विकसित राष्ट्र कि तरफ कदम बढ़ाते सदी के इस दूसरे दसक में कैसा हो नया भारत ? इस रास्ते में रोड़ा बनी समस्याएं कैसे दूर हो ? आज हर भारतीय के मन में एक विकसित भारत का सपना तैर रहा है . परन्तु राष्ट्र के सम्मुख अनेकों समस्याएं इस रस्ते की रूकावट बनी खड़ी है. " नये दसक का नया भारत " नामक श्रृंखला के माध्यम से मैंने कुछ कोशिश की है. आपका सुझाव और मार्गदर्शन कि जरूरत है.....
भाग- १: कैसे दूर हो बेरोजगारी ?
देश के सामने आज बेरोजगारी एक बड़ी समस्या के रूप में खड़ी है. बेरोजगारी के कारण लाखों नवयुवक आज दिशाहीन हो गए है. पेट कि ज्वाला शांत करने के लिये बहुत से चोरी , डकैती जैसे समाज विरोधी काम करने लगे है. पैसों का लालच देकर दुश्मन देश भी उन्हें अपने ही देश के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है. बहुत से नवयुवक आत्महत्या कर लेते है. इस बेरोजगारी ने व्यक्तिगत , पारिवारिक और सामाजिक विघटन को बढावा दिया है और इस तरह देश के प्रगति में बहुत नौजवान अपना हाथ नहीं बटा पा रहे.
मेरे ख्याल से इस बेरोजगारी से निज़ात पाने के लिये अगर हमारी सरकारें कुछ ध्यान इन बातों पर दे तो कुछ हद तक स्थिति सुधार सकती है--------
लघु उद्योंगों को प्रोत्साहन की आज सख्त जरूरत है. आज बेरोजगार युवकों को इन उद्योगों से अवगत कराकर प्रोत्साहित करना चाहिए तथा इसके लिये सरकार को आवश्यक संसाधन भी मुहैया करना जरुरी है.
रोजगार सम्बन्धी जानकारी का सहज उपलब्ध होना आवश्यक है. हर जिले में रोजगार आफिस है मगर उसका काम सिर्फ बेरोजगारों का रजिस्ट्रेशन करने तक ही ज्यादा सीमित है. कुल ले देकर पुरे देश में एक रोजगार समाचार ही मुख्य माध्यम है. अगर किसी की नज़र पड़ी तो ठीक वरना बाद में. अतः रोजगार सम्बन्धी जानकारी को विस्तृत करना अति आवश्यक है. हालंकि, इंटरनेट और अन्य मीडिया माध्यमों के माध्यम से भी कुछ रोजगार सम्बन्धी सूचनाएं निकलती है मगर इसमें विस्तार लाना अति आवश्यक है. क्योंकि ज्यादातर लोग रोजगार समाचार पर ही आश्रित रहते है.
लार्ड मैकाले की वर्षों पुरानी शिक्षा - प्रणाली में कई खामियां है. खुद उन्होंने ही इसकी रुपरेखा इस आधार पर बनाई थी कि इससे शिक्षा प्राप्त करके युवक उनके अंग्रेजी राज में सिर्फ उनके लिये क्लर्क और बाबू से ज्यादा न बन सके. ये उनकी सोंच थी मगर हम आज भी उसी शिक्षा प्रणाली पर बैल गाड़ी की तरह दुनिया के सामने चल रहे है.
व्यवसायिक शिक्षा प्रणाली को बढावा देना अतिआवश्यक है. ताकि इस प्रकार की शिक्षा प्राप्त करके नवयुवक अपने स्वयं के व्यवसाय आरम्भ कर सके तथा उनकी निर्भरता सरकारी कार्यालयों पर कम हो सके. क्योंकि सरकारी दफ्तरों मे भी सीमित संख्या रहती है और इस तरह अनेकों नवयुवकों का बेरोजगार रह जाना स्वाभाविक है.
व्यवसाय शुरू करने के लिये सरकारी ऋण की व्यवस्था आसान शर्तों पर तथा सर्व सुलभ होनी चाहिए. ताकि धनाभाव के कारण नवयुवक अपना व्यवसाय स्थापित करने से वंचित न रह जाये. पढाई के लिये ऋण तो मिल जाता है मगर रोजगार न मिलने पर यही ऋण उनके लिये काल का ग्रास बन जाता है और इसे चुकाने के लिये नवयुवक दूसरे रास्ते देखने लगते है या आत्महत्या जैसे विकल्प चुन लेते है. अतः इन ऋणों से बेरोजगार कम से कम अपना खुद का व्यवसाय तो शुरू कर सकते हैं .
कुकुरमुत्ते की तरह हर गली में उग आये शिक्षण संस्थानों पर लगाम अति आवश्यक है. ये एम.बी.ए , एम.सी.ए , मेडिकल और इन्जीनियरिंग की डिग्री बिना उन्हें सही से योग्य किये पैसे के खातिर बस बांटते जा रहे है. इससे बेरोजगारों की संख्या में वृद्धि तो हो ही रही है और उन्हें सही ज्ञान नहीं मिल पा रहा. इन संस्थानों से डिग्री लेकर ये सिर्फ घुमते रह जाते है और इन्हें नौकरी के काबिल नहीं समझा जाता.
शारीरिक श्रम की तरफ नवयुवकों को प्रोत्साहित करना अति आवश्यक है. हाथ में ऊँची डिग्री लेकर नवयुवक शारीरिक श्रम नहीं करना चाहते तथा इन्हें हीन भावना से देखते है. इस दृष्टीकोण के कारण वे उन सभी कामों की तरफ से मुख मोड़ लेते है जो शारीरिक श्रम से जुड़े होते है. इससे भी बेरोजगारों की संख्या में वृद्धि होती है, क्योंकि सरकारी नौकरियां सीमित होती है और सबको तो मिलना मुश्किल है. अतः आवश्यकता है कुछ न कुछ वैकल्पिक व्यवसाय करने की.
आप लोंगों के कुछ सुझाव मै यहाँ जोड़ना चाहूँगा जैसे की -------
@ मो सम कौन वाले संजय जी का सैनिक शिक्षा का सुझाव बहुत ही काबिले तारीफ है. वर्षों पहले नाना पाटेकर ने जो सपना ' प्रहार ' जैसी सार्थक फिल्म के साथ देखा था वो हमारी सरकारों ने दिलचस्पी नहीं ली और इसे सच नहीं होने दिया . एक आदर्श है ईजराईल का हमारे सामने, जहाँ का हर नागरिक , एक नागरिक बाद में पहले वह देश का सैनिक है वो भी ट्रेनिंग के साथ. Manoj kumar ji, का सुझाव , ये ऐसी बुनियादी समस्याएँ है, जिनका निराकरण हम केवल सरकार के मोहताज रहकर नहीं कर सकते. बेरोजगारी एवं गरीबी जैसी समस्या से निजात पाने के लिए कोई शार्टकट नहीं हो सकता, इसके लिए स्थायी रूप से ठोस और दीर्घकालीन योजनाओ पर अमल की जरुरत है. हम सबको अपनी सोच व कार्यशैली समय के साथ, समय के अनुकूल लेकर चलनी होगी. दीपा गुप्ता जी , जिनका खुद का एक पब्लिक एडमिनिस्ट्रेटर के रूप में रोजगार आफिस में काम करने का अनुभव है, ने एक बहुत ही अच्छा अनुभव शेयर किया कि रोगगार - मेलों मे ज्यादातर लोग अपने आस पास हो रोजगार खोजना चाहते है . अतः. इसके लिये क्षेत्रीय उद्योगों को बढावा दिया जाय तो बहुत हद तक समस्या कम हो सकती है मगर इसके लिये भी छोटे स्तर पर ही सही मगर सरकारी मदद जरुरी है .
@ मो सम कौन वाले संजय जी का सैनिक शिक्षा का सुझाव बहुत ही काबिले तारीफ है. वर्षों पहले नाना पाटेकर ने जो सपना ' प्रहार ' जैसी सार्थक फिल्म के साथ देखा था वो हमारी सरकारों ने दिलचस्पी नहीं ली और इसे सच नहीं होने दिया . एक आदर्श है ईजराईल का हमारे सामने, जहाँ का हर नागरिक , एक नागरिक बाद में पहले वह देश का सैनिक है वो भी ट्रेनिंग के साथ. Manoj kumar ji, का सुझाव , ये ऐसी बुनियादी समस्याएँ है, जिनका निराकरण हम केवल सरकार के मोहताज रहकर नहीं कर सकते. बेरोजगारी एवं गरीबी जैसी समस्या से निजात पाने के लिए कोई शार्टकट नहीं हो सकता, इसके लिए स्थायी रूप से ठोस और दीर्घकालीन योजनाओ पर अमल की जरुरत है. हम सबको अपनी सोच व कार्यशैली समय के साथ, समय के अनुकूल लेकर चलनी होगी. दीपा गुप्ता जी , जिनका खुद का एक पब्लिक एडमिनिस्ट्रेटर के रूप में रोजगार आफिस में काम करने का अनुभव है, ने एक बहुत ही अच्छा अनुभव शेयर किया कि रोगगार - मेलों मे ज्यादातर लोग अपने आस पास हो रोजगार खोजना चाहते है . अतः. इसके लिये क्षेत्रीय उद्योगों को बढावा दिया जाय तो बहुत हद तक समस्या कम हो सकती है मगर इसके लिये भी छोटे स्तर पर ही सही मगर सरकारी मदद जरुरी है .
ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी का सुझाव है की देश के नौजवान एक बार स्वावलंबी हो गए तो बहुत सारी समस्याएं स्वतः समाप्त हो जायेंगी और देश विकास के रास्ते पर बड़ी तेजी से अग्रसर हो सकेगा ! सुशील बकलीबस जी का कहना है कि सरकार तो शुरु से घडियाली आंसू और दिखावी उपचार से आगे न कुछ कर पाई है और न ही शायद बहुसंख्यक सामान्यजन के लिये कुछ कर पावेगी । उपचार एक ही है और वह है शिक्षित युवा को सरकार पर निर्भर होने की बजाय अपनी व्यक्तिगत क्षमता के अनुसार शारीरिक श्रम के द्वारा अपनी राह स्वयं बना ले.अमित जी के दो सुझाव भी काबिलेतारीफ है. एक जनसंख्या नियन्त्रण, दूसरा शत-प्रतिशत लोगों का शिक्षित होना, और दोनो के लिये सरकार से ज्यादा लोगों को इच्छा शक्ति दिखानी होगी .\अलोक खरे जी का कहना है कि मूल समस्या भ्रष्टाचार है!योजनाये कितनी भी बना लो, जब तक इमानदारी नही आएगी, हमारे अफसरों और नेताओं में तब तक सब बेकार है!हरीश भट्ट जी का इस सम्बन्ध में कहना है की भ्रष्ट कार्यप्रणाली का का खात्मा जरूरी है जो अपने निहित स्वार्थों के लिए इस समस्या को जीवंत रखे आ रहे हैं .
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इस श्रृंखला की दूसरी कड़ी " नये दसक का नया भारत ( भाग- २ ) : गरीबी कैसे मिटे ? " में आप सबके विचार और सुझाव आमंत्रित है , जो आप मुझे इ- मेल ( upen1100@yahoo.com ) से भेजने का कष्ट करे , जिन्हें आपके नाम के साथ इस अगली पोस्ट में उद्धरित किया जायेगा. इस पोस्ट में रह गयी कमियों से भी कृपया अवगत करने का कष्ट करे ताकि अगली कड़ी को और अच्छा बनाया जा सके.
अच्छे सुझाव हैं आपके .किसी भी देश की प्रगति उसके नागरिकों पर निर्भर होती है .हमारी शिक्षा व्यवस्था में ही बेसिक समस्या है.
ReplyDeleteशारीरिक श्रम की तरफ भी रुझान होना चाहिए , ये सुझाव बहुत बढ़िया लगा।
ReplyDelete... prasanshaneey post !!
ReplyDeleteशिक्षा ने अब व्यवसाय का रूप ले लिया है गली कुछे में विद्यालय और कॉलेज के भरमार है ... किससे शिकायत! समस्या भारी है ...रोजगार के नाम पर बिरोज्गारों को ठगने के खेल आम हो गया है ......
ReplyDeleteआपके सुझाव बहुत अच्छे लगे ..काश यह आवाज सब सुन सकने में सक्षम होते ....... खैर कभी तो सबेरा होगा ..... नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना
bahut hi jwalant vishya hai berojgari....sunder sujhav bhi hai...mujhe public administrator hone ke nate lagbhag 3 saal rojgar vibhag me kam karne ka mauka mila hai to apne kuch anibhav batana chahugi...prashashan ki oor se jab hum rojgar melon ka ayojan karte the to yuvaon ka jhukav is or hota tha ki unhe apne hi region me koi acchi amdani ka kam mile.wo bahar rahkar jyada pese kamana nahi chahte/.ye dekhkarlaga ki regional udyogo ko badawa dene ki jarurat ahi jo microfinancing se shuru kiye ja sake aur ek region vishesh ki jarurt ke mutabik ho.
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति........ सही मायने में आपने एक जवलंत समस्या को उठाया है... और उसका निराकरण भी पेश कर रहे हो.
ReplyDeleteवाह ज़रूरी पोस्ट है ये तो
ReplyDeleteआभार
उपेंद्र बाबू!
ReplyDeleteआज त बुझा ता कि रऊआ एकदम आर्थिक नीति पर सोधपत्र लिखले बानीं. सबसे जरूरी बा प्रयास अऊर ईमानदार प्रयास, बस सरका ऊहे करस त सब ठीक हो जाई.. मनरेगा के रिपोर्ट लिखले बानीं जा हमनीं के.. देखेब तनी!!
चिन्तनीय स्थिति, सामयिक लेख।
ReplyDeleteउपेन्द्र जी नमस्कार
ReplyDeleteभारत जैसे देश मैं आजादी को दशकों बीत जाने पर भी यह समस्या सामयिक ही हैं,मुह बाए खड़ी ही हैं आपने सहज रूप से इस बारे मैं अपने विचार रक्खे जो निश्चय ही इस समस्या के निदान की ओर एक विचारणीय कदम हैं एक अहम बात जो मैं कहना चाहूँगा इस सम्बन्ध मैं वह हैं भ्रष्ट कार्यप्रणालीका का खात्मा जो अपने निहित स्वार्थों के लिए इस समस्या को जीवंत रखे आरहे हैं ,भ्रष्टाचार इस हद तक घर कर गया हैं की यदि जेबे भरने का जुगाड़ न हो तो येन केन प्रकारेन निउक्तियाँ ही रद्द करवा दी जाती हैं , एक ही उम्मीदवारी ओर नियुक्तियों पर कई कई सरकारे ओर उनके रहनुमा अपनी जेबे गर्म कर जाते हैं
ओर इस रद्दोबदल मैं पिसता रहता हैं गरीब छात्र जब तक की उसकी सरकारी नौकरी की मियाद नहीं निकल जाती
बहुत बधाई आपको इस सराहनीय प्रयास के लिए
तथा सुधि पाठको को भी प्रतिक्रियाओं के लिए
उपेन्द्र जी,
ReplyDeleteमेरा एक सुझाव ये है कि अन्य कई देशों की तरह यहाँ भी साल-दो साल के लिये सैन्य शिक्षा हर युवा के लिये जरूरी कर देनी चाहिये। सैन्य शिक्षा खुद में वोकेशनल ट्रेनिंग का काम भी कर सकती है और बहुत से ऐसे युवा अपनी मनपसंद फ़ील्ड का चुनाव भी कर सकेंगे जो अभी पेरेंट्स के बनाये या तय रास्तों पर ही कैरियर बनाते हैं।
देश और समाज के प्रति आपका सरोकार, आपकी चिंता, वंदनीय है। इन मुद्दों पर गंभीर चिंतन और मनन की ज़रूरत है। .. आपने इस शृंखला के द्वारा शुरुआत की है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteफ़ुरसत में आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री के साथ
उपेन्द्र भाई, बहुत ही ज्वलंत समस्या को उठाया है आपने. दरअसल ये ऐसी बुनियादी समस्याएँ है, जिनका निराकरण हम केवल सरकार के मोहताज रहकर नहीं कर सकते. बेरोजगारी एवं गरीबी जैसी समस्या से निजात पाने के लिए कोई शार्टकट नहीं हो सकता, इसके लिए स्थायी रूप से ठोस और दीर्घकालीन योजनाओ पर अमल की जरुरत है. हम सबको अपनी सोच व कार्यशैली समय के साथ, समय के अनुकूल लेकर चलनी होगी.
ReplyDeleteमैं यह नहीं कहना चाहता कि यह सरकार कि समस्या नहीं है, मगर उससे ज्यादा यह हम सबकी अपनी लड़ाई है. हम जिस किसी भी क्षेत्र में काम कर रहे हो या करना चाहते हो, उसमे ईमानदारी व निष्ठां से समर्पण करना ही होगा, अन्यथा परिणाम अनुकूल नहीं मिल सकता. पढ़-लिखकर आज का आम युवा आरामतलब होने कि बजाये कर्मशील होने की ओर प्रेरित हो तो धीरे-धीरे ही सही, वक्त उनका भी दूर नहीं.
आपकी चिंता,सोंच और सुझाव सब ठीक है और सराहनीय है परन्तु इस असंवेदनशील और भ्रष्टाचारी युग में आपकी बातों पर अमल करने वाला कहाँ मिलेगा ?
ReplyDeleteमेरा एक दोहा है:-
गहराई - सी रात है, कैसे होगी भोर.
जिसे पकड़ना चोर को,वो तो ख़ुद है चोर.
सार्थक पोस्ट लेकिन अगर समस्यायें इतनी जल्दी खत्म हो जायें तो नेताओं की रोटियाँ कहाँ सिकेंगे? सरकार चाहे तो बहुत कुछ हो सकता है। नाभार।
ReplyDelete@ शिखा जी ,सही कहा आपने .. कहीं न कहीं जमीनी स्तर पर ही सारी समस्याएं जन्म ले लेती है.
ReplyDelete@ दिव्या जी , आपका सुझाव बिल्कुल सही है , शारीरिक श्रम से दूर भागना आज के नवयुवकों में एक बड़ी कमी है
@ उदय जी आपका हार्दिक आभार
@ कविता जी , आभार, सही कहा आपने, आज की शिक्षा ज्ञान कम देती पैसे ज्यादा वसूलती है. सबेरा तो होगा ही बस सार्थक क़दमों की जरूरत है.
@ anonymous के रूप में मेरी आर्कुट मित्र दीपा गुप्ता जी , जिनका खुद का एक पब्लिक एडमिनिस्ट्रेटर के रूप में रोजगार आफिस में कम करने का अनुभव है, ने एक बहुत ही अच्छा अनुभव शेयर किया की रोगगार - मेलों मे ज्यादातर लोग अपने आस पास हो रोजगार खोजना चाहते है . अतः. इसके लिये क्षेत्रीय उद्योगों को बढावा दिया जाय तो बहुत हद तक समस्या कम हो सकती है मगर इसके लिये भी छोटे स्तर पर ही सही मगर सरकारी मदद जरुरी है.
ReplyDelete@ दीपक जी , आपका हार्दिक आभार.
@ गिरीश जी , सही कह रहे है आज के हिसाब से एक बहुत ही जरुरी चिंता है ये.
@ प्रवीन जी , सच चिंतनीय स्थिति तो है ही.
@ हरीश जी सही कह रहे है आप , भ्रष्टाचार की हद तो तब हो जाती है जब एक सरकार पैसे लेकर नियुक्तिया करती है और दूसरी सरकार आकार उसे रद्द करके अपने उम्मीदवार पैसे लेकर रखने कि जुगत भिडाती है
@ संजय जी आपका ये सुझाव बहुत ही काबिले तारीफ है. वर्षों पहले नाना पाटेकर ने जो सपना ' प्रहार ' जैसी सार्थक फिल्म के साथ देखा था वो हमारी सरकारों ने दिलचस्पी नहीं ली और इसे सच नहीं होने दिया . एक आदर्श है ईजराईल का हमारे सामने, जहाँ का हर नागरिक , एक नागरिक बाद में पहले वह देश का सैनिक है वो भी ट्रेनिंग के साथ.
ReplyDelete@ मनोज जी सही कह रहे है आप , इन मुद्दों पर गंभीर चिंतन और मनन की ज़रूरत है।
@ Manoj kumar ji, सही कह रहे है आप ये की ऐसी बुनियादी समस्याएँ है, जिनका निराकरण हम केवल सरकार के मोहताज रहकर नहीं कर सकते. बेरोजगारी एवं गरीबी जैसी समस्या से निजात पाने के लिए कोई शार्टकट नहीं हो सकता, इसके लिए स्थायी रूप से ठोस और दीर्घकालीन योजनाओ पर अमल की जरुरत है. हम सबको अपनी सोच व कार्यशैली समय के साथ, समय के अनुकूल लेकर चलनी होगी
@ सलिल साहेब, बाद मन में आ गएल की कुछे लिखी तनीं ई समस्यन पे. बढिया लगत तै जोश बढल बाये अगली पोस्ट खातिन ... आभार
ReplyDelete@ कुशमेश जी , आपने सही शक जाहिर किया है. लेकिन कल ही मैंने "जेस्सिका" फिल्म देखी है और ये विचार आया की कभी भी उम्मीद टूटनी नहीं चाहिए......
@ निर्मला कपिला जी , सही कह रहीं है आप , सरकार चाहे तो बहुत कुछ हो सकता है। लेकिन अगर समस्यायें इतनी जल्दी खत्म हो जायें तो नेताओं की रोटियाँ कहाँ सिकेंगे?
वैसे तो आपके सुझाये सभी उपाय अच्छे हैं मगर व्यावसायिक शिक्षा प्रणाली का विकास कर हम समस्या पर बहुत हद तक काबू पा सकते हैं ! देश के नौजवान एक बार स्वावलंबी हो गए तो बहुत सारी समस्याएं स्वतः समाप्त हो जायेंगी और देश विकास के रास्ते पर बड़ी तेजी से अग्रसर हो सकेगा !
ReplyDeleteसामयिक और चिंतनीय पोस्ट !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
bahut sahi kaha aapne
ReplyDeletesarthak post
aabhar
बहुत अच्छा
ReplyDeleteरोजगार के नाम पर बिरोज्गारों को ठगने के खेल आम हो गया है
ReplyDeleteआपके सुझाव बहुत अच्छे लगे|सरकार चाहे तो बहुत कुछ कर सकती है| धन्यवाद|
ReplyDeleteउपेन्द्रजी,
ReplyDeleteबेरोजगारी का दंश व्यक्ति का अपना होता है । सरकार तो शुरु से घडियाली आंसू और दिखावी उपचार से आगे न कुछ कर पाई है और न ही शायद बहुसंख्यक सामान्यजन के लिये कुछ कर पावेगी ।
उपचार एक ही है और वह है शिक्षित युवा को सरकार पर निर्भर होने की बजाय अपनी व्यक्तिगत क्षमता के अनुसार शारीरिक श्रम के द्वारा अपनी राह स्वयं बना लेना । मैंने प्रिन्टिंग लाईन को माध्यम बनाकर अपना जीवन गुजारा । मेरे एक पुत्र ने उसी कडी को अपनाते हुए एडवरटाईजिंग के क्षेत्र में स्वयं के लिये रोजगार तलाशा और मेरे दूसरे पुत्र ने इन्टीरियर डेकोरेशन के क्षेत्र में स्वयं के बल पर अपने लिये रोजगार की व्यवस्था की । मेरे एक मित्र पिछले 40 वर्षों से प्रायवेट आफिस में स्टेशनरी सप्लाय करके अपनी जीवन की गाडी आज तक किसी पर भी नीर्भरता के बगैर गुजार रहे हैं । यदि समस्या हमारी है तो समाधान बी हमारा ही काम आवेगा फिर उसके बाद तो हिम्मते मर्दा मददे खुदा है ही ।
बहुत अच्छा लेख । मेरे भी दो सुझाव है, एक जनसंख्या नियन्त्रण, दूसरा शत-प्रतिशत लोगों का शिक्षित होना, और दोनो के लिये सरकार से ज्यादा लोगों को इच्छा शक्ति दिखानी होगी ।
ReplyDeleteआपके विचार भारत विकास को लेकर , पढ़े, सुन्दर विचार हैं!
ReplyDeleteआपने तरीके तो कई बता दिए उपेन्द्र जी, में कोई आलोचना नही कर रहा हूँ,
बल्कि, एक स्वस्थ चर्चा में अपने विचार रख रहा हूँ!,
जैसा कि हम सभी जानते हैं, कि मूल समस्या भिराष्टआचार है!
योजनाये कितनी भी बना लो, जब तक इमानदारी नही आएगी, हमारे
अफसरों और नेताओं में तब तक सब बेकार है! पहले सिस्टम में सुधार कि आबश्यकता है,
सिस्टम में पारदर्शिता लाने जरुरत है!, और इमानदारी से देश के प्रति, देश कि जनता के प्रति
अपना कर्तव्य निभाने कि जरुरत है!
ये काम हो जाये, बाकि काफी कुछ अपने आप ही सुधार आ जायेगा!
धन्येबाद!
उपेन जी बहुत उपयोगी श्रृंखला शुरू की है आपने. कोशिश करूँगा कि मैं भी कुछ सुझाव दे सकूं.
ReplyDeleteरोज़गार को शिक्षा से जोड़ने पर बहुत ज्यादा बल नहीं दिया जाना चाहिए। शिक्षित समाज एक वरदान होता है मगर कमाने के लिए शिक्षा अनिवार्य नहीं है। कृषि के प्रति जो विमुखता पैदा हुई है,वह बेरोज़गारी को भयावह बना रही है अन्यथा आज भी ऐसे किस्से सुने जाते हैं कि पुराने ज़माने में फलां को नौकरी का ऑफर था,मगर उसने ठुकरा दिया कि नौकरी क्या करनी!
ReplyDelete@ मर्मज्ञ जी , बिल्कुल सही कह रहे है आप, देश के नौजवान एक बार स्वावलंबी हो गए तो बहुत सारी समस्याएं स्वतः समाप्त हो जायेंगी और देश विकास के रास्ते पर बड़ी तेजी से अग्रसर हो सकेगा !
ReplyDelete@ दीप्ती जी आपका आभार
@ दीप जी शुक्रिया
@ संजय जी , सच रोजगार तो अब ठगी का एक धंधा ही बन गया है.............
@ जोशी जी आपका कहना सही है, सरकार अगर चाहे तो स्थिति काफी सुधार सकती है.
ReplyDelete@ सुशील जी , बिल्कुल सही आपका कहना है , शिक्षित युवा को सरकार पर निर्भर होने की बजाय अपनी व्यक्तिगत क्षमता के अनुसार शारीरिक श्रम के द्वारा अपनी राह स्वयं बना ले.
@ अमित जी , आपका सुझाव काबिलेतारीफ है.
@ अलोक जी , आप सही कह रहे है की पहले सिस्टम में सुधार कि आबश्यकता है,सिस्टम में पारदर्शिता लाने जरुरत है!, और इमानदारी से देश के प्रति, देश कि जनता के प्रति अपना कर्तव्य निभाने कि जरुरत है!
@ सोमेश जी आपके सुझाव की प्रतीक्षा रहेगी.
@ राधारमण जी , बिल्कुल सहमत. देश की अर्थव्यवस्था आज भी कृषि पर आधारित है और इससे इंकार नहीं किया जा सकता.
आपने एक बहुत ही ज्वलंत समस्या को सामने रखा है। मैं मनोज जी की बातों से सहमत हु। जहॉ तक मैं जानता हु क्रांति आवाम के द्वारा आती है सरकार के द्वारा नहीं। ये समस्या हमारी है और हमलोगों को ही कुछ करना होगा। सरकार से आस लगाना मुनासीब नहीं होगा। सरकार तो लुटने में लगी हुई है। उसे इन समस्याओं से क्या मतलब।
ReplyDeleteउपेन्द्र भाई, सार्थक चिंतन।
ReplyDelete---------
पति को वश में करने का उपाय।
बेरोजगारी जैसी जटिल समस्या पर सार्थक चिंतन।
ReplyDeleteआपने जो सुझाव दिए हैं वे व्यवहार में लाने योग्य हैं।
शासन को इन सुझावों पर ध्यान देना चाहिए।
bhai upendraji aapka blog per aana bahut shukhad laga.navvarsh ki aseem shubhkamnayen
ReplyDelete@ अमित जी आपके विचार स्वागतयोग्य है.. आभार
ReplyDelete@ जाकिर भाई शुक्रिया.
@ महेंद्र जी , बिल्कुल सही कह रहे है आप... इन सुझाव को व्यव्हार में बिल्कुल लाया जा सकता है.
@ तुषार जी , आपका इस ब्लॉग पर स्वागत है.... धन्यवाद.
आदत.......मुस्कुराने पर
ReplyDeleteकिस बात का गुनाहगार हूँ मैं....संजय भास्कर
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
समस्या ये है की भ्रष्ट लोगों की पहुँच और उनका पैसा जनहित के किसी भी विचारों को इस देश में प्रचारित और प्रसारित नहीं होने दे रहा.....भ्रष्टाचार को पोषण मनमोहन सिंह और प्रतिभा पाटिल जैसे लोग इस देश के सबसे बरे पदों पर बैठकर दे रहें हैं........शर्मनाक अवस्था है निज स्वार्थ जनहित को खा चूका है......सत्य और न्याय की रक्षा कोई नहीं कर पा रहा है.....
ReplyDeleteगहन अध्यन का परिणाम है यह आपका आलेख!!
ReplyDeleteतथ्यपरक विवेचन किया आपने समस्याओं के निराकरण पर्।
आभार्।
आपके सुझाव वाकी काबिल ए तारीफ हैं लेकिन इनको अमल मैं लाने के लिए सरकार ही कुछ कर सकती है? उसके लिए क्या किया जाए इस पे विचार करें.. जैसे लघु उद्योग .गाऊँ मैं २० घंटे बिजली नहीं , सामान्य स्य्विधाएं नहीं, माल बन भी जाए तो बजार नहीं..
ReplyDeleteयह सब सरकार की ग़लत नीतियों के कारण है..
इस पे विचार करने की आवश्यकता है..
आप का प्रयास सराहनीय है..
एक ज्वलंत मुद्दे को उठाया है आपने और बहुत ही बेहतरीन सुझाव दिए हैं ... पर जैसा की मेरी सोच है और आपने भी लिखा है लॉर्ड मेकआले की क्षिक्षा पद्धति पर ... देश में ईमानदारी और चरित्र निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हो तो आने वाले २०-३० सालों में देश ऐसी बहुत सी समस्याओं से निजात पा सकता है ......
ReplyDeleteहम सरकार अनुमोदित कर रहे हैं और प्रमाणित ऋण ऋणदाता हमारी कंपनी व्यक्तिगत से अपने विभाग से स्पष्ट करने के लिए 2% मौका ब्याज दर पर वित्तीय मदद के लिए बातचीत के जरिए देख रहे हैं जो इच्छुक व्यक्तियों या कंपनियों के लिए औद्योगिक ऋण को लेकर ऋण की पेशकश नहीं करता है।, शुरू या आप व्यापार में वृद्धि एक पाउंड (£) में दी गई हमारी कंपनी ऋण से ऋण, डॉलर ($) और यूरो के साथ। तो अब एक ऋण के लिए अधिक जानकारी के लिए हमसे संपर्क करना चाहिए रुचि रखते हैं, जो लोगों के लागू होते हैं। उधारकर्ताओं के डेटा की जानकारी भरने। Jenniferdawsonloanfirm20@gmail.com: के माध्यम से अब हमसे संपर्क करें
ReplyDelete(2) राज्य:
(3) पता:
(4) शहर:
(5) सेक्स:
(6) वैवाहिक स्थिति:
(7) काम:
(8) मोबाइल फोन नंबर:
(9) मासिक आय:
(10) ऋण राशि की आवश्यकता:
(11) ऋण की अवधि:
(12) ऋण उद्देश्य:
हम तुम से जल्द सुनवाई के लिए तत्पर हैं के रूप में अपनी समझ के लिए धन्यवाद।
ई-मेल: jenniferdawsonloanfirm20@gmail.com