आज बेचैन हूँ
पूरा दिन ढूंढ़ता रहा
किताबों का वो पन्ना
जहाँ लिखा हुआ
कभी पढ़ा था
शहीदों की चिताओं पर
लगेंगे हर वर्ष मेले
मगर नहीं मिला वो पन्ना
कहीं धूल खा रहीं होगी
हमारी याददास्त भी
उन पन्नों की ही तरह
हम भूलते गए उन्हें
उनके परिजन होते रहे
दर-बदर अकेले
कहाँ हमें करना था इन्हें
दिलो-जान से प्यार
हम करते रहें इन्हें
पहचानने से भी इंकार
दिल पर लगे घाव
मां के बहते आँसू पोंछ
हमें भाई-बहना की
उम्मीद को जगाना था
मगर हमने अदा की कीमत
कुछ को पेट्रोल पम्प
कुछ को गैस एजेंसी
और प्लाट बाँट
हमने समझा
अपने कर्तव्यों की इतिश्री
वो भी आधे कागजों पर
और आधी हकीकत
साल में एक बार
ढोल- बाजों के साथ
याद कर लेना
देशभक्ति के गीत गा लेना
नहीं हो जाता इससे
शहीदों का सम्मान
पता नहीं ये सम्मान
जुबां से दिल तक कभी
उतर पायेगा या नहीं ......
( कारगिल युद्ध 1999 में शहीद होने वाले 4 जाट रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया का जन्म हिमांचल प्रदेश के पालनपुर में 29 जून 1976 में हुआ था . कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तान ने इन्हें इनके पांच साथियों, सिपाही अर्जुन राम ( नागौर , राजस्थान), सिपाही भंवर लाल बागडिया ( सीकर, राजस्थान) सिपाही भीखाराम ( बाड़मेर, राजस्थान ),सिपाही मूलाराम ( नागौर, राजस्थान ) और सिपाही नरेश सिंह ( अलीगढ, उत्तर प्रदेश) के साथ सीमा पर गस्त के दौरान घेरकर अपहरण कर लिया और 22 दिन अपनी कस्टडी में टार्चर करने के बाद इन्हें मारकर भारतीय सीमा में फेंक दिया। इन सबको बर्बर यातनाये दी गयी और इनके नाख़ून , आँखे निकाल ली गयी थी और सर धड से अलग करके क्षत- विक्षत हालत में भारतीय सीमा में फेंका गया था .
इस घटना के बाद लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया के पिता श्री नरेन्द्र कालिया को दिल का दौरा पड़ा और कुछ दिनों बाद उनकी नौकरी जाती रही। आजकल वो सरकार द्वारा दी गयी एक गैस एजेंसी के सहारे अपना और अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे है। अपने बेटे के कातिलों को सजा दिलवाने के लिए हर तरफ से हारकर और सरकारी रवैये से निराश होकर वे हेग के अंतर्राष्ट्रीय न्यायलय में इसे ले जाने की कोशिश में लगे है । पाकिस्तानी सेना ने इन युद्ध बंदियों के साथ जो बर्बरतापूर्ण कार्यवाही की वह हर तरफ से अंतर्राष्ट्रीय संधि और युद्ध अधिनियम का सरेआम उल्लंघन था।
पूरा दिन ढूंढ़ता रहा
किताबों का वो पन्ना
जहाँ लिखा हुआ
कभी पढ़ा था
शहीदों की चिताओं पर
लगेंगे हर वर्ष मेले
मगर नहीं मिला वो पन्ना
कहीं धूल खा रहीं होगी
हमारी याददास्त भी
उन पन्नों की ही तरह
हम भूलते गए उन्हें
उनके परिजन होते रहे
दर-बदर अकेले
कहाँ हमें करना था इन्हें
दिलो-जान से प्यार
हम करते रहें इन्हें
पहचानने से भी इंकार
दिल पर लगे घाव
मां के बहते आँसू पोंछ
हमें भाई-बहना की
उम्मीद को जगाना था
मगर हमने अदा की कीमत
कुछ को पेट्रोल पम्प
कुछ को गैस एजेंसी
और प्लाट बाँट
हमने समझा
अपने कर्तव्यों की इतिश्री
वो भी आधे कागजों पर
और आधी हकीकत
साल में एक बार
ढोल- बाजों के साथ
याद कर लेना
देशभक्ति के गीत गा लेना
नहीं हो जाता इससे
शहीदों का सम्मान
पता नहीं ये सम्मान
जुबां से दिल तक कभी
उतर पायेगा या नहीं ......
( कारगिल युद्ध 1999 में शहीद होने वाले 4 जाट रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया का जन्म हिमांचल प्रदेश के पालनपुर में 29 जून 1976 में हुआ था . कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तान ने इन्हें इनके पांच साथियों, सिपाही अर्जुन राम ( नागौर , राजस्थान), सिपाही भंवर लाल बागडिया ( सीकर, राजस्थान) सिपाही भीखाराम ( बाड़मेर, राजस्थान ),सिपाही मूलाराम ( नागौर, राजस्थान ) और सिपाही नरेश सिंह ( अलीगढ, उत्तर प्रदेश) के साथ सीमा पर गस्त के दौरान घेरकर अपहरण कर लिया और 22 दिन अपनी कस्टडी में टार्चर करने के बाद इन्हें मारकर भारतीय सीमा में फेंक दिया। इन सबको बर्बर यातनाये दी गयी और इनके नाख़ून , आँखे निकाल ली गयी थी और सर धड से अलग करके क्षत- विक्षत हालत में भारतीय सीमा में फेंका गया था .
इस घटना के बाद लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया के पिता श्री नरेन्द्र कालिया को दिल का दौरा पड़ा और कुछ दिनों बाद उनकी नौकरी जाती रही। आजकल वो सरकार द्वारा दी गयी एक गैस एजेंसी के सहारे अपना और अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे है। अपने बेटे के कातिलों को सजा दिलवाने के लिए हर तरफ से हारकर और सरकारी रवैये से निराश होकर वे हेग के अंतर्राष्ट्रीय न्यायलय में इसे ले जाने की कोशिश में लगे है । पाकिस्तानी सेना ने इन युद्ध बंदियों के साथ जो बर्बरतापूर्ण कार्यवाही की वह हर तरफ से अंतर्राष्ट्रीय संधि और युद्ध अधिनियम का सरेआम उल्लंघन था।
जो यातनायें वीर ने झेली हैं, उसका बदला देश को लेने पर दृढ़ होना चाहिये।
ReplyDeleteहमारे रक्षक क्या कुछ नहीं कर गुजरते..देश को कम से कम उन्हें न्याय तो दिलाना चाहिए.
ReplyDeleteशहीदों को नमन .... सरकार की नीयत पर शर्म आती है ....
ReplyDeleteसाल में एक बार
ReplyDeleteढोल- बाजों के साथ
याद कर लेना
देशभक्ति के गीत गा लेना
नहीं हो जाता इससे
शहीदों का सम्मान
पता नहीं ये सम्मान
जुबां से दिल तक कभी
उतर पायेगा या नहीं ......
मार्मिक दास्तान, हृदय को विचलित कर गई !
मार्मिक चित्रण...उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteआज कोई लहल नहीं दिखाई देती कहीं भी देश भक्ति की ...
ReplyDeleteकहीं न कहीं लीडरों(मैं नेताओं की ही नही) का कसूर है जो ये भावना बरकरार नहीं सके देशवासियों में ...