो सबसे पहले गन्दी राजनीति का खात्मा जरुरी है . ५० से ७० की उम्र तक ये नेता देश को खा रहे है और अगले १० साल तक और खायेंगे और फिर इनके बाद इनकी औलादें खाएगी. सांप का बच्चा तो सांप ही होता तो अगले एक सदी तक आप आमूल चूल परिवर्तन कि उम्मीद कैसे कर सकते है. ?
आर्कुट मित्र अनिल जी कहते है , लगता नहीं की हम आजाद है. ये कैसी आजादी की दो पल रोटी के लिये भी कितने लोग तरस रहे हो. झुग्गी झोपड़ियों में कितने लोग रह रहे. रोटी कपडा और मकान तीनों चीज सही से नहीं मिल पा रही. क्या इसी आजादी का सपना देख हमारे क्रांतिकारियों ने देश की आजादी लड़ी थी ?
नये दशक का नया भारत ( भाग १ ) : कैसे दूर हो बेरोजगारी ?
इस श्रृंखला की अगली कड़ी " नये दशक का नया भारत ( भाग- 3 ) : कैसे हो गाँवों का विकास ? " में आप सबके विचार और सुझाव आमंत्रित है , जो आप मुझे ई- मेल ( upen1100@yahoo.com ) से भेजने का कष्ट करे , जिन्हें आपके नाम के साथ इस अगली पोस्ट में उद्धरित किया जायेगा. इस पोस्ट में रह गयी कमियों से भी कृपया अवगत करने का कष्ट करे ताकि अगली कड़ी को और अच्छा बनाया जा सके.
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अब आईये देखते है ई मेल से आये कुछ सुझाव . मो सम कौन ? वाले संजय जी कहते है, सिर्फ किताबी ज्ञान देने से बेहतर है की वोकेशनल ट्रेनिंग देकर कुटीर उद्योगों की तरफ जनता का रूझान बढाया जाय. विवाह मृत्यु और दुसरे पारिवारिक सामाजिक और धार्मिक संस्कारों में फिजूलखर्ची रोकना चाहिए और हो सके तो इसके लिये कानून भी बने. स्वास्थ्य के क्षेत्र में कैशलेस कार्ड जारी करके अल्प बचत वर्ग की जनता को अपनी आय का एक बड़ा मद बचाने में मदद मिल सकती है . गरीबी ख़त्म करने के लिये तो सबसे ज्यादा गरीबों को ही कोशिस करनी होगी. सब्सिडी खैरात जैसी चीज कोई छोड़ना नहीं चाहता और राजनितिक दल इसको नोट के जरिये वोट के रूप में उठाते है. और इससे से भी बड़ा सच ये है की कुछ जुगाड़ू टाईप के ही लोग इस सुबिधाओं को उठा रहे है. एक तरफ जिनके बैंक खाते लाखों रुपये से भरे है वो भी २०० रूपये की बृद्धा पेंशन उठा रहे है जो की सिर्फ असमर्थ लोगों को जारी की जाती है. इसके पीछे मानसिकता ये रहती है अगर सरकार कुछ दे रही है तो क्यों का कुछ फायदा उठा लिया जाय.
संजय जी आगे लिखते है कि आम आदमी सौ रुपये खर्च करने से पहले दस बार सोंचता है कि इससे परिवार या बच्चों कि कोई जरुरत तो नहीं प्रभावित नहीं हो रही वही गरीब आदमी शाम को अद्धा सेवन में खर्च कर देता है. यह तुलना सार्वभौमिक नहीं तो अपवाद भी नहीं है . एक बहुत बड़ा फर्क अपनी वित्तीय प्राथमिकताये भी तय करने का है. किस मद पर कितना खर्च करना चाहिए ये जीवन स्तर को बहुत प्रभावित करता है. ऐश और शो -आफ पर खर्च किया हुआ पैसा व्यर्थ चला जाता है जब कि यही पैसा बच्चों कि पढ़ाई के लिये दीर्घकालिक निवेश बन सकता है.
पी से गोदियाल साहब कहते है कि जबतक इस देश कि राजनीति में मूलभूत परिवर्तन नहीं लाये जाते इस देश से गरीबी दूर नहीं कि जा सकती. सिर्फ सिद्धांतों और कागजी प्रयासों से कुछ भी नहीं हो सकता. इसकी वजह है यहाँ के लोंगों कि मानसिकता जिसे बदल पाना आसान नहीं. हम आदिवासियों की गरीबी का रोना रोते है मगर कभी क्या ईमानदारी से सोंचतें है कि ये आदिवासी अपनी उत्थान के लिये कैसे तैयार होंगे ? नक्सली रेल पटरिया, स्कूलों सरकारी भवनों और अस्पतालों को क्यों उड़ाते है ? सीधा सा जबाब है कि इससे आदिवासियों का उत्थान न हो.
गोदियाल साहब आगे लिखते है कि अभी कुछ ही महीने पहले आई. पी. एल. में इतना बड़ा घोटाला उजागर हुआ था और यहाँ तक कहा गया कि इसके सारे मैच फिक्स होते है मगर फिर भी अगले आई. पी .एल. के लिये अभी हाल में जोर -शोर से मंडी सजी. वजह ये भ्रष्टाचार कि बातें हम हिन्दुस्तानियों के लिये ज्यादा मायने नहीं रखती. गुलामी भ्रष्टाचार और गद्दारी का विषारू हमारे अन्दर इतना गहरे बैठ चुका है कि शायद सारे प्रयासों के बाद भी अगले सौ साल तक भी न भागे. असमानता का एक उदहारण मै और दूंगा, सभी जानते है कि समाज में मौजूदा भेदभाव और असमानता को दूर करने के लिये हमारे तथाकथिक कुछ समाजवादी और निम्न तबके के नेता लोग सत्ता में दाखिल हुए और आज खुद चोरी- चपारी करके धनवान बन गये और चाहते है कोई आम आदमी उन रास्तों पर न चले और बात असमानता दूर करने कि करते है. अगर हमें वाकई गरीबी दूर करनी है तो सबसे पहले गन्दी राजनीति का खात्मा जरुरी है . ५० से ७० की उम्र तक ये नेता देश को खा रहे है और अगले १० साल तक और खायेंगे और फिर इनके बाद इनकी औलादें खाएगी. सांप का बच्चा तो सांप ही होता तो अगले एक सदी तक आप आमूल चूल परिवर्तन कि उम्मीद कैसे कर सकते है. ?
आर्कुट मित्र अनिल जी कहते है , लगता नहीं की हम आजाद है. ये कैसी आजादी की दो पल रोटी के लिये भी कितने लोग तरस रहे हो. झुग्गी झोपड़ियों में कितने लोग रह रहे. रोटी कपडा और मकान तीनों चीज सही से नहीं मिल पा रही. क्या इसी आजादी का सपना देख हमारे क्रांतिकारियों ने देश की आजादी लड़ी थी ?
बहुत सुलझे हुए विचार हैं। एक गहन सो, और विश्लेषण का नतीज़ा है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteफ़ुरसत में … आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के साथ (दूसरा भाग)
... prasanshaneey post !!
ReplyDeleteजीवन में इतनी असमानता। देश को विकास करना है तो, सबका विकास करना होगा।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है और सुझाए गए सभी बिन्दुओं से सहमत.
ReplyDelete***'किसान मजदूर बनने पर विवश हैं'..
भविष्य में जल के साथ साथ अनाज के लिए युद्ध होंगे ऐसी aashanka के चलते यह स्थिति भारत के भविष्य के लिए खतरनाक है .
aap ke mitr अनिल जी का कहना सही है कि आज भी भारत सही मायनो में आज़ाद नहीं है.
उपेन जी नमस्कार
ReplyDeleteबधाई आपको एक ज्वलंत विषय के लिए
मेरा तो यह कहना हैं की गरीबी और भुखमरी जैसी कोई समस्या नहीं हैं अपने आपमें, यह तो अन्य समस्याओं का परिणाम मात्र हैं
यदि बेरोजगारी दूर की जाय और सरकारी नीतियों मैं आमूल परिवर्तन किया जाय तो यह समस्या, समस्या ही न रहे भारत मैं हमेशा से हो उद्योगों का परिचालन कुछ एक हाथों मैं ही रहा हैं जिसके कारन धन का केन्द्रियिकरण होता चला गया और सरकारी तंत्र की विफलता ने लघु उद्योगों तथा कृषि आधारित कामगारों के हाथ खाली कर दिए , पूजीगत ढांचे के पारस्परिक रूप से विकसित न हो पाने के कारण आधी से ज्यादा आबादी जीवन यापन के लिए निर्भर हो गई गिनती के उद्ध्योगपतियों पर
उदारीकरण तथा ग्लोबलिजेसन के कारण भारत वैश्विक बाजार तो बना लेकिन ढुलमुल लाइसेंसिंग प्रणाली और बिचौलियों के कारोबार ने निर्माणकर्ता से केवल इसे बाजार बना दिया अब केवल दो लोगो की फौज रह गयी एक व्यापर करने वाले जी सीधे विदेशों से उपभोक्ता वस्तु को मंगवा कर और अपना ठप्पा लगा कर बेचने लगे और दूसरे उपभोग करने वाले,, सहयोगी निर्माण शालाओं के समाप्त होने के चलते बेरोजगारी बढ़ी और उससे गरीबी भी
एक कारण यह भी रहा की देश से बहुत सा धन काले धन के रूप मैं विदेशों मैं जमा हो गया एक अनुमान के अनुसार २.५० लाख करोड़ रुपया काले धन के रूप मैं विदेशी बेंकों मैं जमा हैं जो अनुत्पादक ही हैं यदि इसे भारत लाया जाय और सरकार इसका सदुपयोग कर सके तो शायद इस देश की गरीबी दूर हो सकती हैं
एक बार पुनः आपको एवं सुधि पाठको को साधू वाद
v v nice thought
ReplyDeleteWaah Upendra ji bahut badhiya..........safal lekh k liye badhai
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति. बेहतरीन विश्लेषण.
ReplyDeleteउपरोक्त आलेख के साथ ही मकर संक्रांति की भी हार्दिक शुभकामनायें.
आपके सुझावों से सहमत।
ReplyDeleteदेश की 75 प्रतिशत आबादी कृषि कार्य से अपनी आजीविका चला रही है। आज आर्थिक रूप से कमजोर किसान ही है। इनके द्वारा उत्पादित फसलों के दाम बहुत कम हैं। पिछले दस सालों में अन्य वस्तुओं की कीमतों में दस गुना वृद्धि हुई है, वहीं कृषि उपज की कीमतों में केवल दुगुनी वृद्धि हुई है।
किसानों की आर्थिक दशा सुधारने के लिए कृषि उपज की कीमतों में वृद्धि की जानी चाहिए।
आदरणीय उपेन्द्र उपेन जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत अच्छा प्रसंग छेड़ा है आपने । गरीबी और बेरोज़गारी का उन्मूलन होना ही चाहिए … लेकिन इसकी संभावना के प्रति आशा रखना दिवास्वप्न से अधिक अभी तो नहीं लगता ।
जो स्थिति है, और आगे आने वाली है … सिर्फ़ सहते जाना है । ज़्यादा से ज़्यादा अपने अपने तरीके से मन की भड़ास निकालने की थोड़ी बहुत छूट है … … …
तो … आप आलेख लिख लीजिए मैं कविता में कह दूं , बस … !
गिद्ध भेड़िये हड़पे सत्ता !
भलों - भलों का साफ है पत्ता !
न्याय लुटा , ईमान लुट गया ,
ग़ाफ़िल मगर अवाम अलबत्ता !
जीवन सस्ता , महंगी रोटी !
जिसको देखो ; नीयत खोटी !
नेता , दल्ले , व्यापारी मिल'
जनता की छीने लंगोटी !
मुश्किल बंदोबस्त कफ़न का !
मुश्किल में हर गुल गुलशन का !
सबने मिलकर आज किया है
देखो , बंटाधार वतन का !
मक़्क़ारों की मौज यहां पर !
गद्दारों की मौज यहां पर !
नेता पुलिस माफ़िया गुंडों
हत्यारों की मौज यहां पर !
सबसे आगे मेरा इंडिया !!
>~*~मकरसंक्रांति की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
इन सभी सुझावों के साथ साथ शिक्षा पर भी जोर दिया जाए तो बेहतर होगा। आज भी निचले तबके के लोग में वही सोच कायम है कि पढ़कर क्या करेगा। काम करेगा तो कुछ तो कमाएगा। एक शिक्षित व्यक्ति ही समाज को सही दिशा दे सकता है।
ReplyDeleteबहुत ही गहन विषय...और उतना ही बढ़िया विश्लेषण
ReplyDeleteसारे ही सुझाव ,मनन योग्य हैं.
बहुत अच्छी प्रस्तुति| बेहतरीन विश्लेषण|मकर संक्रांति की भी हार्दिक शुभकामनायें|
ReplyDeleteभारत दुनिय का सब से अमीर देश हे, यहां कोई समस्या नही अगर हमारे देश से भर्ष्टाचार खत्म हो जाये, यह नेता, यह अमीर होते लोग जो किसी भी तरह से सिर्फ़ अपनी जेब भरते हे, इन पर नकेल कसी जाये तो देश मै कही भी कोई भुखा ना सोय़े, आज विदेशो मे जब देखते हे, जेसे जर्मनी मे ही देखे यहां खाद्या पादर्थ बहुत कम होते हे, लेकिन यहां फ़िर भी यह सब बहुत सस्ते हे, जब कि यहां कारे ओर अन्य मशीनरी बनती हे लेकिन वो सब महंगी हे, जिस से जनता को भरपेट खाना तो मिलता हे, बाकी ऎश की चीजे मिले या ना मिले, जब्कि हमारे देश मै खाना हद से महंगा हे, बाकी समान हद से ज्यादा सस्ता, जब तक हम इस हिसाब किताब को सही नही करेगे तब तक कोई हल नही निकलने वाला,अगर भारत भुखा नंगा होता तो विदेशी कमप्नियां कभी भी भारत की ओर रुख नही करती, इस लिये हम गरीब तो बिलकुल नही, हमे गरीब बनाया गया हे
ReplyDeleteउपेन्द्र भाई, बहुत ही सार्थक विचार हैं, इनपर मनन होना चाहिए।
ReplyDelete---------
डा0 अरविंद मिश्र: एक व्यक्ति, एक आंदोलन।
एक फोन और सारी समस्याओं से मुक्ति।
गरीबी दूर करने का एक उपाय और है ब्लॉग पर गरीबी हटाने के सुझाव संबंधी पोस्टस डालनी चाहिये।
ReplyDeleteउपेंद्र बाबू! हमारे साझा ब्लॉग़(मेरे मित्र चैतन्य के साथ सम्वेदना के स्वर)पर हमने बहुत कोशिस की यह समझने,समझाने की... लेकिन लोग सलाह देना तो दूर, कट कर निकल लिये...
ReplyDeleteकभी फुर्सत में पढ़्कर देखिये, कई सुझाव, विचार मिलेंगे...
आपकी यह पोस्ट भी एक अर्थशास्त्र का शोध प्रबंध होने की योग्यता रखती है!!
एक सशक्त विषय का सटीक विश्लेषण ..... मुझे लगता है शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र के साथ ही अन्य क्षेत्रों के लिए भी जितना कुछ किया जा रहा जो योजनायें हैं ......वो भी कम नहीं है समस्या यह है की पारदर्शिता और प्रभावी ढंग से इन्हें लागू नहीं किया जा रहा है। भ्रष्टाचार हर क्षेत्र की समस्या है। हर इंसान खुद की सोच रहा है देश के बारे में समग्र रूप से सोचे जाने के भाव भी लोगों के मन में जागे। संतुलित विकास.....सबका विकास ज़रूरी है।
ReplyDeleteभ्रष्टाचार नाम का अजगर इस देश में जब तक फलता फूलता रहेगा तब इन समस्याओं का निदान संभव नहीं.अगर समस्याओं का वास्तव में हल चाहिए तो इस अजगर को पहले मारना पड़ेगा और इसके लिए हर आदमी को अपने गिरेबान में झांकना पड़ेगा , इससे आसान कोई हल नहीं.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सारगर्भित आलेख.
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया पोस्ट है ... आपने बहुत सुन्दर ढंग से विश्लेषण किया है और आच्छे तरीके सुझाये हैं ...
ReplyDeleteमुझे तो लगता है कि तीन क्षेत्र ऐसा है जिनमे सुधर कर दिया जाय तो बाकी सब धीरे धीरे सुधर जायेंगे ...
१. देश की जनसंख्या ... इसे संतुलित बनाने का हर संभव प्रयास होना चाहिए
२. शिक्षा ... शिक्षा प्रणाली को सुधारना होगा ...
३. धर्म ... धार्मिक रूढिवाद, जात पात इत्यादि पूरी तरह से खतम करना होगा ... धर्म, जाति के आधार पर की गई आरक्षण समाप्त करने होंगे ...स अमाज को धर्म और जाति के आधार पर बांटने वाले राजनेताओं को सख्त सज़ा देना होगा
बेहतरीन पोस्ट के लिये आभार, ऊपेन्द्र जी !
ReplyDeletebehatreen lekhan...likhte rahen yunhi
ReplyDeleteupendra ji
ReplyDeletebahut hi badhiya vishhy chuna hai aapne jo ham sabhi ke liye vicharniy hai aur sath hi sath kuchh karne ki prarana bhi deta hai.main sabhi ki tippniyo ka samrthan karti hun kyon ki sabhi ne bahut hi achche achche vicharon ko is sandarbh me prastut kiya hai.aapne bahut hi umda tareeke se aalekh ka vishhleshhan kiya hai.
bahut hi sarahniy avam vicharniy prastuti ke liye aapko hardik badhai.
poonam
उपेन्द्र जी,
ReplyDeleteअच्छी पहल की है आपने। इस तरह के विमर्श से हमें बहुत कुछ जानने को मिलता है। मेरे सुझाव को आपने अपनी पोस्ट में स्थान दिया, आभारी हूँ। साथ ही स्पष्ट करना चाहता होँ कि मेरे अपने विचार मेरे देखे जाने क्षेत्र हरियाणा, पंजाब से संबंधित हैं जिन्हें देश के समृद्ध राज्यों में गिना जाता है। देश के दूसरे हिस्सों की सच्चाई और आंकड़े अलग हो सकते हैं।
और मित्र, आपने ईमेल में एक बात कही थी कि आप ब्लॉगजगत से हटने का मन बना रहे थे, निराश होकर ऐसा सोचियेगा भी नहीं। कोई और वजह हो, पारिवारिक\व्यक्तिगत व्यस्ततायें हों तो अलग बात है अन्यथा आज के माहौल में अच्छे लोगों की और ज्यादा जरूरत है।
सशक्त विषय का ..... बढ़िया विश्लेषण
ReplyDeleteअच्छा विश्लेषण। चिंतन योग्य ही नहीं,अमल करने योग्य भी।
ReplyDeleteएक ज्वलंत मुद्दे को उठाया है आपने और बहुत ही बेहतरीन सुझाव भी दिए हैं ... मेरा मानना है की अगर कोई उपाय कर के देश में ईमानदारी और चरित्र निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हो तो आने वाले २०-३० सालों में देश ग़रीबी रेखा से भी उठ जायगा ...
ReplyDeletebadhiya aalekh!
ReplyDeleteउपेन जी जहाँ एक तरफ़ ब्लॉग जगत में गुटबाजी और एक दूसरे पर पोस्ट और टिप्पणी के माध्यम से कीचड़ उछालने का दौर जारी है वहीं इन सब से दूर आप का यह सार्थक लेखन प्रशंसनीय है।
ReplyDeleteआप की इस श्रृंखला से बहुत से अमूल्य सुझाव निकलकर आए हैं।
बधाई।
Upendra ji,
ReplyDeleteApake sujhaye hue upay sudrid bharat ke liye aawashyak hain.
Sabse upar bhrashtachaar ka mudda hai jispar turant kaabu pane ki jarurat hai .
Bahut saarthak lekh hai.
-Gyanchand Marmagya
योजना आयोग अपने ए सी कमरे से बाहर निकले तो बात बने :(
ReplyDeleteउपेन्द्र जी बहुत ही अच्छे विषय को आपने उठाया है आज ये समस्या बहुत गहरी बन गयी है ... पर इन सब बातों के साथ साथ आवाम के मानसिक सोंच का जो स्तर है उसे जबतक नहीं बदला जायेगा तबतक ये सारी कोशिशें बस किताबी ही रह जाएँगी क्योंकि किसी भी बदलाव के जरुरी है सामाजिक सोंच का एक दिशा में बदलना और इसे पूरा करने में काफी मशक्कत करनी होगी तब जाकर हर पहलु का रंग धीरे धीरे निखरेगा ...........बहुत ही अच्छा लगा पढ़कर बस इसे लोग जाने और उसे उतारें अपने मानसिक सोंच में विकसित करें ...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर कई बार आकर भी टिपण्णी नहीं कर पाई मेरा नेट काफी स्लो चलता है टिपण्णी की बॉक्स खुल ही नहीं पाता कई बार .....
ReplyDeleteजिस देश के नेता ये कहते हों की गरीबों के पास पैसा ज्यादा आ गया है इसलिए वो ज्यादा खाने लगे हैं और यही महंगाई का कारण है. उस देश का क्या हो सकता है..
ReplyDeleteगहन विश्लेषण से युक्त आलेख । उस पर सारगर्भित टिप्पणियों ने लेख को और भी सार्थक बनाया। आपका एवं अन्य पाठकों का आभार, इस सुन्दर चर्चा के लिए।
ReplyDeletebouth he aacha blog hai aapka....and very nice post.......
ReplyDeleteLyrics Mantra
Music Bol
सराहनीय कदम है उपेन्द्र जी ......
ReplyDeleteलगे रहिये ....!!