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Friday, December 26, 2014

माँ

         1
जब जब मै  गिरता रहा
माँ मझे अकेला
हर बार छोड़ती रही
मै खुद कोशिश करता
उठकर सम्हलने की
और जब भी उठकर खड़ा होता
माँ मुझे चूम लेती
सच आज भी जब जिंदगी
गिरा देती है
वक्त की सीढ़ियों से
मुड़कर देखा हूँ माँ की तस्वीर
और पुनः खड़ा हो जाता हूँ
 एक नए जोश से
और चूम लेता हूँ
माँ की तस्वीर
उठती  है मन में एक कसक
क्यों मै  बड़ा  बन गया
माँ काश मै  फिर से
वो बच्चा बन पाता ।।

     2..
तुम्हारा यूँ  चले जाना
निश्चय ही छोड़ देता है
निराशा  के अँधेरे में
मगर ,
अक्सर लगता है कि
तुम एक ज्योति बन
उन्हें चीर देती हो
ताकि  मै  आगे बढ़ सकू

3...

तुम्हारे जलाये दिये
आज भी जल रहे है
और अँधेरा उन्हें
छू भी  नहीं पा रहा
पता है क्यों …
तुम्हारे सपने मरे नहीं
मैं  उन  सपनों  के संग
आज भी सोता
और जागता  हूँ ।





2 comments:

  1. इस रचना पर बस सिर झुकाने का मन होता है उपेन बाबू!!

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