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Tuesday, February 14, 2012

कुछ शायरियाँ

राज की एक बात कह गए वो छिपाने को मुझसे
"उपेन्द्र" लाख चाहकर भो वो  जिसे वह छिपा न सके थे.  

                             *   *    *

मत दिखाओ मुझे हसीं ख्वाब कोई अभी
" उपेन्द्र" बहुत बाकी है अभी उनके जुल्मों- सितम.

                             *   *    *

उन्हीं की जुल्फ थी उन्हीं का साया भी था
"उपेन्द्र " उन्हीं से हमने अपना चेहरा भी छुपाया था.

                             *   *    *

वो देती  रहीं दस्तक बार बार मेरे दरवाजे पर
" उपेन्द्र" मै समझता रहा ये हवा के थपेड़े होंगे.

                            *   *    *

राज की एक बात थी वह पीछे पड़ गए बताने के लिए.
"उपेन्द्र"  खामोश रहे हम जिसे वर्षों तक छिपाने के लिए.

16 comments:

  1. wah wah kya baat hai har sher kamaal hai

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  2. शुरुआत न छिपा पाने से और अंतिम शेर में छिपाने की जिद... उम्दा शेर सभी...

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  3. हर शे'र में एक नया अहसास भर दिया है आपने ....अच्छा रहा यह भी .....!

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  4. बहुत बढ़िया आखिरी से पहला शेर खास पसंद आया

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  5. Bahut Sundar.. nd the last one is best..

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  6. क्या बात है उनकी दस्तक को थपेड़े समझ लिया .. बहुत ही लाजवाब शेर हैं सभी ...

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  7. हर शेर लाजवाब और बेमिसाल ..उपेंदर जी

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  8. जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

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  9. इन्द्रेशJanuary 27, 2013 at 6:06 PM


    उम्दा लाजवाब

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