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Wednesday, December 14, 2011

साहब का कुत्ता

 हरिया का छोटा भाई काफी देर से जिद कर रहा था की  वह भी उसके साथ बाजार घूमने जायेगा उसकी मॉं ने भी कहा कि उसे भी ले जाकर उसे घूमा लाये मगर हरिया  है कि  नाम ही नहीं ले रहा था। उसने अपने छोटे भाई  की तरफ इशारा कर के कहा ‘‘ बड़ा घूमने चला हैं, नाक तो देख जरा कैसे बह रही है छि:  कितनी घिन रही है ,कोई  देखेगा तो क्या कहेगा । ऊपर से मुँह से कितनी बदबू आ रही है ’’
     हरिया अकेले ही बाजार जाने के लिए तैयार होने लगा वह जैसे ही बाहर निकला  कि  साहब जी बाहर कुत्ते को लेकर पार्क में टहलाते दिखाई दिये उसे देखते ही साहब जी ने कहा ‘‘ हरिया  इसे भी साथ लेकर बाजार जा और थोड़ी देर बाहर टहलाकर लाना।’’ 
     हरिया खुश था वह कुत्ते को लेकर बाहर निकल पडा़ कुछ दूर चलने के बाद उसने कुत्ते को पुचकारते हुए गोंद में में उठाया तथा फिर चूम लिया  उसकी चाल में निरंतर बादशाहत बढ़ती जा रही थी

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16 comments:

  1. क्या कीजै? साहेब का कुत्ता जो है।

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  2. सोंचने को मजबूर करती हुई रचना ....

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  3. बड़ी ही मार्मिक परिस्थितियाँ समाज की

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  4. सुन्दर प्रस्तुति .....

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  5. अजीब सा विरोधाभास है समाज है.....

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  6. श्वानों को मिलता दूध वस्त्र... इंसान या जानवर!!बहुत ही सुन्दर!!

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  7. जमाना ही ऐसा है. क्या करियेगा.

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  8. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच-729:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  9. सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धांत यही कहता है कि नीचे का हर समुदाय अपने से ऊपर वाले की नकल कर अपना क़द बढ़ाने की जुगत में रहता है।

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  10. साहबी की बात ही और है।

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  11. लोग एसो -आराम की ज़िन्दगी में अपनों को खो रहे है ..!

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  12. इंसान की अहमियत कौड़ी की भी नहीं रही साहब

    सुंदर !

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  13. समाज में व्याप्त विरोधाभास को दर्शाती सुन्दर लघु कथा.

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  14. मर्म पर चोट करती लघुतर कथा .

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