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Saturday, July 31, 2010

अपवित्र गंगा



बहुत बडा हुआ था सम्मेलन
दूर - दूर से बडे बडे नेता
एवं गणमान्य व्यक्ति
पधारे हुये थे
विषय था
गंगा के पवित्र जल को
गंदा व अपवित्र होने से
बचाने का ।

अतिथि महोदय यानि मंत्री जी
फरमा रहे थे आराम
फूल की माला व हारों के बीच
एक अच्छे व दमदार भाषण से
माहौल को गर्म कर देने के बाद।

अचानक बज उठी थी घंटी
अतिथि महोदय के मोबाइल की
"साहब-मिल मजदूरों ने
वेतन-वृध्दि के लिये
कर दी है हडताल।"

सबने देखा था आश्चर्य से
मोबाइल पर बदलते हुए
अतिथि महोदय के चेहरे का भाव
" जलाकर सालों को
बहा दो गंगा में
ताकि किसी को इसकी
खबर तक न लगे । "
(यह चित्र इलाहाबाद के संगम का है)

4 comments:

  1. और क्या !
    गंगा तो साफ़ हो ही गयी. :-)
    हा हा हा
    बहुत ही अच्छी कविता है. सच में बड़ी मेहनत लगती है कविता लिखने में.

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  2. upendra ji......kya behtareen vishay chuna hai apne.......naa jane kitni aisi hi ghatnaao ko ganga nadi ke jal mein baha diya jaata hai......sach par kataaksh karti yeh rachna wakai hriday aparshi hai.....bahut khoob

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  3. Upendra Ji,

    bahut hi shaandar chitr kheencha he aapne rachna ke madhyam se

    badhai

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