हरिया का छोटा भाई काफी देर से जिद कर रहा था की वह भी उसके साथ बाजार घूमने जायेगा । उसकी मॉं ने भी कहा कि उसे भी ले जाकर उसे घूमा लाये । मगर हरिया है कि नाम ही नहीं ले रहा था। उसने अपने छोटे भाई की तरफ इशारा कर के कहा ‘‘ बड़ा घूमने चला हैं, नाक तो देख जरा कैसे बह रही है । छि: कितनी घिन आ रही है ,कोई देखेगा तो क्या कहेगा । ऊपर से मुँह से कितनी बदबू आ रही है । ’’
हरिया अकेले ही बाजार जाने के लिए तैयार होने लगा । वह जैसे ही बाहर निकला कि साहब जी बाहर कुत्ते को लेकर पार्क में टहलाते दिखाई दिये। उसे देखते ही साहब जी ने कहा ‘‘ हरिया इसे भी साथ लेकर बाजार जा और थोड़ी देर बाहर टहलाकर लाना।’’
हरिया खुश था । वह कुत्ते को लेकर बाहर निकल पडा़ । कुछ दूर चलने के बाद उसने कुत्ते को पुचकारते हुए गोंद में में उठाया तथा फिर चूम लिया । उसकी चाल में निरंतर बादशाहत बढ़ती जा रही थी ।
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क्या कीजै? साहेब का कुत्ता जो है।
ReplyDeleteसोंचने को मजबूर करती हुई रचना ....
ReplyDeleteबड़ी ही मार्मिक परिस्थितियाँ समाज की
ReplyDeletekya baat hai.. yahi to antar hai..
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति .....
ReplyDeleteअजीब सा विरोधाभास है समाज है.....
ReplyDeleteश्वानों को मिलता दूध वस्त्र... इंसान या जानवर!!बहुत ही सुन्दर!!
ReplyDeletekya baat hai bahut sahi likha
ReplyDeleteजमाना ही ऐसा है. क्या करियेगा.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच-729:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धांत यही कहता है कि नीचे का हर समुदाय अपने से ऊपर वाले की नकल कर अपना क़द बढ़ाने की जुगत में रहता है।
ReplyDeleteसाहबी की बात ही और है।
ReplyDeleteलोग एसो -आराम की ज़िन्दगी में अपनों को खो रहे है ..!
ReplyDeleteइंसान की अहमियत कौड़ी की भी नहीं रही साहब
ReplyDeleteसुंदर !
समाज में व्याप्त विरोधाभास को दर्शाती सुन्दर लघु कथा.
ReplyDeleteमर्म पर चोट करती लघुतर कथा .
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