राज की एक बात कह गए वो छिपाने को मुझसे
"उपेन्द्र" लाख चाहकर भो वो जिसे वह छिपा न सके थे.
* * *
मत दिखाओ मुझे हसीं ख्वाब कोई अभी
" उपेन्द्र" बहुत बाकी है अभी उनके जुल्मों- सितम.
* * *
उन्हीं की जुल्फ थी उन्हीं का साया भी था
"उपेन्द्र " उन्हीं से हमने अपना चेहरा भी छुपाया था.
* * *
वो देती रहीं दस्तक बार बार मेरे दरवाजे पर
" उपेन्द्र" मै समझता रहा ये हवा के थपेड़े होंगे.
* * *
राज की एक बात थी वह पीछे पड़ गए बताने के लिए.
"उपेन्द्र" खामोश रहे हम जिसे वर्षों तक छिपाने के लिए.
"उपेन्द्र" लाख चाहकर भो वो जिसे वह छिपा न सके थे.
* * *
मत दिखाओ मुझे हसीं ख्वाब कोई अभी
" उपेन्द्र" बहुत बाकी है अभी उनके जुल्मों- सितम.
* * *
उन्हीं की जुल्फ थी उन्हीं का साया भी था
"उपेन्द्र " उन्हीं से हमने अपना चेहरा भी छुपाया था.
* * *
वो देती रहीं दस्तक बार बार मेरे दरवाजे पर
" उपेन्द्र" मै समझता रहा ये हवा के थपेड़े होंगे.
* * *
राज की एक बात थी वह पीछे पड़ गए बताने के लिए.
"उपेन्द्र" खामोश रहे हम जिसे वर्षों तक छिपाने के लिए.
बढ़िया लगीं
ReplyDeletewah wah kya baat hai har sher kamaal hai
ReplyDeleteशुरुआत न छिपा पाने से और अंतिम शेर में छिपाने की जिद... उम्दा शेर सभी...
ReplyDeleteबहुत उम्दा ....
ReplyDeleteहर शे'र में एक नया अहसास भर दिया है आपने ....अच्छा रहा यह भी .....!
ReplyDeleteअच्छी शायरी उपेन बाबू!!
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब
ReplyDeleteबेहतरीन शायरी..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आखिरी से पहला शेर खास पसंद आया
ReplyDeleteसुन्दर ...
ReplyDeleteBahut Sundar.. nd the last one is best..
ReplyDeleteक्या बात है उनकी दस्तक को थपेड़े समझ लिया .. बहुत ही लाजवाब शेर हैं सभी ...
ReplyDeleteबहुत बढि़या शेर हैं।
ReplyDeleteहर शेर लाजवाब और बेमिसाल ..उपेंदर जी
ReplyDeleteजरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
ReplyDeleteआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
ReplyDeleteउम्दा लाजवाब