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Monday, December 24, 2012

कुछ क्षणिकायें

याद

हम तो थे परिंदा
हमारी हर उड़ान के साथ
अपने लोग भी हमें
अपने दिलों से
उड़ाते गये
आलम अब ये है की
हम याद भी करें तो 
उनको याद नहीं आते है।। 

जख्म

हमें आदत थी
उनके हर चीज को
सम्हालकर रखने की
उनके दिए हर दर्द को भी
हम दिल में
सम्हालकर रखते गए
और जख्म  खाते रहें।।


इल्जाम 

उनके हर इल्जाम 
हम अपने सर लेते गये
इस उम्मीद में की 
यह होगा
आखिरी इल्जाम ।।

रेत

जबसे रेत पर मैंने
तुम्हारा नाम लिखा है
तुमने छोड़ दिया है 
लहर बनकर 
किनारे तक आना ।।

बगिया के फूल

मेरी बगिया में गिरे 
कोमल फूल 
आज बड़े उदास है
कि वो आये 
और बिन मुस्कराए 
लौट गए 
कहीं उनके 
कोमल पैरों में 
छाले तो नहीं 
पड़ गये होंगे ।।




10 comments:

  1. अति सुन्दर.

    आभार.

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  2. बेहतरीन क्षणिकायें।

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  3. सुंदर क्षणिकायें
    मेरे पास तो शब्द कम पड गये है तारीफ़ के लिए

    ReplyDelete
  4. बहुत खूब ... सभी कशानिकाएं बोलती हुई ...
    लाजवाब ...

    ReplyDelete
  5. bahut achha likhte hai aap...
    mai blog ki duniya me naya hu ...
    apka sahyog apekshit hai
    http://ehsaasmere.blogspot.in/

    ReplyDelete
  6. उनके हर इल्जाम
    हम अपने सर लेते गये
    इस उम्मीद में की
    यह होगा
    आखिरी इल्जाम ।।


    बेहद खूबसूरत क्षणिकाएं।।।
    नववर्ष की अग्रिम शुभकामनाएं।।।

    ReplyDelete


  7. ♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
    ♥♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥♥
    ♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥




    आदरणीय उपेन्द्र जी
    सारी क्षणिकाएं अच्छी हैं ...
    यह ज़्यादा पसंद आई ...
    जबसे रेत पर मैंने
    तुम्हारा नाम लिखा है
    तुमने छोड़ दिया है
    लहर बनकर
    किनारे तक आना


    आपकी लेखनी से सदैव सुंदर , सार्थक , श्रेष्ठ सृजन हो , यही कामना है …

    नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
    राजेन्द्र स्वर्णकार
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  8. बहुत सुंदर क्षणिकायें....

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