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Sunday, August 22, 2010

अपराध बोध

" ये बब्बू ! बुरा तो नहीं मनोगे "
" नहीं बोल क्या बात है ? "
" अब आप यहाँ मत आया करो "
" क्यों क्या बात है , नाराज है मुझसे ?
"नहीं ये बात नहीं "
" तो फिर ? "
" हास्टल के लड़के मुझे चिंढाते है "
" क्या कहते है ?"
"आप को देख हमारी गरीबी का मजाक उड़ाते है ?"
इस बार बाप खामोश रहा ।
" मैं ही गाँव मिलने आ जाया करूंगा ?" कहकर बेटे ने अपना मुंह फेर लिया। उसकी आँखों में आंसू आ गया । लड़के को अपराध बोध मह्सुस हुआ की व्यर्थ ही बब्बू का दिल दुखाया ।
" ठीक है " बाप को अपना अपराध बोध मह्सुस हुआ कि उसे पहले ही यह बात ध्यान में आ जानी चाहिए थी।उसकी आँखों में आंसू छलक आयें मगर संतोष था कि उसका बेटा एक दिन इंजीनियर बनकर निकलेगा। अब वह फिर बेटे कि पढाई में बाधक नहीं बनेगा। उसने बेटे के सर पे हाथ फेर कर आशीर्वाद दिया और वापस लौट पड़ा।

3 comments:

  1. bahut hi bhavnatmak chitran hai ......bahut sunder

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  2. खूबसूरत और इमोशनल लघु कथा है 'उपेन' |

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  3. @ neeraj ji aapka aabhar....hausala aafjai ke liye aur mere blog par padharane ke lite.

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