चलो
अब लौट चले
वापस अपने गाँव
जहाँ दिन की दुपहरी होगी
और नीम की छाँव
मक्के की तुम रोटी लाना
और सरसो का साग
ठंडी ठंडी पुरवईया में
मैं छेंडूगा
बिरहे का राग
जहाँ बचपन की होगी
मीठी यादें
दादा दादी के किस्से
खेल-खेल में
बनते और बिगड़ते
गुड्डा-गुड्डी के रिश्ते
जहाँ शहर की मारकाट से
दूर कहीं होंगी
अपने गाँवो की गलियाँ
पनघट पर बैठ करेंगे
जीभर अठखेलियाँ
जहाँ छत भी अपनी होगी
सारा आसमाँ अपना
अपने आँगन में
होगी चांदनी रातें
तुम सपनों में आ जाना
हम करेंगे मीठी बातें
अब ये शहर बेगाना लगता है
बेगाने से भाव
चलो
अब लौट चलें
वापस अपने गाँव ।।
अब लौट चले
वापस अपने गाँव
जहाँ दिन की दुपहरी होगी
और नीम की छाँव
मक्के की तुम रोटी लाना
और सरसो का साग
ठंडी ठंडी पुरवईया में
मैं छेंडूगा
बिरहे का राग
जहाँ बचपन की होगी
मीठी यादें
दादा दादी के किस्से
खेल-खेल में
बनते और बिगड़ते
गुड्डा-गुड्डी के रिश्ते
जहाँ शहर की मारकाट से
दूर कहीं होंगी
अपने गाँवो की गलियाँ
पनघट पर बैठ करेंगे
जीभर अठखेलियाँ
जहाँ छत भी अपनी होगी
सारा आसमाँ अपना
अपने आँगन में
होगी चांदनी रातें
तुम सपनों में आ जाना
हम करेंगे मीठी बातें
अब ये शहर बेगाना लगता है
बेगाने से भाव
चलो
अब लौट चलें
वापस अपने गाँव ।।
क्या क्या याद दिला देते हैं आप भी उपेन बाबू!! कमाल!!
ReplyDeleteवाह ...सच हमने गाँव करीब से देखा है तो लौटने का मन भी होगा ही ... सुंदर चित्रण
ReplyDeleteआ अब लौट चलें.
ReplyDeleteशुरुआत तो हो ही गयी है
ReplyDeleteबीती यादों का खजाना जो सुकून देता है मन को ...
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