एक
जिन्दगी
दो वक्त की
भूख तो नहीं
कि चलो आज
पानी पीकर सो रहेंगें ।।
दो
जिन्दगी
ढूढने निकले थे
हम लेकर चिराग
हर कदम के नीचे
अपनी ही जिन्दगी
मसलते गये।।
तीन
जिन्दगी की
कल एक मोड पर
मुलाकात हुयी थी मुझसे
एक दूसरे के हालात पर
तरस खाकर
वो अपने रास्ते
हम अपने रास्ते
मुड चलें ।
चार
जिन्दगी जीना
मुशकिल तो न था
मगर तेरी याद ने इस कदर
इसे मुशकिल बना दिया
कि हम चाहकर भी
इसे जी नहीं सके थे
अपनी तरह से ।।
पांच
जिन्दगी से मेरे
वे हमेशा ही
खेलते रहें
मै समझता रहा
वे खेल मुझसे
खेल की तरह
खेल रहें हैं ।।
छ:
मैं चूल्हा था
एवं मेरे उपर तवा
जिन्दगी बनाती रही
मेरे लिए रोटियां
मै हर लौ के साथ
खुद ही उसे जलाता गया ।।
( प्रकाशित सित, २००९ )
अब तक कितने
Saturday, August 28, 2010
Thursday, August 26, 2010
तुम कोई गीत गुनगुनाओं
तुम कोई गीत गुनगुनाओं तो हम भी गुनगुनायें
भूलकर अपने गम जरा हम भी मुस्कराएँ
कहने को तो बहुत कुछ हैं मगर अल्फाज नहीं
बन सको अल्फाज अगर तो हम भी कुछ सुनाये
वर्षों से बेघर हैं हम किसी हमसफ़र की तलाश में
बन सको नींव अगर तो हम भी इक घर बनायें
सूनी - सूनी है महफ़िल उजड़ा हुआ ये चमन
बन जाओ तुम राग जरा हम भी साज सजाएँ
बढ़ रहीं है दूरियां मंजिल आती नहीं करीब
बढ़ाओ साथ कदम तो हम ये दूरियां मिटायें । ।
भूलकर अपने गम जरा हम भी मुस्कराएँ
कहने को तो बहुत कुछ हैं मगर अल्फाज नहीं
बन सको अल्फाज अगर तो हम भी कुछ सुनाये
वर्षों से बेघर हैं हम किसी हमसफ़र की तलाश में
बन सको नींव अगर तो हम भी इक घर बनायें
सूनी - सूनी है महफ़िल उजड़ा हुआ ये चमन
बन जाओ तुम राग जरा हम भी साज सजाएँ
बढ़ रहीं है दूरियां मंजिल आती नहीं करीब
बढ़ाओ साथ कदम तो हम ये दूरियां मिटायें । ।
Sunday, August 22, 2010
अपराध बोध
" ये बब्बू ! बुरा तो नहीं मनोगे "
" नहीं बोल क्या बात है ? "
" अब आप यहाँ मत आया करो "
" क्यों क्या बात है , नाराज है मुझसे ?
"नहीं ये बात नहीं "
" तो फिर ? "
" हास्टल के लड़के मुझे चिंढाते है "
" क्या कहते है ?"
"आप को देख हमारी गरीबी का मजाक उड़ाते है ?"
इस बार बाप खामोश रहा ।
" मैं ही गाँव मिलने आ जाया करूंगा ?" कहकर बेटे ने अपना मुंह फेर लिया। उसकी आँखों में आंसू आ गया । लड़के को अपराध बोध मह्सुस हुआ की व्यर्थ ही बब्बू का दिल दुखाया ।
" ठीक है " बाप को अपना अपराध बोध मह्सुस हुआ कि उसे पहले ही यह बात ध्यान में आ जानी चाहिए थी।उसकी आँखों में आंसू छलक आयें मगर संतोष था कि उसका बेटा एक दिन इंजीनियर बनकर निकलेगा। अब वह फिर बेटे कि पढाई में बाधक नहीं बनेगा। उसने बेटे के सर पे हाथ फेर कर आशीर्वाद दिया और वापस लौट पड़ा।
" नहीं बोल क्या बात है ? "
" अब आप यहाँ मत आया करो "
" क्यों क्या बात है , नाराज है मुझसे ?
"नहीं ये बात नहीं "
" तो फिर ? "
" हास्टल के लड़के मुझे चिंढाते है "
" क्या कहते है ?"
"आप को देख हमारी गरीबी का मजाक उड़ाते है ?"
इस बार बाप खामोश रहा ।
" मैं ही गाँव मिलने आ जाया करूंगा ?" कहकर बेटे ने अपना मुंह फेर लिया। उसकी आँखों में आंसू आ गया । लड़के को अपराध बोध मह्सुस हुआ की व्यर्थ ही बब्बू का दिल दुखाया ।
" ठीक है " बाप को अपना अपराध बोध मह्सुस हुआ कि उसे पहले ही यह बात ध्यान में आ जानी चाहिए थी।उसकी आँखों में आंसू छलक आयें मगर संतोष था कि उसका बेटा एक दिन इंजीनियर बनकर निकलेगा। अब वह फिर बेटे कि पढाई में बाधक नहीं बनेगा। उसने बेटे के सर पे हाथ फेर कर आशीर्वाद दिया और वापस लौट पड़ा।
Friday, August 20, 2010
कुछ शायरियां
शायरी _१
मुस्करा उठता है सारा जमाना
उनकी ईक मुस्कराहट पर
थोडा सा हम जो मुस्करा दिये
"उपेन्द्र " तो वो रूठ गये बुरा मान कर ।।
शायरी _२
कल रात कटी बडी मुस्किल से
आज न जाने क्या हाल होगा ।
मगर अफसोस मेरी इस बेबशी का
"उपेन्द्र" उनको न जरा भी ख्याल होगा।।
मगर अफसोस मेरी इस बेबशी का
"उपेन्द्र" उनको न जरा भी ख्याल होगा।।
शायरी _३
नाराज होकर वो चले गये वों आज मुझसे
बोलते थे दिल चीरकर दिखाइये तो यकीं आये
मैं डरता रहा कि अगर दिल चीरकर दिखाया तो "उपेन्द्र"
कहीं उनकी तस्वीर निकलकर धूल में ना गिर जाये ।।
मैं डरता रहा कि अगर दिल चीरकर दिखाया तो "उपेन्द्र"
कहीं उनकी तस्वीर निकलकर धूल में ना गिर जाये ।।
शायरी _४
दुशमनों से क्या उम्मीद उनका काम ही था जलाना
वह चले गये घर हमारा जलाकर
अब उम्मीद अपने दोस्तों पर "उपेन्द्र"
मगर सब तमाशा देख रहे थे तालियां बजाकर ।।
अब उम्मीद अपने दोस्तों पर "उपेन्द्र"
मगर सब तमाशा देख रहे थे तालियां बजाकर ।।
कुछ शायरियां
शायरी _१
मुस्करा उठता है सारा जमाना
उनकी ईक मुस्कराहट पर
थोडा सा हम जो मुस्करा दिये
"उपेन्द्र " तो वो रूठ गये बुरा मान कर ।।
शायरी _२
कल रात कटी बडी मुस्किल से
आज न जाने क्या हाल होगा ।
मगर अफसोस मेरी इस बेबशी का
"उपेन्द्र" उनको न जरा भी ख्याल होगा।।
मगर अफसोस मेरी इस बेबशी का
"उपेन्द्र" उनको न जरा भी ख्याल होगा।।
शायरी _३
नाराज होकर वो चले गये वों आज मुझसे
बोलते थे दिल चीरकर दिखाइये तो यकीं आये
मैं डरता रहा कि अगर दिल चीरकर दिखाया तो "उपेन्द्र"
कहीं उनकी तस्वीर निकलकर धूल में ना गिर जाये ।।
मैं डरता रहा कि अगर दिल चीरकर दिखाया तो "उपेन्द्र"
कहीं उनकी तस्वीर निकलकर धूल में ना गिर जाये ।।
शायरी _४
दुशमनों से क्या उम्मीद उनका काम ही था जलाना
वह चले गये घर हमारा जलाकर
अब उम्मीद अपने दोस्तों पर "उपेन्द्र"
मगर सब तमाशा देख रहे थे तालियां बजाकर ।।
अब उम्मीद अपने दोस्तों पर "उपेन्द्र"
मगर सब तमाशा देख रहे थे तालियां बजाकर ।।
Tuesday, August 17, 2010
रावण की दुविधा
( विरेन्द्र सेहवाग को 99 रन पर शतक बनाने से रोकने के संदर्भ में)
हे कुमार संगाकारा
व सूरज रनदीव
काश ! तुम साबित कर पाते कि
तुम नहीं हो संतान रावण की
हम तो करने लगे थे पूजा
रावण को भी एक विद्वान समझकर
मगर तुम लोंगों ने लगा दिया धब्बा
इक बार फिर उनके नाम पर
मिल अपनी राक्षसी सेना के साथ
फिर डाल दिया रावन को उसी दुविधा में
अगर जिन्दा होता रावण
तो पहला सवाल करता तुमसे
"कि क्यों करते हो मुझे शर्मिन्दा
बार बार राम के सामने
इस बार लक्ष्मन ने नहीं
बल्कि तुमने काट डाली सूर्पनखा की नाक
अपने को पाक साफ करने में
मुझे लग गयी थी सदिया
अब हार चूका हूँ मै
चलता हूँ कही राम मिल जाये तो
क्षमाप्रार्थना कर लूं ।"
हे कुमार संगाकारा
व सूरज रनदीव
काश ! तुम साबित कर पाते कि
तुम नहीं हो संतान रावण की
हम तो करने लगे थे पूजा
रावण को भी एक विद्वान समझकर
मगर तुम लोंगों ने लगा दिया धब्बा
इक बार फिर उनके नाम पर
मिल अपनी राक्षसी सेना के साथ
फिर डाल दिया रावन को उसी दुविधा में
अगर जिन्दा होता रावण
तो पहला सवाल करता तुमसे
"कि क्यों करते हो मुझे शर्मिन्दा
बार बार राम के सामने
इस बार लक्ष्मन ने नहीं
बल्कि तुमने काट डाली सूर्पनखा की नाक
अपने को पाक साफ करने में
मुझे लग गयी थी सदिया
अब हार चूका हूँ मै
चलता हूँ कही राम मिल जाये तो
क्षमाप्रार्थना कर लूं ।"
Sunday, August 8, 2010
विश्व स्तनपान सप्ताह

जीवनदाहिनी माओं
अपनी सुडौल शरीर की चिंता करने वाली
कॉन्वेंट स्कूल से निकली
आधुनिक नारीओं !
बड़े शर्म की बात है कि
आज मनाना पड़ रहा है
विश्व स्तनपान सप्ताह
और बताना पड़ रहा है
कि कितना जरूरी है
ये स्तनपान
बच्चे की सेहत के लिए ।
माना की सौंदर्य पर
पड़ सकता है विपरीत प्रभाव
मगर बच्चे की सेहत से भी तो
है एक मजाक
और नहीं हो जाती
कर्तव्यो की इतिश्री
सिर्फ जन्म दे देने से ही
संस्कार तो अभी पूरा है बाकी ।
कल को कोई बच्चा
कैसे ललकार लगाएगा कि
असल माँ का दूध पिया है तो रूक
या अगर कल को कोई दुश्मन
सीमा पर ललकार लगा बैठा
कि पिया है दूध अगर
अपनी माँ का
तो आ जा सामने
तब क्या तुम
अपने अर्जुन के
मन की दुबिधा दूर कर पाओगी ।
( चित्र गूगल साभार )
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