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Sunday, July 15, 2012

सोशल नेटवर्किंग साइट्स की आभासी दुनिया

           आज समाज का कोई भी वर्ग हो, इंटरनेट एक  महत्वपूर्ण जरुरत बन गया है। यह हम सबके लिए आनलाईन लाइब्रेरी और ज्ञान का भंडार है , मनोरंजन के  ढेरो श्रोत उपलब्ध करता है तो वहीँ जीवन की तमाम बेहद जरुरी चीजों जैसे बिजनेस , बैंकिंग, आनलाइन रिजरवेशन इत्यादि को और भी आसान  बना देता है। मगर इस जरुरत के हिसाब से अगर आप इंटरनेट पर समय व्यतीत  आप करते है तो ठीक है लेकिन अगर सिर्फ टाइम पास करने के लिए फेसबुक , आर्कुट , ब्लॉग और ट्विटर जैसी सोशल साईटों  के आदी  बन चुके है तो यह चिंता का विषय है।

            इन दिनों लोग सोशल नेटवर्किंग साईटों खासकर फेसबुक के एडिक्शन का शिकार हो रहे है। शुरू में इस बात का पता नहीं लगता मगर धीरे धीरे आप इसके आगोश में फँसते जाते है और यह आपके समय पर हावी होता जाता है.  इन  सोशल नेटवर्किंग साईटों में  एक दुसरे से बिना किसी परेशानी के सिर्फ एक क्लिक पर आसानी से जुड़ा  जा सकता है , सबको  समझा जा सकता है और सबसे अपने विचारों को शेयर किया जा सकता है. यह एक आभासी मित्रों की दुनिया होती है जहाँ हम  वास्तविक रूप में अपने दोस्तों से बिना मिले भी मिल लेते है।

          फेसबुक इन सोशल नेटवर्किंग साईटों में आज युवा वर्ग की  पहचान बन चुका है। जैसे यह उनके लिए एक स्टेटस सिम्बल बन गया है  ।  मिलने पर हाय हेलो की जगह पहले फेसबुक आईडी ही पूछा जाने लगा है। ऐसा लगता है की आज जो फेसबुक पर नहीं है उसके लिए अपने दोस्तों के बीच एक हीन  भावना बन  गयी है। आज फेसबुक हमारे समाज में कई तरह के परेशानियों का सबब भी ले कर आ रहा है।

          फेसबुक का सबसे पहला प्रभाव ये पड़ रहा की हमारे आभासी फ्रेंड लिस्ट में जहाँ दोस्तों की संख्या  दिन दुनी रात  चौगनी बढती जा रही है वहीँ वास्तविक दोस्तों की संख्या तेजी से घटती जा रही है। जो शाम  हम अपने दोस्तों के बीच मस्ती से कभी बिताया करते थे वह समय अब फेसबुक दोस्तों के लिए चला जा रहा है। दोस्त से वास्तविक मुलाकात हुए भले ही महीने बीत चुके हो मगर फेसबुक पर वह रोज मिल जाता है।हमारी तरह वो भी अपने आनलाईन दोस्तों की संख्या में इजाफा करने में लगा रहता है। अगर कहा जाय  की यह दोस्तों का दुश्मन है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।

         जहाँ तक मेरा मानना  है इस इन सोशल नेटवर्किंग साईटों की आदत किसी और नशे जैसे  शराब , सिगरेट , गुटके जैसी ही होती है जो न मिले तो बेचैन कर देती है। आज अगर एक सप्ताह नेट ख़राब हो जाय  या किसी अन्य कारण  से से नेट से दूर रहना पड़ जाये तो काफी अकेलापन लगने लगता है . जैसे लगता है की दुनिया से संपर्क हुए वर्षों बीत गए हो। यह धीरे धीरे हमें  अपने नशे का शिकार बना लेता है और इससे दूर होना हमें खलने लगता है। चिडचिडापन आने लगता है और लोगों में फील गुड फील बैद बन जाता है।

          सोशल नेटवर्किंग साईट्स एक खुली किताब की तरह होती है, जहाँ  लोग अपनी पर्शनल बातें जो  किसी से शेयर नहीं कर पाते या कहने में संकोच  करते है , उसे यहाँ  बिना किसी परेशानी के शेयर करते है  ।   अपने पद , प्रतिष्ठा और स्टेटस सिम्बल का लोग खुलकर  बखान करते है अतः इससे जो फेसबुक यूजर्स उस स्टेटस को नहीं पा सकते उनमें हीन  भावना आने लगी है। किसी फ्रेंड  के फ्रेंड लिस्ट में दोस्तों की अधिक संख्या भी  फेसबुक यूजर्स में हीन भावना भरती है की कैसे  मेरे दोस्तों की संख्या कम है और क्यों नहीं बढ़ रही  है। इसके लिए लोग ज्यादा से ज्यादा नेट  पर देने  लगते है  ।   लोगों में होड़ लग जाती है कितने ज्यादा मैटर और फोटो नेट से सर्च करके स्टेटस अपडेट किया जाय ।
       
           इसके  अलावा इन साईट्स पर स्टेटस अपडेट , कमेन्ट और  लाईक को सफलता की कुंजी मान जाता है। जिसे जितने कमेन्ट और लाईक मिले वह उतना ही बड़ा बन जाता है। इससे जो इस साईट्स पर नए है और जिन्हें पर्याप्त कमेन्ट और लाईक नहीं मिल पाते उनमें भी हीन  भावना घर कर लेती है। वैसे इन कमेन्ट और  लाईक   की हकीकत ये होती है की आप जितना देंगे उतना ही आपको बदले में मिलने की सम्भावना ज्यादा रहती है . मगर इसके लिए समय चाहिए जो हर किसी के पास बराबर नहीं।

            इनकी वजह से लोग बेहद जरुरी काम  भी  जल्दी जल्दी निपटा लेते है। लोग घर- परिवार के लिए पहले जितना टाईम  नहीं दे पाते ।   इस चक्कर में कुछ जरुरी काम छूट  भी जाते है। जो समय लोग  नेट पर फालतू में नष्ट कर दे रहे है उन्हें अगर बच्चों के साथ बिताये और घर परिवार के बारे में सोंचे तो ज्यादा बेहतर होगा।
 
            यह लोंगों की  रचनात्मकता को भी ख़त्म करती जा रही है। ज्यादा कमेन्ट और लाईक  के चक्कर में लोग बिना सोंचे समझे दूसरों की प्रोफाईल पर जाकर कमेन्ट और लाईक की झड़ी लगा देते है। क्योंकि अगर ऐसा नहीं करेंगें तो उनके प्रोफाईल के स्टेटस  पर सूखा ही सूखा पड़ा रहेगा। ऐसे में लोग अपनी रचनात्मक सोंच को छोड़ चापलूसी वाले अंदाज में आ जाते है और जो जितना ज्यादा भ्रमर कर लेता है उनके यहाँ उतने ही भँवरे दस्तक दे जाते है।ऐसे में ये बिना सोंचे समझे लाईक  और कमेन्ट का खेल और ज्यादा से ज्यादा दोस्त बनाने की उत्सुकता  अपनी रचनात्मकता  के हिसाब से अच्छा संकेत नहीं है।

            इन सबके अतिरिक्त इंटरनेट पर  ज्यादा समय बिताना खुद की सेहत के साथ भी खिलवाड़ है। ऐसे लोंगों में नींद पूरी न होने की शिकायत रहती है। रात  में नींद पूरी न होने से पूरे  दिन आफिस और काम  की जगह लोग थके थके से पाए जाते है ।  कमर, गर्दन और हथेलियों का दर्द आम बात बनती जा रही है. आँखों पर असमय ही चश्में आने लगे है।

           अगर आपको भी लगता है की इन  सोशल नेटवर्किंग साईटों  पर समय व्यतीत करते हुए आपको भी इन बातों  का आभास हुआ है  तो अब सम्हालने की बारी आ गयी है। सबसे पहली बात की इनके लिए एक समय निर्धारित करें की बस उसी निश्चित  समय में ही फेस्बुकाई , ब्लागिरी  ट्विटरई  और आरकुटाई  करना है। बाकि समय आपके जरुरी काम - धन्धों   और घर परिवार के लिए रहे। इन सबसे जरुरी की आपके अनुपस्थिति में आपके बच्चे नेट पर क्या कर रहे है इसका लेखा जोखा आपको चुपके चुपके  रखना चाहिए। जरुरत के लिए तो लोग अपने बच्चों को पढाई का हवाला देकर इंटरनेट दिला देते है , अच्छी बात है , मगर फेसबुक और इन साईटों  दे दूर रखना भी पैरेन्ट  की ही जिम्मेदारी है। इसके अलावा कभी कभी बच्चे उत्सुकतावश या अनजाने में गलत साईट  खोल बैठते है और बाद में उसके आदी हो जाते है।

            वास्तविक दोस्तों के बीच  समय बिताना , बातें शेयर करना और एक दुसरे की समस्यायों   को जानना बेहद जरुरी है। वर्चुअल और हकीकत की दुनिया का अंतर समझाना ही सही रहेगा । दूसरों के स्टेटस पर लाईक और कमेन्ट देख अपना  माथा न खुजलाये।   जरुरी कामों को पहले निपटाये । अपने हर मिनट मिनट का हिसाब अपडेट  न करें और अपनी कुछ खाश  नीजी बातों को पब्लिकली शेयर न करें तो अच्छा रहेगा ।   कभी कभी आपकी इन नीजी बातों  और फोटो को गलत प्रयोग भी लोग कर लेते है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स  की इस आभासी दुनिया के आदी  न बने और जरुरत के हिसाब से इंटरनेट को प्राथमिकता  दें और कम से कम सप्ताह में एक दिन ऐसा चुने जो आपका , आपके परिवार का और आपके वास्तविक दुनिया का हो और इन्टरनेट को एक दिन आराम दे।

8 comments:

  1. जबरन की असामाजिकता ओढ़ ली है हमने ...और वास्तिवकता से दूर चले जा रहे हैं.....

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  2. अपने आप को पहचाने जाने के लिये व्यग्र सब लोग..

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  3. सचेत करता अच्छा आलेख।
    इंटरनेट के प्रयोग को नशे का रूप देने से बचना चाहिए।

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  4. जितना हो सके हकीकत से जुड़े रहने का प्रयास जरूरी है स्वस्थ और अच्छी जिंदगी के लिए ...
    वौसे मैंने तो फेसबुक पे खाता नहीं खोला अभी तक ... देखिये कब तक बचके रह सकते हैं ..

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  5. सही कह रहे हैं आप .बहुत सुन्दर प्रस्तुति .आभार. अपराध तो अपराध है और कुछ नहीं ...

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  6. उपेन्द्र जी अपन तो पहले ही संभल गए... ब्लॉग पर जरुर थोडा वक़्त बिताते हैं ताकि कुछ अच्छा पढने को मिल जाये... फेसबुक से तो पहले ही तौबा कर ली.. सीमित उपयोग करता हूँ...

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  7. पूर्णतया सहमत हैं हम आपके विचारों से
    सार्थक लेख

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  8. ऐसे में लोग अपनी रचनात्मक सोंच को छोड़ चापलूसी वाले अंदाज में आ जाते है और जो जितना ज्यादा भ्रमर कर लेता है उनके यहाँ उतने ही भँवरे दस्तक दे जाते है।ऐसे में ये बिना सोंचे समझे लाईक और कमेन्ट का खेल और ज्यादा से ज्यादा दोस्त बनाने की उत्सुकता अपनी रचनात्मकता के हिसाब से अच्छा संकेत नहीं है।

    बिलकुल सही लिखा आपने ...ऐसे कमेन्ट से हमें बचना चाहिए ....
    पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अभी भी पोस्ट पढ़ कर ही कमेंट्स देते हैं ...
    इसके लिए मैं रश्मि प्रभा , संगीता स्वरूप जी और डॉ दराल जी का नाम लूँगी ...

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