बहुतै दिन से हम सोंचत रहनी की कौनों भोजपुरिया मिठास के साथ पोस्ट ले आयीं. आज आपन पुरनका डायरी हाथ मे लागल तै आपन लिखल एक गो पहिली लघुकथा हाथ लागल और उहो भोजपुरी में , बस तै इकरा के आप लोगन के समने अवले में तनिकों देर ना लागल............एक बात अऊर की ये कहानी के साथ एक गो अऊर कहानी जुडल बाये की जब ई अख़बार में छपे के खातिन गइल तै स्वीकृति तै हो गइल बके इकरा के हिंदी में तब्दील कैले के शर्त पर . मगर हम दूसर कहानी भेंज दिहनीं बजाये एकरा में तब्दीली के. काहे से की ई आपन के पहिली लघुकथा रहल अऊर आज भी ई डायेरी के शोभा बाये ...( तै पेश बाय आपन ११ नव . १९९६ के लिखल पहिली लघुकथा " छलिया प्रेमी " )
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सुबह जब बुढाए के साँझ के गोदी सोवै जात रहल तै वो बेला में रजमतिया के खेत के मेडी से गुजरत देख मिसिर के लौंडा रतन के मन मचल गएल . आपन इशारा से रतन रजमतिया के मकई के खेते में बुलावनै .
" ना बाब ना , केहू देख लेई तै का होई " रजमतिया सकुचात आपन बात कही के भागे लागल.
" अरे नाहीं रे केहू देखि लेई तै का हो जाई. हम तै तोहरा से पियार करी ला " रतन आपन बाहीं कै सहारा देत रजमतिया से बोलनै.
" अगर कुछो गड़बड़ भई गयेल तब "
" तब का हम तोहरा से वियाह कई लेबी "
" अऊर अगर जात बिरादरी कै चक्कर पड़ी गयेल तब "
" हम अपने साथै तुहके शहरवा भगा ले चालब ना........ " रतन रजमतिया के अपने पहलु में समेटत कहने .
रजमतिया भी अब एतना आसरा पाके मन से गदगद हो गइल और अपने भविष्य कै सपना सजावत समर्पण कै दिहले.
कुछे देर बाद मिसिर बाबा अपने खेते के निगरानी बदे वहां से गुजरने तै कुछ गड़बड़ कै आशंका तुरंते भाप चिल्लैनन " कौने हई रे खेतवा में.. .. आज लगत बाये कुल मकई टुटी जाई ."
उधर रजमतिया के गाले पै रतन कै थप्पड़ पड़ल और चिलाये के कहनै ," दौड़िहा बाबू जी हम रजमतिया के पकड़ लिहले बानीं ." इ ससुरी आज मकई तोरै बदे खेत में घुसल रहे , " रजमतिया के तनिको ना समझ में आवत की ई का होत बाये. मगर रतानवा सब समझ गयेल रहेल की अब रजमतिया के ही चोर साबित कईके उ रजमतिया से पीछा छुड़ा सकत हवे . काहें के की अब रजमतिया के भोगले के बाद अब उमें रतन कै तनिको इच्छा ना रही गएल रहल . अऊर इसे उ बिल्कुले पाक साफ बच जात रहने अपने बाप के नज़र मे.
फिर तै मिसिर बाबा अऊर रतन दोनों रजमतिया पै सोंटा और लात - घुसन कै बौछार कई देहेनें. इधर रजमतिया छलिया प्रेमी के ठगल बस देखत रही गएल.
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सुबह जब बुढाए के साँझ के गोदी सोवै जात रहल तै वो बेला में रजमतिया के खेत के मेडी से गुजरत देख मिसिर के लौंडा रतन के मन मचल गएल . आपन इशारा से रतन रजमतिया के मकई के खेते में बुलावनै .
" ना बाब ना , केहू देख लेई तै का होई " रजमतिया सकुचात आपन बात कही के भागे लागल.
" अरे नाहीं रे केहू देखि लेई तै का हो जाई. हम तै तोहरा से पियार करी ला " रतन आपन बाहीं कै सहारा देत रजमतिया से बोलनै.
" अगर कुछो गड़बड़ भई गयेल तब "
" तब का हम तोहरा से वियाह कई लेबी "
" अऊर अगर जात बिरादरी कै चक्कर पड़ी गयेल तब "
" हम अपने साथै तुहके शहरवा भगा ले चालब ना........ " रतन रजमतिया के अपने पहलु में समेटत कहने .
रजमतिया भी अब एतना आसरा पाके मन से गदगद हो गइल और अपने भविष्य कै सपना सजावत समर्पण कै दिहले.
कुछे देर बाद मिसिर बाबा अपने खेते के निगरानी बदे वहां से गुजरने तै कुछ गड़बड़ कै आशंका तुरंते भाप चिल्लैनन " कौने हई रे खेतवा में.. .. आज लगत बाये कुल मकई टुटी जाई ."
उधर रजमतिया के गाले पै रतन कै थप्पड़ पड़ल और चिलाये के कहनै ," दौड़िहा बाबू जी हम रजमतिया के पकड़ लिहले बानीं ." इ ससुरी आज मकई तोरै बदे खेत में घुसल रहे , " रजमतिया के तनिको ना समझ में आवत की ई का होत बाये. मगर रतानवा सब समझ गयेल रहेल की अब रजमतिया के ही चोर साबित कईके उ रजमतिया से पीछा छुड़ा सकत हवे . काहें के की अब रजमतिया के भोगले के बाद अब उमें रतन कै तनिको इच्छा ना रही गएल रहल . अऊर इसे उ बिल्कुले पाक साफ बच जात रहने अपने बाप के नज़र मे.
फिर तै मिसिर बाबा अऊर रतन दोनों रजमतिया पै सोंटा और लात - घुसन कै बौछार कई देहेनें. इधर रजमतिया छलिया प्रेमी के ठगल बस देखत रही गएल.
उपेन्द्र जी, अच्छा लगा पढ़ना आपकी पुरानी डायरी से। वैसे चौदह साल में कुछ तो परिवर्तन आया ही होगा, क्या विचार है आपका?
ReplyDeleteवाह उपेन्द्र जी, एक तो बिहारी बाबू लगे है - हर दुई तीनो दिनों बाद हमका पटना शहर घुमाए रही...... एको आप मिले, अब लगे भोजपुरी में भी दक्षता हुई जायेगी.
ReplyDeleteउ रतनवा बुझे रहे कि रजमतिया मात्र सेहरी बनबे खातिर इ सभे प्रपंच किया है....... का करे उ बेचारा......
कम से कम बापू के आगे तो इज्ज़त बचाई रही.
भाषा पर अच्छी पकड़ है | रचना भी उतनी ही सुंदर है
ReplyDeleteमज़ा आय गैएल ....बहुतय सुन्दर कहानी
ReplyDelete@ संजय जी आभार, गाँव छोड़े तो १५ साल के करीब हो गए मगर संपर्क बना हुआ है . इन सालों में गांवों में तरक्की तो बहुत आयी. हर हाथ में मोबाईल आया हर घर में टी वी, मोटर साईकिल आयी. गाँव की सड़कों पर भी कारें दौड़ने लगी मगर सामाजिक स्तर पर इनकी अपेक्षा बदलाव थोड़े कम ही है. शोषण लगभग जस का तस है. आज भी खेतों में काम करने वाली मजूरन ऐसे मालिक लोंगों की शिकार आसानी से बन जाती है. हा पहले की अपेक्षा कम जरूर हुआ है .
ReplyDeleteएक अच्छी आंचलिक कहानी...भाषा की मधुरता मन मोह लेती है।
ReplyDeleteआंचलिकता का प्रभाव है ...भाषा पर गहरी पकड़ है ...संवाद बिलकुल सटीक हैं ...शुक्रिया
ReplyDeleteबड़ा नीक लिखले बाडू हो.... मज़ा आ गईल ...
ReplyDeleteउपेंद्र बाबू! राउर लघुकथा पढ़ला के बाद बुझा ता कि ई साँचो 15 बरिस पहिले के खिस्सा बाटे... अब्बौ होत होई ई सब गाँवे में बिस्वास नईखे होत!! बाकी मान लीं कि हो ता, त बहुत सरम के बात बा. बताईं एतना तरक्की कईला के कऊनो फायदा नैखे, टीवी, मोबाइल, कम्प्यूतर हो गईला के बादो, ई सब .. चुल्लु भर पानी में डूब मरे के चाहिं हमनीं के.
ReplyDeleteचलीं आसा कएल जाओ कि सब ठीक हो जाई.. रउओ भोजपुरी में लिखे के साहस कईनीं, ई तारीफ के बात बा!!
उपेंद्र बाबू! हई सेखर बाबू त बुझा ता कि रौआ के नर से मादा कर दिहलें!!
ReplyDelete@ सलिल साहब, कौनों बात नइखे.............ई सब दोष गूगल महराज के ट्रांस्लेसन कई होई.
ReplyDelete@ सलिल साहब , सच कहीं तै भोजपुरी में लिखे के प्रेरणा आपै के ब्लॉग देखि के मिलल.......
ReplyDeleteउपेन्द्र जी ,
ReplyDeleteभोजपुरी में आपको पढ़कर बहुत अपनापन लगा । इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार।
उपेन्द्र जी भोजपुरी तो आपन भाषा रही। ई में आपन माटी के सुगंध बा।
ReplyDeleteआंचलिक भाषा में प्रवाहमयी लिखा ...... अच्छा लगा कुछ अलग सी रचना पढ़कर आभार
ReplyDeleteभोजपुरी मे कहानी पहली बार पढी है
ReplyDeleteमजा आ गया
लिखते रहिये
अच्छी लगी कहानी वो भी अलग अंदाज़ में
ReplyDeleteआपने तो बहुत सुन्दर लिखा..बधाई.
ReplyDelete'पाखी की दुनिया' में भी आपका स्वागत है.
भोजपुरी में पढ़कर अच्छा लगा....
ReplyDeleteमैंने ब्लॉग पे पहली बार भोजपुरी भाषा में कुछ पढ़ा है..
ReplyDeleteमैं बोल तो लेता हूँ भोजपुरी लेकिन उतना अच्छा नहीं...वैसे पटना में रहे वाला कौन होगा जिसको ये भाषा से ताल्लुक न पड़ा हो... :)
मजेदार.. :)
उप्रेन्द्र भाई, आपकी बातें मन को छू गईं।
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त्रिया चरित्र : मीनू खरे
संगीत ने तोड़ दी भाषा की ज़ंजीरें।
बहुत सुन्दर और दिल को छुं लेने वाली कथा ... भारतीय समाज में ऐसा तो हर जगह हर युग में होता आया है और हो रहा है ...
ReplyDeleteबहुत कुछ भाशा के कारण समझ नही पाई। शुभकामनायें।
ReplyDeleteयह आंचलिक छोटी कहानी पढना बहुत अच्छा लगा
ReplyDeleteरचना प्रभावी है
आभार
क्रिएटिव मंच आप को हमारे नए आयोजन
'सी.एम.ऑडियो क्विज़' में भाग लेने के लिए
आमंत्रित करता है.
यह आयोजन कल रविवार, 12 दिसंबर, प्रातः 10 बजे से शुरू हो रहा है .
आप का सहयोग हमारा उत्साह वर्धन करेगा.
आभार
बाप रे बाप,बेचारी रजमतिया,न इधर की रही न उधर की.
ReplyDeleteबहुत ही दर्दनाक.
भाषा प्यारी है और समझ में आ रही है
आप सभी लोँगोँ का हार्दिक आभार हौसला आफजाई के लिये।
ReplyDeletehar kahani kuch kahati hai.
ReplyDeletebehtreen lekh k liye badhai
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