रविवार पर दो कवितायें: एक ये जो 17 साल पहले की बाल कविता .......
(६ नवम्बर १९९४ को इलाहाबाद के " प्रयागराज टाईम्स " में प्रकाशित बाल कविता ) |
और एक ये जो आज की (रविवार का एक मीठा एहसास )........
रविवार : बस आनंद ही आनंद
रविवार !
यानि सुबह के मोबाईल के
अलार्म की टिन- टिन से छुट्टी
और देर तक सुबह की
मीठी नींद का आनंद
बस आनंद ही आनंद ।।
न सड़क पर
ट्रैफिक की चिंता
न आफिस पहुँचने की जल्दबाजी
न बास की खिंच - खिंच
न सहयोगियों की चिख -चिख
और न फाईलों की टेंशन
वाह रे सुकून भरा आनंद
बस आनंद ही आनंद ।।
न फोन सिर पर
घनघना पा रहा
न काम का बोझ दबा पा रहा
सप्ताह के इस दिन
बस चलती है हमारी मर्जी
अजी आज के राजा है हम
कहाँ मिलेगा ऐसा आनंद
बस आनंद ही आनंद ।।
नहाने के बाद
छत पर गुनगुनी धुप का
मीठा एहसास
गरमा गरम आलू पराठा
दे रहा नाश्ते का आनंद
बस आनंद ही आनंद ।।
बच्चों का स्कूल का विंटर कैम्प
उनकी अम्मा की किट्टी
वाह रे सुकून भरा दिन
बस इस रजाई में दुबककर
ये बीत रहा दिन
एक असीम शांति का आनंद
बस आनंद ही आनंद ।।
ब्लॉग परिवार के सभी सदस्यों को क्रिसमस की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें
माफ़ कीजियेगा,कविता बेजान है.
ReplyDelete@ राधारमण जी , कोई बात नहीं. शायद शनिवार की खुमारी निकली नहीं होगी.... अगली बार बेहतर कोशिश करूंगा. धन्यवाद.
ReplyDeleteरविवार किसे नहीं पसन्द नहीं है।
ReplyDeleteबढियां है !
ReplyDeleteमगर अफ़सोस ये रविवार
आता है हफ्ते में सिर्फ एक बार !
रविवार का तो आनंद ही कुछ और है..उसपर सर्दियों और क्रिसमस की हींग फिटकिरी लग गयी तो फिर कहना ही क्या!!
ReplyDeleteछुट्टी किसे पसंद नहीं. वाह रविवार.
ReplyDeleteरविवार को सब की छुट्टी होती है लेकिन जिसके नाम पर यह वार है उसकी यानी सूरज की छुट्टी नहीं होती।
ReplyDeleteअपनी जिंदगी में रविवार तो होता ही नहीं....
ReplyDeleteबहरहाल, जिनके लिए होती है, उनके लिए मजे ही मजे....
अच्छा प्रस्तुतिकरण।
ati samanya vishay par khoobsoorat rachna
ReplyDeleteमानसिक कुन्हासा लपेटे अच्छी रचना .दोनों अपनी अपनी जगह अव्वल .बधाई .
ReplyDeleteकोमल अहसासों का बहुत सुंदर चित्रण...बहुत सुंदर
ReplyDeleteव्यस्तता कितनी ही हो, किंतु रविवार का अहसास अलग ही होता है। हमारी श्रीमती जी को बड़ी आतुरता से रँगोली कार्यक्रम की प्रतीक्षा होती है, तो स्वयं मुझे समाचारपत्र के रविवारीय संस्करण की।
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