 |
Wg Cdr BSK Kumar |
ये प्रस्तुति मेरी बड़ी कहानी " फर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी " का एक छोटा हिस्सा है. भारतीय वायु सेना के इस जांबाज हेलीकाप्टर पायलट विंग कमांडर बी. एस. के. कुमार को सुनामी के दौरान शीघ्र कार्यवाही, जांबाज दिलेरी , हैरत अंगेज कारनामों और देश- सेवा के फर्ज को अपने परिवार से भी ऊपर समझाने के लिए , शांतिकाल में वीरता के लिए दिए जाने वाले दूसरे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार " कीर्ति चक्र" से नवाजा गया.
अंडमान और कार निकोबार के निवासी 25 दिसम्बर 2004 की देर रात जब क्रिसमस की पार्टी के बाद जब अपने अपने घरों में नींद के आगोश में समायें होंगे तो उन्हें जरा भी इस बात का अंदेशा नहीं रहा होगा की अगली सुबह उनकी नींद किसी प्यारे एहसास के साथ नहीं बल्कि सुनामी की भीषण गर्जना के साथ टूटेगी. 26 दिसम्बर 2004 की सुबह जब सुनामी ने दस्तक दी तो लोंगों की अलसाई नजरे खौफनाख मंजर देख कांप उठी . हजारों लोग पल भर में बेघर हो चुके थे और जीवन की आखिरी लड़ाई लड़ते हुए आसमान की तरफ किसी फ़रिश्ते के इंतजार में देख रहे थे.
विंग कमांडर बी. एस. के. कुमार कार निकोबार स्थित एयर बेस में MI-8 हेलीकाप्टर फलाईट के कमांडिंग ऑफिसर थे. पहले तो वे अपनी पत्नी की आवाज को अनसुनी करते हुए ध्यान नहीं दिया . लेकिन तुरंत ही उन्हें किसी बड़े खतरे का आभास हो गया . किसी तरह वे अपने पत्नी और दो बच्चों के साथ घर से बाहर आने में सफल हुए तो बाहर का मंजर देख उनका दिल दहल गया. सुनामी का कहर लोंगों पर टूट रहा था और देखते देखते लोग मौत के मुंह में समा रहे थे. चारों तरफ से मदद के लिए आवाज आ रही थे.
 |
Tsunami disaster at Air Base Car Nicobar |
उन्होंने ने बिना तनिक भी देर किये हैंगर की तरफ दौड़ लगाई. कुछ ही मिनटों में एक MI-8 हेलीकाप्टर हवा में टेक ऑफ कर चुका था. उन्होंने चेन्नई स्थित ताम्ब्रम एयर बेस को इस बात की सूचना दी. यह अंडमान और कार निकोबार द्वीप पर मची तबाही की पहली खबर थी. बड़े- बड़े पेड़ उखड़कर पानी में तैर रहे थे . लोग उसे पकड़े मदद की गुहार कर रहे थे. कुमार ने अपने साथी सैनिकों के साथ बचाव कार्य को अंजाम देना शुरू किया . जी-टी वी से एक कार्यक्रम में बकौल उनकी पत्नी बिंदु लक्ष्मी, " हवा में हेलीकाप्टर देख हमें अंदाजा हो गया था की ये जरूर बी .एस.के. ही होगे और हम सबने राहत की साँस ली.
करीब 5 घंटे के अथक मेहनत के बाद लगभग 350 लोंगों को ऊंचाई पर स्थित स्थन पर पहुँचाया गया. इस आपरेसन के दौरान काफी मुश्किलात का भी सामना करना पड़ा, क्योंकि हेलीकाप्टर के विन्च के सहारे भी 2 या 3 लोंगों को लाना पड़ रहा था. कुमार को उम्मीद थी की विन्च यह भार उठा लेगा , क्योंकि इसकी अधिकतम भार सीमा लगभग 150 कि. ग्रा .रहती है. परन्तु फिर भी ये एक भारी रिस्क था और हेलीकाप्टर समेत बचाव दल के सदस्यों के साथ कुमार की जान को भी खतरा था मगर इसकी परवाह ना करते हुए उन्होंने अपने कार्य को जारी रखा. पहले हेल्काप्टर का ईधन समाप्त होने के बाद उन्होंने दूसरा हेलीकाप्टर चेंज किया. कई बार फायर टेंडर के छत पर सींढी लगाकर उसपर लोंगों को उतारा गया और फिर उन्हें सही जगह पर पहुचाया गया.
हेलीकाप्टर चेंज - ओवर के दौरान ही उन्हें हाथ के इशारे से थम्प्स अप करके उनके परिवार के सलामत और सही होने कि जानकारी दी गयी. जब वो इस आपरेशन को अंजाम देते समय लोंगों को चिल्लाते और मदद के लिए पुकारते देख रहे होंगे तो वे अपने परिवार के सलामती के बारे में सिर्फ सोंच सकते रहे होंगे ना कि यकीं, क्योंकि काफी देर तक उन्हें ये भी नहीं पता था कि उनका परिवार किस हाल में है. बकौल कुमार , " ऐसे हादसे में पहली प्राथमिकता अपना परिवार न होकर ज्यादा मुसीबत - जदा दुसरे लोंग होने चाहिए"
 |
Dharmsila with 4 years old son, w/o Late Cpl RN Singh, survived by this operation but her husband was not so lucky |
. कुमार कि इस जांबाजी और दिलेरी से प्रेरणा लेकर जिंदा बचे वायुसैनिकों ने नए जोश के साथ इस बचाव कार्य में सहयोग दिया. रन - वे पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था. पुरे दिन बचाव कार्य चलता रहा. परन्तु अँधेरे में मुश्किलें आने लगी थी. रन वे के किनारे के लाईट इंडिकेटर टूट चुके थे. मगर इस काम को भी कुमार और उनके साथियों ने रन -वे के किनारे केरोसीन के लेम्प जलाकर इंडिकेटर के रूप में इस्तेमाल किया . कुमार कि ये उड़ान इस मायने में भी महत्वपूर्ण थी कि वे यह उड़ान फ्लाईंग यूनिफार्म में नहीं बल्कि बनियान और लोअर में नंगे पाँव उडी थी और बचाव कार्य को नंगे पाँव ही अंजाम दिया था, क्यंकि सब कुछ पानी में बह गया था. यह ये साबित करता है भारतीय सेनायें विकट परिस्थिति में भी किस तरह से अपने फर्ज को निभा सकती है.
केरल में बैठे कुमार के माता पिता अपने बेटे के सलामती के लिए परेशान थे क्योंकि मोबाईल संपर्क टूट चुका था और मीडिया के हवाले से सुनामी के भीषण विनाश की ख़बरों से उनका भी मनोबल टूट गया था. कार निकोबार का संपर्क पुरे देश के एयर बेस से टूट गया था. मगर जब संपर्क स्थपित हुआ और दक्क्षिण कमान मुख्यालय त्रिवेंद्रम से उन्हें अपने बेटे कि सलामती और उसके जांबाज कारनामों कि खबर मिली तो उनका सीना फक्र से चौड़ा जरूर हो गया होगा. 15 जुलाई 1963 को केरल के क्वीलोन जिले में जन्में बी. एस. के. कुमार ( भगवान श्री कृष्ण कुमार ) का पूरा नाम जब उनके माता पिता ने रखा होगा तो उन्हें जरा भी इस बात का ये अंदेशा नहीं रहा होगा कि ये सचमुच सैकड़ों जिंदगियों के लिए एक दिन भगवान का ही रूप लेकर आयेगें. कीर्ति चक्र से नवाजे गए बी.एस.के कुमार आज वायु सेना में ग्रुप कैप्टन है. यह प्रस्तुति श्री कुमार जी को नमन और सुनामी के कारण जान गवा बैठे हजारों लोंगों को एक विनम्र श्रद्धांजलि है.
 |
Tsunami Memorial at Kanyakumari |