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Friday, July 2, 2010

उड़ान

ललक है बाकी अभी उड़ने की अगर तो
मुश्किल है ये कहना कि आसमां न मिले
राहे हैं बडी मुश्किल तो क्यों न होती रहें
जरूरी नहीं कि पत्थरों पर निशां न बने
बुझ सकती है शमां तुफां से मगर
जरूरी नही कि दुबारा फिर शमां न जले
मुश्किल है कि एक मुकर्रर जहां न मिले
मगर ये तो नही कि कछ भी यहां न मिले
तुम कोशिस करो तो सही ये जरूरी नहीं कि
पहले से बेहतर फिर आशियां न बने ।।

1 comment:

  1. good one...
    just as Dushyant said'
    Aasman me bhi chhed ho sakta hai,
    ek pathar to tabiyat se uchhalo yaron...

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